मिथिला आर्ट, लिटरेचर एन्ड फिल्म फेस्टिवल – सहरसा
अप्रैल २ सँ ४, २०२१ ई.
प्रस्तावित स्थल – जिला प्रेक्षागृह, विकास भवन समीप सहरसा – जेकर उद्घाटन हालहि बिहार सरकार द्वारा सम्पन्न भेल अछि, जाहि ठाम सहरसाक सर्वथा नव आ आधुनिक सम्पूर्ण सुविधा जाहि मे ३६० गोटाक बैसबाक आ अपनहि स्थान सँ माइक्रोफोन मे बजबाक – एतेक मुख्य सुविधा उपलब्ध अछि, ताहि ठाम मैथिली-हिन्दीक प्रख्यात चेहरा “शैलेन्द्र शैली” केर संयोजन आ हमरा सभक अतिप्रिय मैथिली परिकल्पना मे सर्वथा उच्च मनोयोग सँ विचार आ काज दुनू कयनिहार व्यक्तित्व किसलय कृष्ण केर थीम आ परिकल्पना सहित तथा संस्कृति मिथिलाक अध्यक्ष महोदय – जेठ भैयारी तुल्य श्री राम कुमार सिंह भाइजीक अभिभावकत्व संग सहरसा, सुपौल आ मधेपुरा केर अनेकों समाजसेवी व साहित्यसेवी लोकनिक संरक्षकत्व मे अत्यन्त खास आयोजन होमय जा रहल अछि – मिथिला आर्ट लिटरेचर एन्ड फिल्म फेस्टिवल जेकरा शौर्ट मे ‘माल्फ’ कहल जाइछ।
विदिते अछि जे माल्फ २०१८ मे २८-३० दिसम्बर अर्थात् तीन-दिवसीय आयोजन भेल छल जे अपना आप मे अति-विशिष्ट आ विलक्षण अतिथि सत्कार व स्थानीय योगदानकर्मी लोकनिक सेवाभाव आदि मे अभूतपूर्व रहल छल हमरा दृष्टि मे – जाहि मे कुल २७ गोट साहित्यिक, सांस्कृतिक आ सिनेमाई सत्र आर लगभग १०० सँ ऊपर समस्त भारत ओ नेपाल केर मैथिली विज्ञ लोकनिक अपूर्व जमघट भेल छल। से, एहि वर्ष पुनः दोहरायल जायत, कहि रहला अछि किसलय कृष्ण।
एहि वर्ष किछु परिवर्तिक प्रारूप सेहो देखय मे आओत। कइएक बेर ई देखल गेल अछि जे नीक-नीक विषय पर वक्तव्यक फजगज मे विलक्षणता हेरा जाइत अछि, से परिकल्पनाकार एहि बेर कनेक अलग ढंग सँ जाय लेलआतुर छथि। ई आतुरता केवल विलक्षणता केँ जनप्रभावी बनेबाक लेल कहि सकैत छी। सहिये छैक, एक्के विषय पर – एक्के सत्र मे – आपसे मे मतभिन्नता आ मतखन्डन केर झगड़ा चरम पर पहुँचि जाय त दर्शक-श्रोता ठकायल अनुभव करैत छथि। तेँ एहि बेर मिथिलाक इतिहास, मैथिली भाषिक पहिचान, मैथिली लोक रंग मंच पर अलग-अलग व्याख्यानमालाक प्रस्तुति विशेषज्ञ वक्ता-ज्ञाता द्वारा राखल जायत।
