“संस्मरण”।
– आभा झा
“गामक दलान ”
“दलान “हर घर के शोभा होइत छैक। मिथिला में पाहुन-परख के आदर सत्कार दलान पर बैसा क कैल जायत छल।दलान पर चौकी लागल रहैत छल। भोजक बैसारी होइ या कोनो पंचैती सबटा काज अहि दलान पर बैस क होइत छैक। जिनका दलान पर बेसी लोक बैसैत छलखिन हुनका प्रतिष्ठित मानल जाइत छलेन।दलान पर लकड़ी स बनल कुर्सी आर चौकी रहैत छैक। बुज़ुर्ग सब अहि दलान पर बैसैत छलाह।
हम सब छोट में रांची स गाम जाइ छेलउं तखेन हम सब अपन गामक दलान पर बैस क बड खेलाइ छेलउं। दुपहरिया में दलान पर बैस क लुडो,कैरम सब खेलाइ छलउं।गर्मी मास में पाकल आम खाइत रही। दलान पर अपन बाबा स खिसा कहानी सेहो सुनैत रहि। गर्मी में हम-सब दलाने पर सुती।
जे कियो पाहुन परख अबैत छलखिन हुनका दलान पर बैसैल जाई छलेन। आब त गाम में बड कम लोक रहैत छैथ तैं गामक दलान सुन्न पड़ल रहैत अछि। जखेन गाम में लोकक जुटानी होइत अईछ तखेन ओ दलान फेर सं सुशोभित भ जाइत अईछ। किछ दिन त चहल पहल फेर स सुनसान आर चुपचाप परल रहैया गामक दलान।
गामक दलान बाप-दादा के निशानी अछि। लोक आबै के बाट तकैया गामक दलान कनैत रहैया। गामक दलान अहिना आबाद रहै ऐकर कामना करैत छी। दलानक जतेक बखान करी कम अईछ।
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मौनी अमावस्या पर विशेष
ग्रंथ गोभिलगृहयसूत्र में उल्लिखित भेटैत छैक “सूर्य चंद्रमौर्यः परः सन्निकर्षः अमावस्या”। अर्थात सूर्य आर चंद्रमा जाबे तक एके राशि पर अबैत छैथ त अमावस्या आर जखन मकर राशि पर अबैत छैथ त हुनका मौनी अमावस्या कहल जाईत छैन। एहेन साल में एक बेर माघ में होइत छैक। मौनी अमावस्या के दिन जप-तप दान-पुण्य आदि केला स अक्षय फलक प्राप्ति होइत छैक। अहि दिन पवित्र नदी के जल मे स्नान आर मौन व्रत के विशेष महत्व छैक। मौनी अमावस्या पर पितर सबके तर्पण करै के परम्परा सेहो छैक। मानल जाइत छैक कि अहि दिन के दान स हुनका सबके मोक्ष के प्राप्ति होइत छैन। अहि दिन मौन व्रत रखै के परम्परा के पाछू सेहो कारण छैक।
मोन आत्मबल के अनंत स्रोत होइत अछि। इ अनंत ऊर्जा के संचयन के प्रतीक अछि। मौन एकाग्रता में सेहो साधक मानल गेल छैक। पर केना? कथा छैक कि महाभारत लिखइ काल भगवान गणेश एक शब्द नहिं बजने छलाह। काज समाप्त भेला पर व्यास जी पूछलखिन,त ओ कहलखिन कि यदि बाजब त ओ काज कठिन भ जायत। भगवान कहैत छथिन,आत्मा में मोन के स्थिर कइरक ‘न किंचिदपि चिंतयेत ‘दोसर कोनो चिंतन नइ करू।संत कबीरदास ‘मौन’के अमोघ शक्ति के बारे में कहलखिन,’बाद विवादे विष घना ,बोले बहुत उपाध। मौन गहे सबकी सहै,सुमरै नाम अगाध। मौन रहि क हम अपन भीतर के शक्ति के दुगुना क सकैत छी।
आभा झा