बहस
मिथिलाक पिछड़ापनक मुख्य कारण अशिक्षा, आ अशिक्षाक मुख्य कारण की?
एक सर्वेक्षण – सर्वेक्षक प्रवीण नारायण चौधरी द्वारा फेसबुक पर विचार-विमर्श
सामाजिक संजाल केर बहुत पैघ उपयोग छैक आजुक समय मे। अहाँ कोनो गूढ सँ गूढतम् विषय पर विमर्श कय सकैत छी, कोनो गम्भीर जिज्ञासा पर विज्ञजनक राय लय सकैत छी, कोनो सन्दर्भ व सरोकार पर आमजनक विचार सेहो संग्रह कय सकैत छी, आदि। आइ एहने एकटा सान्दर्भिक विषय पर सर्वेक्षण कयलहुँ जेकर विषय छल ‘मिथिलाक पिछड़ापनक मुख्य कारण अशिक्षा आ अशिक्षाक मूल कारण की?’ – एहि विषय पर बहुत रास विज्ञजन आ विद्वान् लोकनिक विचार आयल अछि। कृपया ध्यान दी –
१. मैथिलीक चर्चित साहित्यकार ‘लेखक रमेश’ एकर उत्तर दैत कहलनि अछिः “शिक्षा- चेतनाक अभाव, महग निजी शिक्षा आ अव्यवस्थित सरकारी शिक्षा-व्यवस्था, पिछड़ापन- गरीबी, वंचित-पिछड़ल वर्गक प्रति शेष समाजक अनुदार-संवेदनहीनता…….।”
२. मैथिली मंचक चर्चित उद्घोषक व जनजागरण अभियानक एक प्रखर अभियानी ‘किसलय कृष्ण’ कहलनि अछिः “हमर एकटा मासटर साहेब कहैत रहथिन्ह जे ह’र सँ पढ़ब आकि घ’र सँ….. ??? मने कने शिक्षित भेने मिथिलाक लोक ह’र छुअब छोड़ब आ बेसी पढ़ने घ’र गाम छोड़ब कारण अछि । कृषि प्रधान रहल मिथिला मे जखन एना घ’ल आ ह’र छोड़ि देल जायत तँ विकास की ??”
३. मैथिलीक प्रसिद्ध साहित्यकार एवं विद्वान् लोकसाहित्यक मर्मज्ञ डा. चन्द्रशेखर पासवान कहलनि अछि, “अशिक्षा मिथिला में कहियो नै रहल अछि, अवसर-क कमी रहल अछि – हँ, किछु वर्ग में जरूर बेसी अशिक्षा रहल अछि आ वो अखनो अछि।” जाहि पर एक टिप्पणी सँ ‘जे बहुसंख्य वर्ग त अशिक्षिते छैक’ पुनर्प्रश्न कयला पर डा. पासवान कहलथि, “हँ, से त छैक।”
४. दरभंगा केन्द्रित मूल धारक राजनीति मे दशकों सँ अपन समर्पित योगदान देनिहार राजनीतिकर्मी अनिल झा कहलनि अछि, “मातृभाषा मे शिक्षा केँ नहि देब पहिल कारण, सरकार केँ शिक्षा केँ प्रति असंवेदनशील दोसर कारण आ योग्य शिक्षक केर कमी क संग प्रतिकूल शैक्षणिक वातावरण तेसर कारण।”
५. मिथिलाक एक सजग सपूत आ आईसीआईसीआई बैंक केर आईटी सेक्टर मे कार्यरत प्रदीप झा ‘मिथिला’ कहलथि अछि, “मिथिला त शिक्षा के भंडार अइ लेकिन दोसर राज्य के लेल। जाबेतक मिथिला अपन कर्मभूमि नहि बनत ताबेतक मिथिला के विकास संभव नहि, सरकार के मात्र अपन राजसी भोग स मतलब छैय। मिथिला के अपन कर्मभूमि नहि बनेबाक मुख्य कारणः
क. स्थानीय लोक में घमंड।
ख. एक दोसर के टांग खिचब।
ग. स्थानीय लोक के मुख्य उद्देश्य कोनों उलझन में फसेनाए।
घ. स्थानीय लोक में ईमानदारी के अभाव।
ङ. समय के कोनो मूल्य नहि ।
च. कमिटमेंट के अभाव ।
६. मिथिलाक एक बहुचर्चित उद्योगपति आ मल्टीनेशनल कंपनीक प्रबन्धक स्तरक अनुभवी सज्जन, हाल ‘मिथिला मखान’ केर प्रशोधित आ तैयारी खाद्य पदार्थक मैनुफैक्चरर-डिस्ट्रीब्युटर, कतेको रास हाई प्रोफाईल एमएनसी सब केँ मखान आपूर्तिकर्ता मनीष आनन्द कहलथि अछि, “हमर समझ मे पिछड़ापन केर कइएक कारण में मुख्य कारण
क. हम सब संगठित नै छी..
