गहोलीक नाम सुनितहि त मोन में एकटा अलगे तरंग संचारित भ जाइत अछि। ओना त भारतवर्ष में विभिन्न पर्व त्यौहार मनाओल जाइत अछि, मुदा होलीक स्थान बुझु सर्वोपरि। ओना त सभ त्यौहार मनेबाक पाछाँ त किछु नै किछु लोक कथा होइत अछि त होलीक पाछाँ भी एक कथा प्रचलित अछि, जे अहि तरहें अछि। “एक असुरराज रहैथि जेकर नाम रहै हिरणकश्यप। ओ भगवान विष्णु सँ घोर शत्रुता राखैत छल। ओकरे पुत्र प्रह्लाद जे भगवान विष्णु के अनन्य भक्त रहै, जे हिरणकश्यप के फुटली आँखि नै सुहाई। हिरणकश्यप प्रह्लाद सँ छुटकारा पाबै लेल विभिन्न तरहक उपाय केकल मुदा सफलता नै भेटलै। हिरण्यकश्यप के बहिन होलिका लग एक दिव्य चादर रहै जाहि अंदर रहला स आदमी के आगि नै जरा सकै छल। हिरणकश्यप आ होलीका ईनिर्णय लेलक जे ई चादर ओढ़ि होलिका प्रह्लाद के ल क अग्निस्नान क लेत जाहि में प्रह्लाद जरि क भस्म भ जैत। तदनुसार ही चिता सजा क ओहि में होलिका प्रह्लाद के ल क बैसि गेल। ताहि बीच प्रह्लाद अप्पन अभीष्ट भगवानक नाम जाप करैत रहलाह। जखन चिता में अग्नि प्रज्वलित कैल गेल त भगवानक महिमा सँ चहुदिश बसात बह लागल। अचानक ओ दिव्य चादर प्रह्लाद सँ लिपटि गेल जाहि सँ प्रह्लादक जान बाँचि गेलैन्ह आ होलिका वैह चिता में जरि क भस्म भ गेल। ई सुनितहि सामान्य जन-जीवन में खुशीक लहर आबि गेल। सभ हर्ष उल्लास सँ नाचय लागल आ ओहि चिताक भस्मक एक दोसर पर देमय लागल जे कि बाद में अबीर गुलाल ततपश्चात रंग के शक्ल में परिवर्तित भेल”। चूंकि ई घटना फाल्गुन पुर्णिमा के राति में भेल छल आ तक्कर प्रात अर्थात चैत महिनाक कृष्णपक्ष के प्रतिपदा तिथि क चिताक भस्म एक दोसर पर लगैल गेल रहै, ताहि दिन सँ ऐह तिथि पर होली मनेबाक परिपाटी आरम्भ भेल। मिथिलांचल में फाल्गुन पूर्णिमा के राति में होलिका दहन अर्थात जेकरा सम्मत जरेनाई कहल जाइत अछि, होइत अछि आ तक्कर प्रात अर्थात चैत्र मासक प्रथम तिथि कृष्णपक्ष प्रतिपदा क होली उत्सव।
ओना होली मनेबाक पाछाँ अप्पन सभक खेती बाड़ी के काज सँ सेहो अछि। ऋतुराज वसन्त के आगमन भ गेल रहैत अछि, आमक मज्जर आ अन्य पुष्प सभ सँ पूरा वातावरण अपने आप मादकता सँ परिपूर्ण भ जाइत अछि। किसान भाई सभ खेती बाड़ीक सँ कनि विराम में रहै छैथि। खेत सभ में रब्बी फसल लहलहैत रहैत अछि। ओक्कर कटनी के तैयारी रहैत अछि। मिला जुला क प्रकृति आ कृषि कार्यक परिवेश तेहेन उत्तपन्न भ जाइत अछि जे अपने आप होली में परिवर्तित भ जाइत अछि, आ चहुँओर होली होली भ जाइत अछि।
होली मनेबाक तरीका त स्थान स्थान पर किछु बदलि जाइत अछि। चूंकि मिथिलांचल भगवान रामक सासुर तै होली सम्बन्धित अधिक गीत में भगवान राम आ माता सीताक वर्णन रहैत अछि। मथुरा वृंदावन सभ में भगवान श्रीकृष्ण आ गोपिका के होलीक वर्णन भेटत। खास क बरसाने (माता राधा रानी के नैहर) के होली त अद्भूते होइत अछि। ओतय लठ्ठमार होली होइत अछि जेकरा देखय लेल देश बिदेश सँ लोक सभ आबैत अछि। अहि में बरसाने के स्त्रीगण सभ राधा के प्रतीक आ नंदगाम आ आसपासक पुरुष सभ कृष्ण के प्रतीक बनै छैथि। स्त्रीगण सभ पुरुष सभ के उपर लठ्ठ सँ प्रहार करै छैथि आ पुरुष अप्पन बचाव। ई दृश्य अद्भूते होइत अछि।
सभ चीज में गुण संग दोष सेहो होइत अछि। होली मनेबाक पाछाँ में कनि दोष सेहो आबि जाइत अछि। बहुत लोक सभ अहि हर्ष के बहुत बेसी कर के लेल माँस-मदिराक सेवन सेहो करै छैथि, जे उछित नै। बहुत लोक त हुनको रंग अबीर सँ ओत प्रोत क दै छैथि जिनका ई पसंद नै। ताहि करने दोस्ती के स्थान पर वैमनस्यता बढ़ि जाइत अछि, उछित नै।
होली मात्र खुशी आ सभ भेद भाव बिसरि भाईचारा के बढ़ेबाक लेल ही खेलनाई उछित।🙏🙏🙏🌹🌹🌹
अखिलेश कुमार मिश्रा