२४ जनवरी २०२१ – मैथिली जिन्दाबाद!!
एसोसिएशन औफ नेपाली तराईयन्स इन अमेरिका – एन्टा द्वारा काल्हि २३ जनवरी २०२१ नेपालक समय रात्रि ८ बजे सँ ११ः३० बजे धरिक समय मे अत्यन्त महत्वपूर्ण विषय पर उत्कृष्ट विमर्शक आयोजन कयल गेल। एन्टा एहि तरहक कार्य निरन्तर करैत आबि रहल अछि आर एहि मे मैथिली भाषा केन्द्रित विमर्श ओ चिन्तन बहुत सारगर्भित आ सान्दर्भिक होयबाक संग नेपाल केर आगामी जनगणना २०७८ साल जे आबि किछुए मासक बाद कयल जायत ताहि प्रति आम जनचेतना जागरणक कार्य सेहो करैत आबि रहल अछि।
काल्हि आयोजित कार्यक्रमक विषय “वर्तमान मे मैथिली भाषाक स्थिति आर नेपाली जनगणना-२०७८” पर संवाद एवं विचार-विमर्श भेल जाहि मे आत्मालोचनाक संग-संग भाषिक-साहित्यिक दायरा केँ बढेबाक, आमजन व बहुजनक बोली व शैली पर आधारित लेखन करबाक, व्याकरण आ शब्दकोश मे परिमार्जन, शिक्षा आ संचार मे मैथिली लागू करबाक, संविधान प्रदत्त अधिकार मुताबिक कम सँ कम प्रदेश २ मे सरकारी कामकाजक भाषाक रूप मे मैथिली केँ मान्यता प्रदान करब – एहि समस्त सन्दर्भित विन्दु पर विहंगम चर्चा विभिन्न भाषाविद्, साहित्यकार, अभियानी व आयोजक संस्थाक विज्ञजन लोकनि राखलनि।
ई आयोजनक अध्यक्षता एन्टा प्रेशिडेन्ट डा. इन्द्रदेव साहु आ संचालन एन्टा स्पोक्सपर्सन मोहन यादव द्वारा कयल गेल। एहि मे मुख्य अतिथिक तौर पर नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानक प्राज्ञ परिषदक आजीवन सदस्य आ सुप्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक प्रा. डा. योगेन्द्र प्रसाद यादव उपस्थित छलाह। तहिना विशिष्ट अतिथि आ भाषा-साहित्य संग सम्पूर्ण मैथिली-मिथिलाक विज्ञ ज्ञाता प्राज्ञ रामभरोस कापड़ि भ्रमर तथा इंजीनियर सत्यनारायण साह केर उपस्थिति आ प्रस्तुति वेबिनारक मुख्य आकर्षण रहल। भाषा-साहित्यक अभियान संग संचारक्षेत्र मे विशेष योगदान देनिहार नेपाली टेलिविजन पत्रकार श्यामसुन्दर यादव ‘पथिक’ एवं मैथिली जिन्दाबादक सम्पादक प्रवीण नारायण चौधरीक सहभागिता छल। तहिना नेपाल सँ भाषा-संस्कृति व विभिन्न सामाजिक अभियान मे निरन्तर कार्य कयनिहार भोर केर संस्थापक अध्यक्ष राजकुमार महतो संग युवा अभियानी लोकनि संतोष कुमार साह, कतारक दोहा सँ राम अधिन सम्भव, सप्तरी सँ गजेन्द्र गजुर, लहान सँ हृदय नारायण यादव एहि कार्यक्रम मे वक्ता-विचारक केर रूप मे भाग लेलनि। भारत सँ विद्वान्-साहित्यकार आ लोकसाहित्य मर्मज्ञ डा. महेन्द्र नारायण राम, वीरगंज सँ इतिहासविद् प्रा. डा. वासुदेवलाल दास – ई दुइ गोटेक विशिष्ट उपस्थिति अपेक्षित रहितो तकनीकी कारण सँ हिनका लोकनिक उपस्थिति नहि भऽ सकल छल।