ख. असहयोग स बेसी ईर्ष्या आ केकड़ा के तरह टांग खिंच नीचा गिरेनाय
ग. इन्वेस्टर के लिटमस टेस्ट केनाइ
घ. मैथिल लोक के मैथिल उद्यमिता पर अविश्वास
शिक्षा कहियो स पिछड़ापन के कारक नै रहै।”
७. विदुषी सुधा ठाकुर जे अपन प्रगतिशील आ विकासक अनेकों फोर्मूला सब अधिकतर सभा आदि मे खुलिकय साझा करैत रहली अछि हुनकर कहब भेलनि, “हमरा बुझने जे मिथिला आ मैथिलि स जहिया घर मे अन्न, बस्त्र आबय लागत, मैथिलि आ मिथिला प्रति प्रेम बढत, पलायन घटत आ संगहि पिछड़ापन सेहो कम होयत। जकर उदाहरण स्वरुप यदि कुम्हर मिथिला मे फरैत छैक त आगरा के पेठा नै मिथिला के मुरब्बा नामी होबक चाही। कहियो फुर्सत मे एहि विषय मे छलफल (विचार-विमर्श) के कार्यक्रम बनाउ, हम उपस्थित होयब।”
८. समाजशास्त्री आ नेपाल मे द्वंद्व-समाधानक लेल अद्भुत सूत्र प्रतिपादक युवा अभियन्ता ‘भरत साह’ कहलथि अछि, “अशिक्षा के कारण गरीबी। आ गरीबी के कारण अशिक्षा। गरीबी आ अशिक्षा दुनु एक दोसर के cause and effect है।”
९. युवा सामाजिक अभियन्ता श्रवण झा ‘अशिक्षा’ केँ पिछड़ापनक मुख्य कारण पर आपत्ति जनबैत कहैत छथि, “झूठ! सरासर झूठ! मिथिला कहिओ अशिक्षित नहिं छल आ एखनो नहिं अछि। रहल विकासक वा पिछड़ापन त सब दिन स आइयो धैर मात्र टांग खिंचाई प्रबल रहल। कोनो वर्ग हो, एक दोसरक पूरक नहिं रह्लौंह। से प्रायः मिथिलाक माटिए में अछि। तैं मैथिल परदेश में जयजयकार आ अपने घर मे हाहाकार!”
