विचार
– प्रवीण नारायण चौधरी
स्वत्व सँ दूर सन्तोष नहि
मयूर केर नाच देखि कौआ लोभा गेल। मयूर सभ चलि गेलाक बाद ओहो ओकर पाँखि पहिरि नाचय लागल। दोसर कौआ सब देखलकैक त हँसय लागल सब। लेकिन ओहि कौआ केँ मयूर एतेक बेसी प्रभावित कय देने छलैक जे ओ मगन भऽ स्वजातिक हँसीक बरखिलाफ मयूर केर नाच करैत रहल। एना बहुतो दिन धरि चलल। एक दिन एकटा मयूर कौआक सारा लीला देखलक। ओ ई बात अपन संगी-साथी सब सँ केलक। दोसर दिन मयूर सब जखन नाचय आयल त कौआ केँ सेहो संग आबि नाचय लेल कहलक। मुदा ई की? मयूरक सरदार केँ ई बात उचित नहि लगलैक। ओ नाच बीच मे रोकिकय कौआ केँ अलग भऽ कय नाच करय कहलक। ई बात कौआ केँ बड खराब लगलैक। कौआक संग-संग ओहि मयूरो केँ खराब लगलैक जे कौआ केँ अपना सभ संग नाचय आमंत्रित कएने छल। मुदा मयूरक सरदार के एक्के ठाम निर्णय ई छलैक जे मयूरक नाच मे कौआ केर नकल कयल नाच सँ ओकर मौलिकता पर असर पड़लैक आ नाच बिगड़ि गेलैक। तेँ, कौआ केँ अलग भऽ कय नाच करबाक चाही। कौआ ई बात सुनि अपन स्वजाति सँ गप करय गेल। ओकर ई बात सुनिकय कौआ समाज आर जोर सँ हँसल आ मयूरक सरदार केर बात सँ सहमति जतबैत कहलक जे सभक अपन स्वत्व केर महत्व होइत छैक। हम कौआ समाज केर जे विशेषता अछि से मयूर मे नहि सम्भव छैक, तहिना ओकर विशेषता सँ हम सब कहियो विशिष्ट नहि बनि सकैत छी।
बच्चा रही आ रेडियो पर अंग्रेजी बाजब सुनियै त मोन बहुत लोभा जाइत छल। समाज मे अंग्रेजी बाजब माने विद्वान् व्यक्ति होयबाक एकटा विशेष अवस्था सेहो काका-भैया सभक मुंहे सुनैत रही। बालमित्र मध्य एक शहरक बोर्डिंग स्कूल सँ पढल छात्र आ हम ग्रामीण छात्र सब केँ बजाकय पोखरि महार पर खूब प्रतिस्पर्धात्मक पुछा-पुछी होइक आ ओहि मित्रक खूब प्रशंसा आ हम गौआँ बच्चा सभ केँ खूब हुथियारी पड़य। एकर बड विचित्र असर पड़ल करैत छल हमर दिमाग मे। आब ओ समय याद कय केँ अपना ऊपर हँसी लगैत अछि, लेकिन तहिया ‘नाराज’ सिनेमा वला हिरो बच्चा जेकाँ भितरे-भीतर एकदम क्रूद्ध भेल करी – हँ तखन क्रोधक इजहार नहि कय सकैत छलहुँ मारिक डरे त बस चुपचाप प्रतिस्पर्धाक दोसर अवसरक इन्तजार करी आ तहिया खूब सीखिकय जाय आ पहिने सँ नीक प्रदर्शन करी। धीरे-धीरे बजरा पछाड़ वला पहलवान बनि गेलहुँ।