एन्टा (आयोजक) अमेरिकाक प्रतिनिधित्व करैत विशिष्ट वक्ता लोकनि मे पास्ट प्रेशिडेन्ट विजय सिंह, यूएन धरि मैथिलीक प्रतिनिधित्व कयनिहार व्यक्तित्व डा. राम कृष्ण साह, एन्टा मेम्बर डा. रविन्द्र मंडल तथा इन्जा अध्यक्ष (पत्रकार) गुणराज लुइटेल केर उपस्थिति अति विशिष्ट रूप सँ आ सहयोग लेल सेहो छल। एहि कार्यक्रम केर लाइव प्रसारण कुल ९ गोट मीडिया द्वारा भेलैक जे गुणराज लुइटेलजीक सहयोग सँ भेलैक। ईनेपलीज, सागरमाथा टीवी, नेपाली डायस्पोरा, ग्लोबल नेपाल टीवी, युरोप प्लस, नेपाल पाठशाला जापान, आदिक संग एन्टाक आफिसियल पेज सँ एकर प्रसारण कयल गेलैक।
कार्यक्रम मे रामभरोस कापड़ि भ्रमर द्वारा सविस्तार मैथिलीक वर्तमान अवस्था पर प्रकाश दैत स्पष्ट कयल गेलैक जे कतिपय कारण सँ बहुसंख्यक भाषाभाषी मे सन्देहक अवस्था छैक। व्याकरण, मानक, वर्तनी मे गड़बड़ी जे परम्परागत रूप सँ मैथिली लेल विकसित भेल छैक से एकर मूल कारण थिकैक। तहिना मैथिली लेल जैह किछु अवसर राज्य द्वारा अकादमिक तौर पर देल जाइत छैक ताहि ठाम सेहो भाषिक दूरीक नाम पर किछु खास लोक द्वारा वैयक्तिक स्तर पर हावी हेबाक कारण सन्देह आर बेसी गहींर भेलैक। आर एहि सब कारण एकटा अलग भाषिक पहिचान ठाढ करबाक खतरनाक परिणामदायी अवस्था बनि जेबाक विन्दु पर ओ प्रकाश देलनि। एहि लेल आवश्यक सुधार लेल पाठ्यक्रमक विकास मे बहुसंख्यकहि द्वारा प्रयुक्त भाषा-बोली-शैली केँ स्थान देबाक संग सरकारी अवसर मे सेहो सर्वसमावेशिकता केँ अपनेबाक विन्दु सब पर सुझाव रखलनि। विद्वत् कार्य लेल व्याकरण केँ पुनर्लेखन करबाक आ शब्दकोश केँ सेहो आमजनक बोली सब केँ समेटैत परिमार्जित रूप रखबाक दिशा मे सेहो ओ अपन मन्तव्य रखलाह। एहि लेल योग्य व्यक्ति आ गुरुजन प्रा. डा. योगेन्द्र प्रसाद यादवक ध्यान सेहो ओ बीच-बीच मे आकर्षित करैत रहल छलाह, कारण आधिकारिक तौर पर परिवर्तन मे डा. यादवक सहयोग अति आवश्यक अछि, भाषा वैज्ञानिक केर तौर पर सेहो आ नेपाल सरकारक उच्च परामर्शदाताक तौर पर सेहो।
प्राज्ञ रामभरोस कापड़ि भ्रमर केर सम्बोधन (पूर्ण पाठ)
