मैथिलीभाषी जनमानस मे भाषिक जनजागरण अत्यावश्यक – समेकित अभियान शीघ्र संचालित होयत

विशेष सम्पादकीय

सन्दर्भ नेपालक जनगणना २०७८ आ मैथिली भाषाक स्थिति पर सामाजिक चिन्तन

विदिते अछि जे नेपालदेश मे एहि वर्ष २०२१ (विक्रम संवत साल २०७८) मे जनगणना होमय जा रहल अछि। भाषिक पहिचान केर आधार पर नेपालदेश मे नेपाली भाषाक बाद दोसर सर्वाधिक बाजल जायवला भाषा मैथिली केर छैक। पिछला जनगणनाक तथ्यांक सेहो एहि बातक पुष्टि करैत छैक। नेपालक नव संघीय संरचना मे निर्धारित प्रदेश १, प्रदेश २ आ प्रदेश ३ मे सेहो मैथिली भाषाक स्थान प्रमुख छैक। प्रदेश २ केर त सब सँ बेसी बाजल जायवला भाषा मैथिली थिकैक आर ताहि आधार पर नव संविधानक प्रावधानक तहत मैथिली सरकारी कामकाजक भाषाक रूप मे स्वतः प्रोन्नति आ मान्यता प्राप्तिक अधिकार सेहो रखैत अछि, धरि एहि लेल राजनीतिक मानसिकता कतहु न कतहु कन्नी कटैत देखाइत छैक। यैह कारण छैक जे प्रदेश मे मधेशवादी राजनीतिक दल केर सरकार रहितो, प्रमुख विपक्षी दल मे नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी आ नेपाली कांग्रेस केर प्रबल समर्थन रहितो, आन्तरिक रूप सँ मैथिली प्रति स्वीकार्यता स्वयं मधेशवादी दल – सत्तापक्ष मे नहि रहबाक चलते अनिर्णयक स्थिति विद्यमान छैक। मैथिली भाषा प्रति भिन्न-भिन्न तरहक शंका-आशंकाक स्थिति सेहो एहि राजनीतिक चिन्तक आ एतेक तक कि बहुसंख्यक समाज केँ अगुवाई करनिहार मैनजन-मुखियाक मन-मस्तिष्क मे घर बनौने देखा रहलैक अछि। आर, यैह मुख्य कारण छैक जे मैथिली नहि त प्रदेशक राजकाजक भाषाक रूप मे, नहिये शिक्षा पद्धति मे अनिवार्य विषय अथवा प्राथमिक शिक्षाक माध्यमक रूप मे, आइ दुरावस्थाक शिकार बनि गेल छैक। निरपेक्षता सँ देखला पर भाषा-साहित्यक स्थिति विश्वक कोनो विकसित भाषा सँ कमजोर बिल्कुल नहि छैक, बल्कि एतेक जिवन्त आ सक्रिय सृजनकर्म त बहुत कम्महि भाषा लेल होइत छैक जतेक कि मैथिली भाषा मे, मुदा राजनीतिक संरक्षण आ संघीय लोकतांत्रिक गणतंत्ररूपी नेपाल मे एकर जेना विकास हेबाक चाही से नहि भऽ रहलैक अछि। एकल भाषा-भेष सँ बहरेबाक मानसिकता शासकवर्गक त नहिये छैक, स्वयं अपनो भाषाभाषी मे जातिवादी पहिचानक राजनीति प्रबल आ हावी होयबाक चलते आ थोड़-बहुत वर्चस्ववादी एकाधिकारक लक्षण आइ धरि कायम रहबाक चलते मैथिली उपेक्षित आ नगण्य-लोपोन्मुख भाषा बनल देखाइत छैक। तखन, एकटा नीक बात ई जरूर छैक जे आजुक सामाजिक-राजनीतिक जाग्रत समाज मे एहि विषय पर चिन्तन सेहो अनवरत जारी छैक। जेना-जेना जनगणना नजदीक आबि रहल छैक, तेना-तेना चिन्तनक दायरा बढैत देखाइत अछि। देश-विदेश मे कार्यरत विभिन्न संस्था आ खास तौर पर अपन पहिचान प्रति सजग रहल व्यक्ति आ संस्था – हर स्तर पर एहि विन्दु पर चिन्तन निरन्तरता मे देखल जाइत छैक। ई संकेत करैत छैक जे शंका-आशंकाक स्थिति रहितो एक सजीव समाज जेकाँ एहि विषय पर चिन्ता-चिन्तन कयल जा रहलैक अछि। समाधान सेहो समयानुकूल निकलतैक ई निस्तुकी छैक।