१०. मिथिलाक प्रसिद्ध गायक ‘मिथिलारत्न सुरेन्द्र यादव’ कहैत छथि – “अयोग्य शिक्षक”।
११. पवन झा मैथिल कहलथि, “आरक्षण आ शिक्षितक पलायन”।
१२. मनीष चौधरी – “बेटा बेटी में भेदभाव क एक मुख्य कारण सेहो छल अखन धरि किछु कम भेल”।
१३. चर्चित आ लोकप्रिय संचारकर्मी एवं विचारक वर्गक मित्र पंकज कुमार झा एक शब्द मे कहला – “कबिलैती।”
१४. जानल-मानल प्रहसन अभिनेता आ विद्वान् चिन्तक-लेखक ‘अद्भुतानन्दजी’ कहलथि, “अर्थाभाव जेकर प्रमाण हम स्वंग छी । अशोक पेपर मील १९७७ में डूबल, बाबुजी बेरोजगार भ गेला आ हमर शिक्षा बन्द ।”
१५. शिक्षाविद् अजय झा कहलथि, “अभिभावक जनमे शिक्षा के महत्व के अभाव।”
१६. युवा अभियन्ता विद्याधर ठाकुर कहलथि, “शिक्षा विभाग।”
१७. कर्ण राजेश जे समय-समय पर अपन विज्ञ विचार मैथिली-मिथिला एवं समाजक विभिन्न सरोकारी विषय पर रखैत रहैत छथि, ओ कहलथि, “आर्थिक अभाव… एखन शिक्षा बहुत महग भेल छैक…. अहुना कहि सकैत छी जे एहि युग मे लक्ष्मी केर मुट्ठी मे सरस्वती कैद छथिन।”
१८. लोकगायक आ मैथिली-मिथिला विषय पर अक्सर बेवाक विचार रखनिहार सुभाष वीरपुरिया कहला, “गुलामी भैया गुलामी।”
१९. नेपाल केर युवा अभियानी आ विचार सम्प्रेषण मे सदिखन आगू रहनिहार व्यक्तित्व प्रवीण झा कहलथि – “दहेज ही हेतै..???”
२०. कोलकाता सँ संचारकर्मी एवं प्रखर विचारक पवन कुमार झा ‘अग्निवाण’ कहलथि, “अधिसंख्य वर्ग के संकीर्ण सोच।”
२१. युवा चिन्तक कृष्णकान्त झा कहलथि, “निर्धनता और स्वार्थ।”
२२. विचारक-चिन्तक ‘झा कमख्या’ अपन विचार देलथि, “अशिक्षाक कारण हिन्दी थोपब आ महग शिक्षा । पाठशालामे मैथिलीक पढौनी होइ ।हम सभ जे मैथिलीक नामपर चाह जलपान मे खर्च करैत छी तकर दसमो भाग मैथिली बालपोथी आ बच्चा सभक जुटान पर खर्च करी त अशिक्षा कम भ सकैत छैक । सरकारी तन्त्र सभदिन मैथिली विरोधी रहल अछि । एकजुट भ सभ मैथिल अपन अधिकार लेल लडी । हम सभ अपनामे लगले गुटबन्दी करय लगैत छी । ई प्रवृत्ति सेहो अशिक्षाक मूल कारण भेलैए ।
किछु लेखक आ समाज सेवी, जेना रमानन्द झा रमण, दिलीप कुमार झा, सविता झा खान आदि मैथिलीक विकासक हेतु तत्पर छथि । हुनकासँ पहिने जयकान्त मिश्र, गोविन्दझा, बाबू साहेब चौधरी समेत कतेको गणमान्य व्यक्ति शिक्षाक हेतु अथक प्रयास क चुकल छथि । राजनैतिक षड्यन्त्र बेसी सक्रिय रहल अछि। सैह मिथिलामे शिक्षाक बाधक तत्व रहल अछि ।
लिखैत लिखैत कमलेश झा, जीवकान्त आ आधुनिक कवि ईशनाथ सेहो मोन पडैत छथि जे शिक्षाक विकास लेल प्रयत्नशील रहलाह आ छथि ।”
२३. प्रकाश राय – “जनचेतनाके कमी।”