राम भरोस कापड़ि भ्रमर – जे काज स्थानीय स्तर पर मैथिली लेल हेबाक चाही से काज एन्टा द्वारा भेल अछि, ई बहुत पैघ सन्देश छैक सभक लेल। भाषा-साहित्यक स्थापना आ विकास लेल जनगणना मे स्थान सुरक्षित राखब जरूरी छैक। जनगणना बड पैघ अवसर होइत छैक सामान्यतया। लेकिन नेपाल मे मैथिली लेल अवस्था कनेक असामान्य अवस्था बनि रहल छैक। ताहि हेतु हमरा सब केँ सतर्कतापूर्वक विचार करबाक अछि। एन्टा एहि कार्य केँ बखूबी पूर्णता दिश लय जा रहल अछि। एम्हर नेपाल मे सेहो शुरुआत भऽ गेल छैक। कथा, कविता, उपन्यास बहुत लिखलहुँ, लिखबे करब। एखन नेपाल मे मैथिलीक अवस्था पर विचार करब बहुत आवश्यक छैक। मैथिली लेल एक सामान्य नागरिक केर दृष्टि सँ हम दू टा बात देखि रहल छी – एकटा सामाजिक-राजनीतिक स्तर पर आ दोसर वैयक्तिक स्तर पर।
नेपाली बहुत कम समय मे राजनीतिक संरक्षण पाबि काफी आगू बढि गेल। लेकिन मैथिली दोसर सर्वाधिक बाजल जायवला भाषा रहैत विकास अपेक्षाकृत कम कय सकल अछि। सातम-आठम शताब्दी सँ जानल-मानल गेल भाषा मैथिली, बहुत काज नेपाल मे होइतो, ई सोचबाक जरूरत छैक जे मैथिली सँ लोक कियैक बेमातर भाइ जेकाँ कात होबय चाहैत छैक। दरभंगा महाराज केर समय सँ जे मानक सिद्धान्त तय कयलाह, जेकरा महाराजहि केर पत्रिका ‘मिथिला महिर’ मे निरन्तरता भेटलैक, ओकरे द्वारा निर्धारित मानक आइ व्यापकता पाबि सकल मैथिली लेल। ताहि दिन मे सब कियो वैह पढलक, चाहे जेना भेलैक। तहियाक व्याकरणीय गड़बडी, वर्तनी आ मानक केर गड़बड़ी आब नेपालक कतेको लोक केँ खटकय लागल छैक। पहिने फर्क नहि पड़लैक, लेकिन आब जखन स्वयं लिखबाक आ प्रयोग करबाक बेर एलैक अछि तखन समस्या अभरलैक अछि। लोक सन्देह मे पड़ल अछि जे हमर बाजब एक अछि आ लिखब दोसर – आर एहि सन्देहक कारण मैथिली सँ इतर अपन भाषिक पहिचान स्थापित करबाक एकटा मानसिकता समाज मे पसरलैक से स्पष्ट देखाइत अछि। कतेको लोक जे काल्हि धरि मैथिलिये मे पढलनि आ डिग्री सेहो हासिल कयलनि, ओहो सब सन्देहक चपेट मे पड़ल देखाइत छथि। ई मानसिकता केना एलैक? एहि पर चिन्तन करबाक जरूरत छैक। एक्के परिवार मे ५ भैयारी जँ अपन बोली-शैली फर्क के आधार पर भाषिक भिन्नताक बात करतैक त कहुँ सम्भव छैक? त भैयारी आ दियादक बीच मे सन्देहक अवस्था केँ दूर करबाक जरूरत छैक। नेपालहु मे जे मैथिलीक शिक्षा आ पुस्तक लेखनक काज भेलैक ताहि मे सेहो यैह समस्या एलैक, एहि पर सम्बन्धित निकाय केर ध्यानाकर्षण कराओल अछि, ओहि समिति मे हमरहु नाम अछि, डाक्टर योगेन्द्र प्रसाद यादव जे एहि कार्यक्रमक हिस्सा सेहो छथि, हुनकहु संज्ञान मे देने छियनि..! एहि प्रभाव सँ दूरी एलैक। एकरा दूर करब जरूरी छैक। कन्फ्यूजक स्थिति केँ कोना व्यवस्थापन कयल जेबाक चाही ताहि पर काज करबाक जरूरत छैक।