अमेरिका मे कार्यरत एक चर्चित संस्था ‘एन्टा’ द्वारा निरन्तर मैथिली भाषा आ मिथिला संस्कृति आधारित काफी महत्वपूर्ण कार्यक्रम सब कयल जा रहल अछि। हालहि २३ जनवरी २०२१ केँ सम्पन्न एकटा अत्यन्त महत्वपूर्ण वेबिनार ‘मैथिली भाषाक वर्तमान स्थिति – नेपालक जनगणना २०७८’ विषय पर भाषा वैज्ञानिक तथा नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानक प्राज्ञ परिषद् सदस्य प्रा. डा. योगेन्द्र प्रसाद यादव एवं प्राज्ञ राम भरोस कापड़ि भ्रमर जेहेन दुइ अति-विशिष्ट विद्वानक संग समस्त नेपाल सँ काफी रास विज्ञ-विद्वान् सब तुरियाक अभियानी कार्यकर्ता सभक संग विहंगम चर्चा कयल गेल। मैथिली जिन्दाबाद पर अलग सँ प्रकाशित एक पूर्ण प्रतिवेदन मार्फत एहि कार्यक्रम मे कयल गेल विमर्शक सम्पूर्ण व्योरा प्रकाशित भेल छैक। के सब छलाह, कि-कि बजलाह, कि सब समस्या, कि सब कमजोरी, कियैक अछि दुरावस्था, केना दूर होयत समस्या, जनगणना २०७८ लेल ठोस रूप सँ कि आ केना काज कयल जाय – हरेक विन्दु पर एतेक खुलिकय आ सुन्दर-सुन्दर तर्कक संग बातचीत होयब निश्चित एहि कार्यक्रम केँ सफल बनेलक। तखन विमर्शक बाद जमीनी अभियान मे कहिया आ केना परिणति पाओत ओ बात आ विचार – बस तेकर अछि इन्तजार।मैथिली जिन्दाबाद पर सविस्तार ई प्रतिवेदन पढू – समय लय केँ पढब, करीब ६५०० शब्दक आलेख छैक, साढे-तीन घंटाक चर्चा केँ संछेपीकरण करैत लिखलहुँ अछि। त्रुटि लेल क्षमाप्रार्थी छी। लेख एतय पढू – मैथिली भाषाक वर्तमान स्थिति – एन्टा वेबिनार
 
एहि चर्चा मे दरभंगा महाराजाक कार्यकाल सँ आरम्भ भेल आधुनिक मैथिली लेखन – महाराजहि केर उपक्रम ‘मिथिला मिहिर’ पत्रिकाक प्रकाशन मार्फत तय कयल गेल मानक – आर वर्तमान समय मे नेपालक मैथिलीभाषी केँ ओहि तरहक मानकक मैथिली सँ आपेकताक अभाव, फर्क बोली-शैली होयबाक आत्मानुभूति, पढय-लिखय मे कठिनाई, आधिकारिक गतिविधि व अवसर मे पहुँचक अभाव आ समग्र मे अपना केँ एहि मैथिली लेल अयोग्य मानि लेबाक आ फरक भाषिक पहिचान मे सम्मान तकबाक अवस्था – संस्थागत वा व्यक्तिगत आयोजन सब मे आभिजात्य शैलीक उपयोग-प्रयोग सँ सर्वहारा व जनसामान्य वर्गक लोक मे वितृष्णा आ स्वयं केँ ओहि सँ कटल-छँटल होयबाक अन्तर्भाव – माने जे सब समस्या पर खुलिकय विमर्श भेलैक। हालांकि विज्ञ-विशेषज्ञ आ भाषा विज्ञानक आधार पर ई स्पष्ट करितो जे हरेक भाषा केर अनेकों बोली (भाषिका) सब होइत छैक, शब्दकोश केर परिमार्जन हरेक स्तर पर सम्भव छैक, व्याकरणीय सिद्धान्तक वर्तमान स्वरूप मे आर बेसी सहजीकरण करैत एकर पठनीयता आ लेखनक सहज विस्तार सेहो सम्भव छैक – एहि सब विन्दु पर नीक सँ विचार सब राखल गेलैक। जनचेतना आ जनजागरण मार्फत भ्रम, शंका, आशंका आ तुच्छ-उच्च मनोभावक कारण कित्ता कटेबाक गलती सँ समाज केँ बचेबाक जरूरत पर सेहो समेकित अभियान चलेबाक सुझाव तक एहि विमर्श (वेबिनार) मे सोझाँ आयल अछि। ईमानदारी सँ एकरा धरातल पर उतारबाक जरूरत छैक। राजकुमार महतो समान अनुभवी संयोजक, राम भरोस कापड़ि भ्रमर समान मार्गदर्शक, स्वयं प्रा. डा. योगेन्द्र प्रसाद यादव समान निर्देशक-समन्वयक – आर अनेकों संस्थाक संस्था-प्रमुख लोकनिक एकजुटता मे – सभक समेकित सहयोग आ प्रयास सँ धरातल पर अभियान केँ उतरय मे आब बेसी समयो नहि लागत सेहो निश्चित अछि। तदनुसार, ई तय मानू जे मैथिली भाषाक संख्या पूर्व सँ बेसी होयत, कम त बिल्कुल नहि होयत। आर राज्य सेहो जल्दिये मैथिलीक यथार्थता सँ परिचित भऽ यथाशीघ्र राजकाजक भाषाक रूप मे, शिक्षा मे, लोकसेवा आयोगक परीक्षा मे, सरकारी विज्ञापन मे, संचारकर्म मे – हर स्थान पर मैथिली केँ यथोचित सम्मान देत। जाग्रत समाज अपन सब अधिकार सुनियोजित ढंग सँ हासिल कय लैत अछि, से मैथिली लेल जरूर पूर्ण होयत।
हरिः हरः!!