“उपहार बनल दहेज”

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रेखा झा।                           

विवाहक समय कन्या के विदागरी काल पहिने कन्या के जरूरत के सामान देल जाईत छल जाहि स वरक परिवार के कोनो वास्ता नहि रहैत छल इ परंपरा अपन अपन शौक आ स्थिति पर निर्भर रहैत छल जे की कालांतर मे बिगडि क कुरीति आ भ्रष्टाचार के विभत्स रूप बनि”दहेज”के राक्षस बनि पसरि गेल समाज में,
पहिने सौराठ सभा के आयोजन १३१०मे जे शुरू भेल ओहिमे बहुत दिन धरि नीक सुशिक्षित, संस्कारी घराना के परिवार शामिल होईत छल आ कुल खानदान मिला कर चट मंगनी पट बियाह के सिद्धांत रहैत छल त ओहु समय दहेज दानव नहि पसरल एना,,
तकर बाद लोक सब के मानसिकता संकुचित होबय लगलनि आ कथा वार्ता मे समाजिक किछु लोक के ल क तय होबय लागल ताहू मे पाई के बात मे दूनू तरफ के लोक कम कराबय मे सहयोग करैत छलाह,
आब हरेक आदमी एकल भ रिश्ता अपने तय करता आ लेन देन के बात मे असगरहि शामिल भय निपटा लेता त इ लुकाछिपी के काज मे मांग नहि पूरा भेला पर हत्या के विभत्स परिणाम तक समाज भुगतान रहल,
लरका सब के अगर सरकारी नौकरी लागल त कन्या वाला सब कोनो हाल मे कीनबाक लेल बेहाल भ रहल छथि,
सामाजिक ढांचा मे विवाह ठीक होबय के बात करै छथि क्योंकि पुत्र आ पुत्री के त पहिल सवाल लोक इ पुछत जे की करै छथि, पहिने लोक पुछथिन्ह जे कोन खानदान स आ कोन गाम
आब सबके सब चीज बनल बनायल चाही त जक्खन निर्माण करबे नहि करब त बनल चीज के विध्वंस के समय सेहो निशचित अछि इ बात सबके बुझबाक चाही,
पाई द क कोनो खुशी कीनल नहि जा सकैत अछि, खुशी पाबय लेल त्याग के जरूरत अछि,
आब इ भयावह समस्या स मुक्ति लेल सबस पहिने लरकी के पढाई पर ध्यान दी आ जागरूक करी की जे मांग करत ओहिठाम विवाह नहि करब,
लरका सब सेहो एकदम खुलिकय तुलनात्मक दृष्टिकोण हटबैत मां पिता के कहैथ जे हमरा नहि बेचब,
सौराठ सभा के उत्थान मे इ बड्ड जरूरी छइ बुझनाई जे कोनो दुकान नहि हमर परंपरा अछि आ पढल लिखल नीक लरका सब सेहो ओहि मे भाग लैथ,
विवाह दान ठीक करबा मे किछु लोक के संग ल क वार्ता कैल जाई ताहि स वर आ कन्या पक्ष के सुरसुर मुरमुर नहि चलतनि
जे लै छथि आ जे दै छथि सामाजिक लोक सब संगहि जाईथ आ सबके फोटो आ रिकॉर्डिंग राखैत आ इ बात मे कोन लाज की सबके सामने इ बात आओत,
लेलहुं आ देलहुं से खुलि क कहू त बहुत हद तक कम से कम रूकत मांग रूपी दहेज🙏🏻🌹🌺🌻