एतबा कहाँ! पहिने किछु सीमा एहनो छल जेकरा उचित नहि कहय किछु लोक…. जेना राजनीति सँ हंटिकय केवल साहित्यिक-सांस्कृतिक…. नहि-नहि! जे राजनीति सब दशा-दिशा तय करैत अछि ताहि मे मैथिली कियैक पाछू रहय? बिना विद्वत् मार्गदर्शन आखिर राजनीति केर औकाते की? आइ जे राजनीतिक अराजकता आ जातीय आधार पर सामाजिक विखन्डन जेहेन महावाहियात अवस्था मिथिला (बिहार वा नेपाल) केर देखल जाइछ, तेकर समाधान सेहो त आखिर मैथिली साहित्यहि केँ सोचबाक छैक। साहित्य यदि प्रासंगिकता केँ नहि देखत त के देखत? वैह… जे आइ राजनीतिक गोटी सेटिंग मे सारा समाज आ सभ्यता केँ अपना टका आ दम्भ या दर्प सँ व्याख्या-परिभाषिक करैत पटना-दिल्ली-काठमान्डू-जनकपुर (राजधानी) धरि जाइत अछि? बिल्कुल नहि! एहि बेर ‘माल्फ’ केर परिकल्पना मे पंचायत प्रतिनिधि सँ लैत प्रखन्ड या जिला परिषद् या सामान्य राजनीतिक परिवेश मे सक्रिय विभिन्न सेवी लोकनिक संग चिन्तन आगू बढत। तेँ ईहो एकटा निश्चित मार्ग तय करयवला अछि जाहि सँ ‘माल्फ’ ऐतिहासिक होयबाक बात तय अछि।
एक आरो महत्वपूर्ण बात ई लागल जे – अत्यन्त प्राचीन समय सँ स्थापित मैथिली भाषाक वर्तमान स्वरूप आखिर संकुचित कियैक भऽ रहल अछि? माने जे मैथिलीक विभिन्न बोली आ मूल मातृभाषा मैथिलीक बीच आपेकताक भाव कम कियैक भऽ रहल अछि? से स्पष्ट अछि जे आपस मे कय रंगक झगड़ा – बोलीक अन्तर, जातीय भावना मे ऊँच-नीचक भाव, क्षेत्रीय भिन्नता सँ उपजल अस्मिताक आधार पर फर्क या दुराव… कय रंग के बात छैक… तेकरा सबटा के नीक सँ व्याख्या करबाक लेल २ घन्टाक एकटा महत्वपूर्ण सत्र राखल जायत – एकर नाम होयत “हिमवन सँ बाबाधाम” धरि। हमरा गजेन्द्र गजुर केर एकटा डकुमेन्ट्री फिल्म “मैथिली फूल नहि फुलबारी छियैक” से मोन पड़ि रहल अछि। लेकिन “माल्फ” आरो आगू किछु डेग बढाकय सब जिला सँ विज्ञ वक्ता केँ बजाकय मुख्य कारण तकबाक चेष्टा करत। आखिर लोक अपनहि मूल सँ भिन्न कियैक होबय चाहि रहल अछि, वा कियैक संयुक्त स्वामित्य सब नहि लय पाबि रहल अछि… से सब बात पर चिन्तन करत।
फिल्म केर अवस्था पर त स्वयं दशकों-दशक केर कइएक कथा-गाथा किसलय कृष्ण पूर्वहु मे लिखैत-कहैत रहला अछि। तखन एहि वर्ष ‘माल्फ’ द्वारा विगत यूट्यूब युग आ इन्टरनेट मार्फत रिलीज करबाक सुविधा भेटला उपरान्त मैथिली सिनेमा केर प्रगति-गति-मति-थिति-बिति सब विन्दु पर चर्चा करबे करत। संगहि हाल रिलीज भेल किछु नव सिनेमा केर प्रदर्शन सेहो कयल जायत।
रंग कलाक परिदृश्य मे काठमान्डू सँ दिल्ली धरिक टोली एबाक सम्भावना अछि। संगहि लोकनाच केर जीबित स्वरूप अन्तर्गत ‘विदापत नाच’, ‘झुम्मर’, ‘पमरिया’, ‘बहुरा-गोरहिन’, ‘लोरिक’, आदि प्रस्तुत कयल जायत।