व्यक्तिगत आधार पर सेहो किछु लोक एकाधिकार रखबाक कार्य करैत अछि, ओ अवसर केँ आन व्यक्ति धरि नहि जाय दैछ। आर एकरो मूल कारण यैह छैक जे भाषाक दूरी मानकताक आधार पर बनल रहय, जाहि सँ अवसर पर एकाधिकार कायम रहय। एकर प्रमाण ई छैक जे एक्के व्यक्ति केँ पचीसो बेर कोनो अवसर प्राप्त करब, दोसर धरि ओकरा नहि जाय देबाक स्थिति सृजन करब। एहि तरहें सेहो जनसामान्य मे ई सन्देह गहींर भेलैक जे जेँ हमरा सभक भाषा मैथिली नहि छी तेँ ई अवसर हमरा सब लेल नहि बल्कि एक खास वर्ग लेल मात्र छैक। आर एतय सँ एकटा मानसिकता ओहि बहुसंख्यक समाज मे गेलैक जे मैथिली नहि त बाजि पाबि रहल छी, नहिये लिखि पाबि रहल छी, त कियैक न एकटा अलगे झंडा लय ली… आर एहि तरहें ओ सब अपन पहिचान अलग भाषाभाषीक रूप मे करबाक लेल आतुर भेलैक बुझाइत अछि।
हालांकि हमरा बुझने ई बहुत कठिन छैक, सरकारक तरफ सँ अलग भाषिक पहिचान केँ स्थापित करबाक कठिन प्रयास भऽ रहलैक अछि, लेकिन हमरा बुझने ई आरो बेसी गड़बड़ भऽ रहल छैक। ई नया पहिचान केँ स्थापित करबाक काज आरो कठिन आ दुरूह भऽ जेतैक जाहि मे कतेको दशक लागि सकैत छैक। जनगणना आबि रहलैक अछि, कहियो एहि मे २०-३० गोट भाषा रहैक जे कालान्तर मे अबैत-अबैत १२३ टा भाषा धरि पहुँचि गेलैक। अहाँ भाषा बना सकैत छी, लेकिन भाषा के निर्धारण के करतैक? भाषा के विज्ञान छैक। वैज्ञानिके ओ काज करतैक। भाषा मे ०.१% सँ लैत ४०-५०% तक केर भाषा जनगणना मे दर्ज छैक। आब सब त एक्के रंग नहि भऽ जेतैक! भाषाक सामर्थ्य अपन-अपन होइत छैक। आइ भारत मे मैथिली केँ अष्टम् अनुसूची मे स्थान भेटलैक। एहिना त नहि भेटि गेलैक! एकर अपन वैशिष्ट्य, अपन सामर्थ्य, विशेषता आदिक आधार पर ई सम्मानित स्थान भेटलैक। त, किछु गोटेक ई सोच जे एहि भाषा मे जखन हमरा प्राप्ति किछु होइते नहि अछि, बाजय सँ लय कय लिखय धरि हम एहि मे सफल होइते नहि छी त अपन अलगे झंडा बनाबी, ओहि मे काज करब, एहि तरहक सोच केर कारण मैथिली कमजोर भऽ रहलैक अछि।
आर जे मैथिली सँ अलग मगही या आन भाषा मे अपन गणना करेबाक दिशा मे सोचि रहल छथि हुनका लेल आरो बेसी चुनौतीपूर्ण आ दुरूह परिणाम आयब तय छैक। मैथिली एहिना भाषा केर दर्जा प्राप्त नहि कयलक, सैकड़ों वर्ष लगाकय मैथिली आइ एहि अवस्था धरि पहुँचल छैक। लगभग ७००-८०० वर्ष सँ निरन्तर लेखन, निरन्तर शोध, निरन्तर खोज – तखन जा कय आइ मैथिली