_दीपिका झा
“नचारी”।
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बैसलि गिरिजा हारि,
के करतनि पुछारी,
एहेन जोगिया संग,
कोना रहती दुलारी।
मोर पर कार्तिक,
मूषक पर गणेश।
संग भय तखने,
चलि गेला महेश।
नै लग में छैन कियो,
जे अनतनि पुकारि।
एहेन जोगिया संग,
कोना रहती दुलारी।।
सासु-ननैद नै,
के मोन बहलाएत।
रूसल गौरी के,
स्नेह सं मनाएत।
बौरहबो ने बुझैथ,
की करती बेचारी।
एहेन जोगिया संग,
कोना रहती दुलारी।।
अपना नै घर छनि,
कहबै छैथ दानी।
टुटली मरैया में,
बैसल छथि भवानी।
जगत पालनकर्ता के,
घर ने घरारी।
एहेन जोगिया संग,
कोना रहती दुलारी।।
भोरक गेल,
एखन धरि ने ऐला।
भांग पिसल छल,
सेहो ने शिव खेला।
बसहा पर बैसल,
सुनैत हेता नचारी।
एहेन जोगिया संग,
कोना रहती दुलारी।।
जुनि बेकल होऊ,
उमा सुकुमारि।
स्वामी अहांके,
जगत त्रिपुरारी।
औढ़रदानी के,
अहीं तऽ प्राण प्यारी।
एहेन जोगिया संग,
कोना रहती दुलारी।।
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