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“अपन गामक पोखरि”

संतोष कुमार झा।                         

पोखैर दादा परदादा के धरोहर जे अपन अंतिम सांस गिन रहल अछि…ग्रामीण कथा-वस्तुके आधार पर कहल गेल अछि जे कोनो पोखैर दैत्य खूइन के गेल जाहि में हम सब देखैत एलौं महीसान सब ओय में महीस के नम्बई ले जाय छलाह…
आब नय ते ओ पोखैर रहल न तो ओ महीसान…
हर गाम दु-चाइर गो पोखैर अहाँक भेटबे टा करत । ओहि में एक पोखैर के विशेष मान्यता देल जाय छल…
हम सब ओकरा बाबा पोखैर के नाम सँ सम्बोधित करय छलों…
धिया-पुता में सुनय छलों जे ओ पोखैर ब्याहल छय…
सूइन के बड़ा आश्चर्य लागत जे पोखैर के कोना ब्याह भ सकय छय… ?
हमर अहाँक बाबा-परबाबा के देन हुनकर निशानिक रूप में हर गाम में पोखैर-इनार भेटबे टा करत जय सँ आबक लोक के कोनो सरोकार नय रैह गेलय…
जे पोखैर और इनार ब्याहल नय छल ओकर लोक पैनो नय पिबय छला जे ई इनार-पोखैर असुद्ध छय…अय महता के जौं हम-अहाँ अपना जीवन जीवन से जोड़ी त एकर अर्थ अहाँक बुझबा में आयत…
हर व्यक्ति जहिना अपन सभ्यता आ सांस्कृतिक बचेबाक लेल संघर्ष क रहल छी तहिना बाबा पोखैर आ इनार के बचेबाक सेहो प्रयास करी..
आय अहाँ सबहक़ पोस्ट देख हम लिखय से नय रोइक सकलौं… गाम जाय छि पोखैर आ इनार के दुर्दशा देख मन द्रवित भ जाय ये…
अंत मे यैह कहब
की छल हमर मिथिला आ की भ गेल..

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