किशोरावस्था मे चेस (सतरंज) खेलेबाक सुर चढल। फेर वैह हाल। बड़का भैया सिखेलथि आ दोसर सिखलहबा मित्र सभक संग उठा-पटक कराबथि। बेर-बेर हारि जाय आ लोक सब पिहकारी दियए। वैह ‘नाराज’ वला दृश्य! तखन अपन दृढ संकल्प आ अभ्यास सँ किछेक मास बाद एहेन अवस्था भेल जे सिखेनिहार भैया केँ सेहो हँसिते-हँसिते पछाड़ि दी। ओ खूब मुस्की देथि। हम पिहकारी नहि मारि सकैत छलहुँ हुनका लेकिन आर हमउम्र केँ पिहकारिये टा नहि फिल्म वला डायलाग सेहो दय-दय केँ हरबैत रही। तैयो एहेन हुए जे कतेको बेर अपनो हारि जाय। हरदम जीते नहि सम्भव छैक।
कहबाक मतलब ई जे गामक बच्चा सेहो अंग्रेजी बाजि सकैत अछि, सतरंज मे चैम्पियन भऽ सकैत अछि, जे ठानि लेत से कय सकैत अछि। मातृभाषा मैथिली जेकर मजबूत रहतैक ओकरा लेल रसियन भाषा आ कोरियन भाषा सेहो दुरुह नहि! आर ई सब बात हमरा लोकनि अपन गाम के परिवेश मे खूब प्रैक्टिस आ प्रतिस्पर्धा करैत जँचने-बुझने छी।
सोशल मीडिया पर पहिने अंग्रेजी सँ आरम्भ कयल। २७ मई २००७ ई. ओर्कुट के धर्म मार्ग – एक बेजोड़ कृति बनल तहिया। आध्यात्मिक विषय पर आत्मचिन्तन, स्वाध्याय आ लेखनक बेहतरीन अभ्यास भेल। ताहि समय एना लागल जे अंग्रेजी मे मित्रता विश्व भरिक कइएक देशक लोक संग भेल, लेकिन नजदीकी लोक सभ अपना सँ दूर अछि। फेर प्रवेश भेल हिन्दी मे। हिन्दी आ बिहारी अस्मिता केर संघर्ष मे २००८ सँ २०१० धरि खूब लेखन-मंथन भेल। ओर्कुट सँ फेसबुक पर आबि गेल यात्रा। मैथिलीभाषी आरो खास लोक सब भेट होबय लागल आब। तखन मोन पड़ल जे यदि हम अंग्रेजी सँ हिन्दी मे आबि अपन जीवनक महत्वपूर्ण ५ वर्ष खर्च कय सकैत छी त मैथिली जे हम मातृभाषा छी, जाहि मे हमरा अपन गामक जन-जन सँ बात होइत अछि ताहि मे कियैक नहि काज कय सकैत छी। संयोग देखू जे २०१० सँ हम मैथिल अस्मिता लेल विराटनगर मे महाकवि विद्यापतिक स्मृति दिवस मनेबाक शुभ कार्य सेहो आरम्भ कयने रही आ ‘देसिल वयना सब जन मिट्ठा, तेँ तैसओं जंपओं अवहट्ठा’ वाली महान प्रसिद्ध नारा केँ अंगीकार कय चुकल छलहुँ। २०१२ केर ओ बिहार गीत जाहि मे मिथिलाक विभूति ‘विद्यापति’ केर चर्चा कतहु नहि, जनक-जानकी-मिथिला तक केर चर्चा नहि, ताहि सँ बिहार व बिहारी पहिचान प्रति वितृष्णा भेल आ मैथिल व मिथिला प्रति मोह जागि गेल। आइ यैह १० वर्षक अपन सृजन यात्रा मैथिली-मिथिला लेल देखि आब बहुत पैघ चैन भेटल से कहि सकैत छी। अपन स्वभाषीक बीच छी, एहि सँ आत्मा तृप्त अछि।
कौआ रहैत मयूर बनबाक मृगतृष्णा सँ ऊबार भेटल, ई बड पैघ कृपा बुझैत छी। अस्तु! गाम गामे होइछ, परदेश मे मोक्ष ताकब सम्भव नहि अछि।
हरिः हरः!!