हर सफल महिला के पाछाँ एक पुरुष के हाथ होइत अछि – प्रतिभा झाक लेख

लेख

– प्रतिभा झा, विराटनगर (बीए, प्रथम वर्ष)

ओहि पुरुषके हमरा तरफ सं कोटि-कोटि प्रणाम जे एहि कलयुग मे नारीक सम्मान के रक्षा हेतु अपन मस्तक के छिन क’ दैत छथि! “हर सफल महिला के पाछाँ एक पुरुष के हाथ होइत अछि” । हिंदू परम्परा के परिवार में सामान्यतः पितृसत्तात्मक समाज ही होइत अछि, मुदा एकर साथ ई स्थापना कएल गेल अछि जे ‘नारी प्रथम प्रणामके अधिकारी छै’।
पूजनीय आधारभूते मातृशक्ति
नमोस्तुते, नमोस्तुते, नमोस्तुते
पितृसत्तात्मक समाज मे जे एक प्रमुख लक्षण मानल गेल छै, जे विवाह संस्था में स्त्री अपन माँ-बाप के परिवार छोड़ि क अपन पति के घर जाइत छै आ परिवार के मुखिया के रूप में पुरुष कानूनी, सामाजिक, सांस्कृतिक व पारिवारिक दायित्व के पूर्ति करैत अछि। मुदा परिवार या कुटुंब परम्परा के ई प्रमुख लक्षण के अंतर्तत्व के अध्ययन करी त हम सब समैझ पाएब कि परिवार के घोषित मुखिया पुरुष होइत अछि मुदा परिवार के चालन, परिचालन, पालन, पोषण, निर्णय, में स्त्री ही प्रमुख भूमिका में होइत अछि। बिना महिला के प्रमुख सामाजिक, पारिवारिक, सांस्कृतिक व धार्मिक प्रसंग केर कल्पना भी नै कएल जा सकैत अछि। महिला एहि प्रसंग के अधिष्ठात्री होइत अछि। अपना देशमे नारी शक्ति के संदर्भ में ई आधारभूत तथ्य छै कि एतय विदेशी सब जेकाँ नारी विषय केँ पृथक् नै मानल गेल छैक।
वर्तमान मे समयके साथ-साथ परिभाषा बदैल रहल छै। पुरुष आ नारी एक्के छै। मार्कणडेय पुराण मे जखन देवता असुर सँ पराजित भेल छल तखन देवता के प्रार्थना सुनि नारी-रूपमे शक्ति प्रकट भेल छलीह आ असुर सभक संहार केने छलीह। महादेव के बहुत बडा योगदान छलन्हि दुर्गा शक्ति के उजागर करय मे। अपना संस्कृतिमे नारी सर्वत्र शक्ति-स्वरूपा छै। वर्तमान समय मे महिला द्वारा प्राप्त कएल गेल सफलता देखैत कि ई नहि कहल जा सकैत छै जे “हर सफल महिला के पाछाँ एकटा पुरुष केर हाथ होइत अछि”? महिला घरके चारिदिवारी लाँघि क प्रत्येक क्षेत्र मे कार्य क रहल अछि। एहि बदलाव के मुख्य कारण पुरुष के सोच मे बदलाव, मानसिकता मे बदलाव छै। पुरुष सचमे प्रेम के परिभाषा के समझैत और महिला के जीवन पथ पर उन्नति के तरफ बढयलेल प्रेरणा दैत छै। ओ पिता, भाइ, पति, मित्रगण, कोनो रूप मे साथ दैत छै। नारी के माता होना ओकर स्वयं द्वारा अर्जित कोनो विशेषता नै छै, बल्कि ई प्रकृति द्वारा कयल गेल व्यवस्था छै। कोनो भी सृजन योग सं होइत छै। अकेला पुरुष आ अकेले नारी दुनू व्यर्थ छैक। दुनू एक दोसराक लेल आवश्यक छै। नारी महान छै ! नारी माता छै ! नारी शक्ति छै ! नारी ममता के मूरत छै ! नारी अबला छै ! नारी भोग्या छी !! …… एहेन तरह के अनेक वाक्य नारी सबहक सम्बन्ध में लिखल गेल छै। परिभाषा धीरे-धीरे बदैल रहल छै। संकुचित सोच आब विस्तृत आसमान खोजि रहल छै। अपना आप के पाछाँ राखिकय अपन साथी केँ आगाँ बढ़ाबय के उत्साह आब केवल महिला तक मात्र सीमित नै छै। पुरुष भी साथ और समर्पण सं महिला के विकास में नया भागीदारी तय कय रहल छै। हमेशा ई कहल जाइत छै कि जमाना बदैल गेल छै, आब महिला घरके चारदिवारी लाँघि क प्रत्येक क्षेत्र में कार्य क रहल छै, मुदा एकर पाछाँ ई महत्वपूर्ण तथ्य के ऊपर ध्यान आकर्षित करबाक आवश्यकता छै कि एहि परिवेश के बदलाव के मुख्य कारण हि पुरुषक सोच मे बदलाव, ओकर मानसिकता में बदलाव छै।
आजुक पुरुष सच में प्रेम के परिभाषा जानिकय ओकरा अपन व्यवहार में उपयोग करै छै। चाहे ई प्रेम पति के रूप में होइ, भाइ के रूप में होइ या पिता के रूप में होइ। आजु के युग में वास्तव में घर के महिला के प्रगति पर खुश भ क महिलाके हौसला ब़ढ़ाबैत छै। आजु पुरुष अपन ‘अहम’ के त्याइग क सही अर्थ में महिला के इज्जत एवं सम्मान के दृष्टि सं देखैत छै। आजु महिला के प्रगति पर ओकरा पाछाँ खींचय के बजाय महिलाके उत्साहवर्धन कएल जाइत छै। पुरुष स्वयं सं अधिक काबिल महिला के प्रगति के स्वीकार क क ओकर प्रगति में सहायक होइत अछि। समर्पण, त्याग, बलिदान आब मात्र महिला द्वारा कएल गेल कार्य नै छै। एहि बदलैत युग में पुरुष सेहो महिला के सफलता हेतु त्याग, बलिदान करि क सच्चा प्रेम के प्रति समर्पण के भाव रखैत छै। अतः हम आजुक एहि आधुनिक युग में पुरान कहावत के साथ-साथ, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में महिला द्वारा हासिल कएल गेल सफलता के देखिकय, नया कहावत – ‘हर सफल महिला के पाछाँ एक पुरुष के हाथ भी होइत छै’ कहि सकैत छी। “तै दुवारे नै नर बिनु नारि आ नै नारि बिनु नर” कहबी बिल्कुल सच अछि।