“मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम”

991

कृष्ण कांत झा।                           

#मर्यादापुरुषोत्तमश्रीराम#
भगवान् श्रीराम के विषय में लिखनाय जतेक हर्ष और सौभाग्य के विषय अछि।ओहो स बहुत अधिक कठिन
और गंभीर विषय अछि।कारण जे हमर लेख के एकोटा
पंक्ति में यदि हुनकर विषय में कुछ अनर्गल लिखा गेल
त एकटा अक्षम्य अपराध होयत।तथापि इ साहसिक कृत्य
हम हुनकर नाम स ही आरंभ करै छी।राम न सकहिं नाम
गुण गाई। भगवान् श्रीराम के नाम भगवान् स भी अधिक
शक्तिशाली अछि।राम नाम के माहात्म्य कहय में स्वयं प्रभु राम भी असमर्थ छथि। भगवान् के नाम स असंख्य
जीव के उद्धार भेल अछि। भगवान् के मर्यादित मानुषी
लीला के देखैत हुनका मर्यादा पुरुषोत्तम राम के संज्ञा देल
गेलैन।राम शब्द के अर्थ परब्रह्म परमात्मा थिक।जे सब
योगिजन के चित्त में नित्य आनंद रुप में वास करै छथि।
श्रीराम के मानुषी स्वभाव स्थितप्रज्ञ व्यक्ति के छैन।जे
राज्याभिषेक के वार्ता स हर्षित नै और वनवास के समाचार स कनिको शोकाकुल नै होइ छथि।लौकिक लीला में भी ओ एकटा आदर्श पुरुष आदर्श पति आदर्श भाई आदर्श पिता और प्रजापालक राजा के कर्त्तव्य स कतौ रत्ति मात्र विचलित नै होइ छथि। श्रीराम के चरित्र
मनुष्य मात्र के लेल प्रेरणादायक छैक। रामायण में श्रीराम के विषय में कहल गेल- रामो विग्रहवान् धर्म:।राम जी साक्षात् धर्म के ही स्वरूप छथि।अपन जीवन में ओ अनेक दुष्ट राक्षस आदि के समाप्त क यज्ञ और ऋषि मुनि आदि के रक्षा केलथि। पुनः तारा शबरी जटायु अहिल्यादि के उद्धार केलथि।पिताक वचन पालन हेतु वनवास गेलथि। मां जानकी के रक्षार्थ रावणादि स युद्ध केलथि।
हुनकर पूरा ही जीवन में अनेक प्रतिकूलता एलैक।मुदा ओ सब परिस्थिति के अनुकूल बनेलथि।कतौ हार नै मानलथ। रामसेतु आदि के निर्माण सब के सहयोग स
केलथि।प्रभु के कथा अनंत छैक।त्रिदेव शारदादि भी ओ
वर्णन में असक्षम छथि। पुनः हम सब के कि बिसात।तखनों प्रभु के चरित्र पर मां सीता के अग्नि परीक्षा और
परित्याग ल क आक्षेप उठैत अछि।इ विषय में हम कतौ कुछ पढलौं।ओ संक्षेप में कहै छी।वनवास काल में श्रीराम
जानकी संग वाल्मीकि आश्रम गेलथि।ओतय के सुंदर वातावरण देख क मां जानकी प्रभु स निवेदन केलथि।जे
एत बालक सब के शस्त्र शास्त्र और संगीत आदि के समुचित शिक्षा उपलब्ध छैक।हम अपन प्रसव काल में
एतय ही संतान के जन्म देबय चाहै छी।प्रभु कहला कि इ
स समाज में अपवाद पसरत कि अकारण हम एना किये
केलौं।मां कहलथि कि प्रभु कारण के रचना अहां लेल कठिन अछि कि?।तथास्तु। अग्निपरीक्षा के कारण जे सीताहरण स पूर्व मां सीता के प्रभु अग्नि में ही वास करेने छलथि।आब छाया सीता के स्थान पर वास्तविक सीता के
लाबय हेतु। अग्निपरीक्षा के युक्ति प्रभु लगेलथि।अस्तु।

तुलसीदास जी के शब्द में- विभीषण उक्ति-

नाथ राम नहिं नर भूपाला भुवनेश्वर कालहु कर काला।
ब्रह्म अनामयअज भगवन्ता व्यापकअजित अनादि अनंता
गो द्विज धेनु देव हितकारी कृपा सिंधु मानुष तनु धारी।।

जय जय श्री सीताराम प्रभो।हर हर महादेव