पुस्तक प्रदर्शनी, चित्रकला प्रदर्शनी – संगहि हस्तकला आ गृहउद्योग द्वारा निर्मित मिथिलाक विभिन्न खाद्य परिकार वा अन्य चीज-वस्तु केर बिक्री-प्रदर्शनी स्टाल सेहो राखल जायत।
सहरसाक अतिथि-सत्कार त भाइ सब केँ बुझले अछि। हँ, तखन बीच मे जे छोड़ि-छोड़ि अतिथि सब अपने भागि जाइत छियैक से टा नहि भगबैक…! आर हमर एकटा आग्रह जे ३ दिन एहि उत्सव मे त १ दिन कम सँ कम क्षेत्रक भ्रमण कय पर्यटकीय महत्वक स्थल सब पर सेहो अपन-अपन मोबाइल आ फेसबुक सब पर नीक-नीक स्टोरी अपने लोकनि लिखबैक जाहि सँ आर्थिक विकासक नीक भविष्य निर्माण हेतैक। ई जरूरी छैक। ओहि ठामक बारहो-वर्ण-छत्तीसो-जाति केर विकास लेल आर्थिक उन्नति बेसी जरूरी छैक जे ‘माल्फ’ केर निहित उद्देश्य मे एक छैक। जिला प्रशासन आ राज्य केर कला-संस्कृति मंत्रालय सब धरि सेहो यैह प्रस्ताव जा रहल छैक।
पैछले बेर जेकाँ अहु बेर सक्रिय टीम मे हमरा सभक चहेता राजनीति मे सक्रिय कार्यकर्ता प्रभात रंजन भाइ, मोहिउद्दीन भाइ, राहुल झा, बौआ खान, राजेश रंजन, सुमन समाज भाइजी, सन्दीप कश्यप, भोगेन्द्र शर्मा निर्मल, विमलकान्त झा भाइसाहेब, कुमार आशीष जी, कन्हैया कुमार, श्रुति कान्त, पारस भाइजी, मधुकान्त झा, रमण ठाकुर जी आदि अनेकों कार्यकर्ताक संग विज्ञ-साहित्यकार व सलाहकार आदि मे डा. ललितेश मिश्र, डा. महेन्द्र, डा. अरविन्द मिश्र नीरज, डा. कमल मोहन चुन्नू, डा. रामचैतन्य धीरज, डा. गणेश मिश्र, डा. अशोक सिंह तोमर, डा. रफत परवेज, संजय कुमार यादव, सुभाषचन्द्र झा, विमलजी मिश्र, मनोज श्रीपति, प्रो. विद्यानन्द मिश्र, आचार्य धर्मेन्द्र नाथ मिश्र, जीवानन्द झा, मुन्ना चमन, करुणा झा, दक्षिणेश्वर प्रसाद राय, अमोल राय, अरुण माया, डा. तारानन्द वियोगी, अजित आजाद, विनोद कुमार झा, कथाकार अशोक, कुणाल ठाकुर, श्री कुणाल, किशोर केशव, संजीव मिथिलाकिङ्कर, रामबाबू सिंह, रमेश रंजन झा, धीरेन्द्र प्रेमर्षि, देवेन्द्र मिश्र, जीवनाथ चौधरी, श्यामसुन्दर शशि, अशोक दत्त, कर्ण संजय, एस. सी. सुमन, कश्यप कमल, इन्दुलेखा झा, डा. रेणू सिंह, डा. शेफालिका वर्मा, डा. विभा कुमारी, विभा झा, डा. महेन्द्र नारायण राम आदि अनेकों नामचिन हस्ती लोकनिक सहोयग व सहभागिता रहबाक निस्तुकी अछि। मैथिली जिन्दाबाद केर प्रतिनिधिक रूप मे हमर सहभागिता डा. आभास लाभ संग आ सपत्नीक श्रीमती वन्दना चौधरी व सोशल मीडिया मे सर्वाधिक सक्रिय श्रीमती भावना मिश्रक सहभागिता सेहो होयबाक उम्मीद अछि।
हरिः हरः!!