“साहित्य”
:- दीपिका झा।
“हमरो हृदय बसै छैथ राम”
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स्वर्ग-नर्क अछि अहि धरती पर,
अछि रावण एतहि, एतहि श्रीराम।
कियो अपनहि सोच सं कृति बनाबथि,
कियो कुकृत्य स घटबथि मान।
जों रावणक अनुसरण करी,
आ चली कुपथ पर सीन तान।
तहन कोना कहै छी ताल ठोकि,
हमरो हृदय बसै छैथ राम।।
नहिं अछि जीवदया रत्ती भरि,
निर्दोषक खीचै छी प्राण।
अबला देखि ने नोर खसैयै,
मौका तकै छी गिद्ध समान।
पाथर सनक हृदय राखि क,
रुदण सूनि जौं मुनै छी कान।
तहन कोना कहै छी ताल ठोकि,
हमरो हृदय बसै छैथ राम।।
पर पुरुष में जौं नै पिता देखाईयै,
नहिं देखाईयै कियो भाई-सखा समान।
त कोना भेलौं जगदंबा के रूप,
कोना भेलौं सती सिया के मान।
अपन मान अपनहिं स घटा क,
जग में घटबै छी अपन सम्मान।
तहन कोना कहै छी ताल ठोकि,
हमरो हृदय बसै छैथ राम।।
नारी में बस स्त्री देखै छी,
नहिं देखै छी माता के समान।
शुम्भ-निशुम्भ सन सोच राखि क,
नीच बनि सदय करै छी अपमान।
घर सौं बाहर बिखरल मर्यादा,
बनल बैसल छी मूक अंजान।
तहन कोना कहै छी ताल ठोकि,
हमरो हृदय बसै छैथ राम।।
जहिना सब जल नहिं अछि गंगा,
नहिं सब शिखर कैलाश समान।
नहिं सब नारी अई सीता सन,
नहिं सब पुरुष अवधेश समान।
एक गिद्ध में सेहो दया भरल छल,
आब मनुष्यक रूप में अछि शैतान।
तहन कोना कहै छी ताल ठोकि,
हमरो हृदय बसै छैथ राम।।