कृष्ण कांत झा।
#जूडिशीतल
जूडिशीतल मिथिला के अनेकों पावनि तिहार में स एक अन्यतम त्योहार थिक।इ पावनि सनातन नववर्ष के आरंभ में मनाओल जाइत थिक।जूडिशीतल शब्द के वास्तविक शब्दार्थ की अछि से त हमरा ज्ञात नै अछि।मुदा इ शब्द स हम अनुमान करैत छी।कि जूड (जूड़ा) यानि कि केश।और शीतल अर्थात ठंडा।इ पावनि में मिट्टी के घट में राखल बासी शीतल जल स प्रातः काल में माथ के ठंडा कैल जाइत अछि।जै स पूरा गर्मी ऋतु पर्यंत माथ ठंडा रहैत अछि।और इ बताब के आवश्यकता हम नै बुझै छी कि माथ के ठंडा रहनाय कतेक बेसी आवश्यक छैक। पुनः ओ घट के शीतल जल गाछी कलम के वृक्ष सब आदि में डालल जाइत अछि।इ स प्रकृति के संरक्षण के प्रेरणा भेटैत अछि।अपन सब के जतेक भी त्योहार पर्व अछि।ओ कोनो नै कोनो माध्यम स प्रकृति के पोषण संरक्षण और संवर्धन के लेल प्रोत्साहित करैत अछि।किंतु दुर्भाग्यवश आब सब त्योहार केवल मौज मस्ती नशा आदि तक सीमित रहि गेल।इ दिन साफ सफाई के काज सब भी होइत अछि।जकरा धूरिखेल कहै छियै।लोक गाम घर के समीप सब नाली आदि के सफाई करैत छथि।और हसि मजाक में एक दोसर पर फेका फेंकी भी करैत छथि। स्वच्छता के कतेक महत्व छैक से त करोना समझा ही चुकल अछि।
इहो पावनि लगभग होली जका ही भेदभाव रहित अछि।बस इ में रंग के खेल नै होइया।लोक सब पोखरि में इकठ्ठा होइ छथि। जलक्रीड़ा संग पोखरि भी साफ करै छथि।इ दिन चुल्हा के विश्राम देल जाइत अछि।और बसिया बड़ी भात खाय के विधान अछि। बच्चा में बहुत हर्ष और उल्लास स इ पावनि के प्रतीक्षा रहै छल। प्रकृति के सौंदर्य इ समय में दर्शनीय होइत अछि।आमक मज्जर सब में छोट छोट फल आबि जाइत अछि।
प्रकृति अत्यंत मनोरम भ जाइत अछि।बच्चा काल
में जखन जूडशीतल के जल माथ पर मां वा दाय के द्वारा ब्रह्ममुहुर्त में सुतले में पडै छल।त झट स नींद खुजि जाय छल।लागै छल जेना बर्फ माथ पर पडि गेल।ओ शीतलता के एहसास एखनो धरि ताजा अछि। पुनः घैला ल क भोरे गाछी कलम सब में जल डालय जाइ छलौं।इ पावनि स हमरा
सब के बहुत किछ सीखय लेल भेटैया जेना कि — स्वच्छता के प्रति जागरूकता। प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन।और आपसी सद्भाव। हर्षोल्लास के वातावरण निर्माण। इत्यादि।
क्रमशः-