२४. राम सुनर दास – “अशिक्षा और अशिक्षाक सब राजनीतिक स सम्बन्धित छै महाशय। बिना सिस्टम ठीक भेने कोनो मे सुधार नै हेयत।”
२५. प्रेम चन्द्र मिश्र – “गरीबी संगैहि गरीबी सोच।”
२६. पुण्येश झा – “राजनैतिक दल के सत्ता लोलुपता।”
२७. शैलेन्द्र कुमार छोटू – “हड़ताली…. मास्टर सबहक धरनानीति, कर्म आ पढौनी साढ़े बाइस… किछु के छोड़ि सबहक एकहि हाल।”
२८. कामना शिखा मिश्रा – “शिक्षा में पिछड़ल मिथिलाक दू टा कारण जाहि सं कि इनकार नहिं कयल जा सकैत अछि; पहिल रूढ़िवादिता, यथा बेटी पढ़ि क’ की करतीह, चिट्ठी पत्री आबि गेलन्हिं वैह बहुत बला सोच आ दोसर आर्थिक अभाव।”
२९. समीक्षा झा – “शायद गरीबी। अथवा सोच…।”
३०. संतकुमार मंडल – “विचारधारावादी नेतालोकैन के निजी स्वार्थ सेहो अछि मिथिला क्षेत्रक दयनीयता ।”
३१. संतोष झा – “दुनू मे कोनो नहि, बस प्रत्येक मैथिल के अपना ऊपर गुमान बहुत अछि, एहि लेल ई हाल अछि।
निष्कर्षः
अपने सब गोटाक जवाब काफी सान्दर्भिक आ सारगर्भित अछि।
पिछड़ापन केर मूल कारण अशिक्षा केवल मुट्ठी भरि विकसित या उच्चवर्गक एलिट्स क्लास केर लोकक शिक्षा देखिकय नहि कहल अछि…. एहेन खास वर्ग त अदौकाल सँ शिक्षा सँ जुड़ल बेहतरीन करिते रहला अछि, हमर अभिप्राय मिथिलाक बहुसंख्यक आमजन सँ अछि जे आइयो पिछड़ा आ अशिक्षित छथि। ई वर्ग केर बाल-बच्चा केँ सुशिक्षित-सुसंस्कृत बनेबाक लेल जहिना पूर्वक सामन्ती प्रथा द्वारा वंचित कय केँ राखल गेल, ठीक तहिना वर्तमान समय मे गैर-मातृभाषा केर माध्यम सँ शिक्षा व्यवस्था लादिकय बहुसंख्य धियापुता केँ अशिक्षित आ पिछड़ल रहय वास्ते बाध्य कयल गेल स्पष्टे देखाइत अछि।
अतः अनिल झा भाइ केर जवाब बड़ा सटीक आयल जे अपन मातृभाषा मे शिक्षा नहि भेटबाक अवस्था, फेर सरकार यानि राजनीतिक दल जे सत्ता संचालन करैत अछि ओकरा सहित कार्यपालिका-न्यायपालिका सहित लोकतंत्रक लगभग सब अंग आमजनक शिक्षा प्रति संवेदनशील नहि रहबाक दोसर प्रमुख कारण आ तेसर प्रमुख कारण जे शिक्षा व्यवस्थाक विद्यमान स्वरूप मे योग्य शिक्षकक अभाव आ पंचायती राज मे शिक्षा सुचारू रखबाक लेल गठित ‘शिक्षा समिति’ जे स्वयं अपनहि सरोकारवाला केँ लैत व्यवस्थित कयल गेल अछि ताहि मे अनेकों तरहक ब्रह्मलूट (भ्रष्टाचार) व्याप्त रहबाक अवस्था देखल जाइछ।
आन सब कारण आमजन, बहुसंख्य जनताक हिसाब सँ प्राथमिक कारण मे नहि पड़ैछ। निश्चित ओहो सब कारण शिक्षा प्राप्ति मे बाधक होइत छैक, मुदा मुख्य कारण जे स्कूल तक जाय सँ रोकि रहलैक अछि अधिसंख्य नवसिखुआ बच्चा केँ ओ थिकैक ‘दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली’ आ ‘प्राथमिक शिक्षा निज मातृभाषा मे’ नहि देबाक नीति व नियति।
हरिः हरः!!