आभा झा।
# मर्यादा _पुरुषोत्तम _राम
जय श्रीराम 🙏🙏
भारतीय वांग्मय में राम के मर्यादा पुरुषोत्तम कहल गेल छनि। मर्यादा के अर्थ होइत अछि ‘सीमा ‘ एकर एक अर्थ आर होइत छई,उपयुक्त व्यवहार। धर्म आर लोकाचार के सीमा के ध्यान में रखैत मनुष्य सॅ जे व्यवहार अपेक्षित अछि ओ सर्वमान्य होइत अछि। एहि मानदंड पर ‘ रामायण ‘ के राम शत् प्रतिशत खरा उतरै छथि। अपन संस्कृति में एहेन कोनो दोसर चरित्र नहि जे राम के जेकां मर्यादित,धीर-वीर आर प्रशांत होयत। अहि एक विराट चरित्र के गढ़ में भारत के सहस्र प्रतिभा सब कतेको सहस्राब्दि तक अपन मेधा के योगदान देला। आदि कवि वाल्मीकि सं ल क महाकवि भास,कालिदास,भवभूति आर तुलसीदास तक नहि जानी कतेको अपन-अपन लेखनी आर प्रतिभा सं अहि चरित्र के संवारलेन। वाल्मिकी के राम लौकिक जीवन के मर्यादा के निर्वाह करै वाला वीर पुरुष छलाह। ओ लंका के अत्याचारी राजा रावण के वध केला आर लोक धर्म के पुनः स्थापना केला। मुदा ओ नील गगन में दैदीप्यमान सूर्य के समान दाहक शक्ति सं सम्पन्न,महासमुद्र के जेकां गंभीर तथा पृथ्वी के जेकां क्षमाशील सेहो छलाह।
महाकवि भास,कालिदास आर भवभूति के राम कुल रक्षक,आदर्श पुत्र,आदर्श पति,आदर्श पिता आर आदर्श प्रजापालक राजा के चरित्र सामने रखैत छैथ। कालिदास रघुवंश में इक्ष्वाकु वंश के वर्णन केला त भवभूति उत्तर रामचरितम् में अनेक मार्मिक प्रसंग जोड़ला। राम कथा के संपूर्णता वास्तव में तुलसीदास प्रदान केलखिन। रामचरितमानस एक कालजयी रचना अछि जे भारतीय मनीषा के समस्त लौकिक,परलौकिक,आध्यात्मिक,नैतिक एवं सांस्कृतिक मूल्य के राम के चरित्र में अहि तरहे जड़ि दैत अछि मानु कोनो कुशल शिल्पी ओहि में नगीना जड़ि देने हुऐ। मुदा तुलसी के राम विष्णु के अवतार छैथ। ओ दुराचारि,यज्ञ विध्वंसक राक्षस के नाश क लौकिक मर्यादा के स्थापना लेल जन्म लैत छैथ। ओ सांसारिक प्राणी के जेकां सुख-दुख के भोग जरूर करैत छैथ पर जीवन-मरण के चक्र सं होइत गुजरै छैथ आर अंततः अपन परलौकिक छवि के छाप छोड़ि जाइत छैथ।
तुलसीदास राम के जीवनक प्रसंग के व्याख्या करैत हुनकर ईश्वरत्व के दीस इशारा केने छैथ। राम सुख-दुख,पाप-पुण्य,धर्म-अधरम,शुभ-अशुभ,कर्तव्य अकर्तव्य,ज्ञान-विज्ञान,जड़-चेतन,लौकिक-परलौकिक आदि के सर्वत्र समन्वय करैत देखाइ दैत छैथ। अहि दुवारे ओ मर्यादा पुरुषोत्तम त छैथे संग मानव चेतना के आदि पुरुष सेहो छैथ। तुलसी,रैदास,गुरुनानक,कबीर सबहक राम अलग छथिन। ककरो लेल राम दशरथ पुत्र छथिन त ककरो लेल सब सं न्यारा छथिन। तुलसीदास त इहो कहने छथिन कि “जाकी रही भावना जैसी,प्रभु मूरत देखी तिहिं जैसी। ”
माता-पिता राम जेकां पुत्र के कामना करैत छैथ। अहि मर्यादा वादी देश में राम कतौ लौकिक मर्यादा के अतिक्रमण करैत देखाइ नहि दैत छैथ। ओ लंका विजय के बादो ओत के राज विभीषण के सौंप दै छथिन। सीता हरण के प्रसंग में सेहो उद्विग्न नहि होइत छैथ। वनवास भेटला पर ओकरो सहजता सं स्वीकार करैत छैथ आर पिता के आज्ञा मानि क वन के प्रस्थान करैत छैथ। हुनकर मोन में विमाता कैकयी आर भाई भरत के स्नेह बनल रहैत छनि। हुनकर हृदय करूणा सं ओत-प्रोत छनि। ओ जखन रावण के वध करैत छैथ तखन पश्चाताप करैत छैथ। लौकिक जीवन के मर्याद एवं राजधर्म के निर्वाह के लेल धोबी के ताना सुनि क सीता के परित्याग करै छैथ। हुनका अपन जीवन सं बढ़ि क लोक जीवन के चिंता छलेन। राजा के अहि आदर्श के कारण भारत में रामराज के आइ तक कल्पना होइत छैक।
आभा झा
गाजियाबाद