स्थापित भाषाक स्थान प्राप्त कय सकल अछि। लेकिन मगही या बज्जिका – एकरा लेल त एखन आरो कतेको दशक लगतैक तेकर कोनो गारन्टी नहि छैक। हम पटना गेल रही जतय मगही अकादमी छैक, बज्जिकाक त एखन धरि कोनो तेहेन अस्तित्वो नहि छैक। मगही अकादमी मे तकला पर १० वर्ष पूर्वक प्रकाशित २-४ किताब उपलब्ध भऽ सकल। आब मैथिली केँ कमजोर कय केँ अपन ओ लोक सब एहेन कित्ता – एहेन झंडा कोना बनौलनि से विस्मित छी। अपन अधिकारक सुरक्षा करैत आत्महन्ता बनब नीक नहि। केकरो अधिकार पर कियो अंकुश नहि लगा सकैत अछि, लेकिन एहि तरहक निर्णय जे भविष्य केँ आरो अन्हार कय देत, एहि सँ बचबाक अनुरोध मात्र हम करैत छी।
किछु गोटे ईहो शिकायत करैत कहैत अछि जे किछु खास वर्गक लोक द्वारा हमरा सभक बोली-शैली आ लेखनी केर अपमान कयल जाइछ, ओकरा मैथिलीक रूप मे मान्यता नहि देल जाइत अछि, त हम हुनका सब सँ कहय चाहब जे एहि तरहक लोक केँ वैयक्तिक तौर पर विरोध करू नहि कि समग्र भाषा सँ अपना केँ अलग करैत मैथिली केँ कमजोर करू। अन्ततः जनगणना मे सब कियो ईमानदारीपूर्वक अपन स्वामित्वक भाषा मैथिली मात्र लिखाउ – ई भाषा अहींक छी। साँच कही त ई भाषा अहींक छी। अहाँ जाहि वर्गक आरक्षित भाषा बुझि रहल छी ओ सब एहि सँ स्थानान्तरित भऽ गेलाह, ओ सब आब घरहु मे एकर प्रयोग छोड़ि देलनि, पढाइयो अंग्रेजी, हिन्दी, नेपाली केर करैत छथि। अहाँ सब त एखनहुँ धरि एहि भाषा मैथिली केँ घर सँ व्यवहार धरि सब तैर बचौने छी। तेँ अपन स्वामित्व मैथिली पर बनौने रहू, जनगणना मे अपन संख्या केँ बचाउ आ बढाउ। बाकी विन्दु पर आपसी सहमति भविष्यहु मे बनत, लेकिन एखन जनगणना केँ केन्द्र मे राखि सब कियो मैथिली जरूर लिखाउ।
कार्यक्रम मे आगू कि सब भेल –
वक्तव्यक क्रम केँ आगू बढबैत एन्टाक पास्ट प्रेशिडेन्ट विजय सिंह द्वारा प्रमुख अतिथि प्रा. डा. योगेन्द्र प्रसाद यादव केँ विशेष रूप सँ अपन आई-एस्सी कक्षा मे अंग्रेजीक प्राध्यापक – गुरुक तौर पर विशेष प्रणाम अर्पित करैत स्वागत मन्तव्य रखलनि। हुनका समान वरिष्ठजनक विज्ञता सँ आयोजन कृत-कृत्य होयबाक अपेक्षा रखैत ओ आजुक आयोजनक लाभ आमजन धरि पहुँचबाक शुभकामना सेहो देलनि। एन्टा आ अपन भाषा-कल्चर प्रति असीम जुड़ाव रखनिहार कार्यक्रम संचालक मोहन यादव केँ भविष्यक नेतृत्व कहैत प्रशंसा सेहो कयलनि। भाषाक सम्बन्ध मे राम भरोस कापड़ि सँ सहमति जतबैत मैथिली केँ तोड़बाक षड्यन्त्र पर दृष्टिपात कयलनि। उदाहरण दैत कहला जे हमरा गाम मे लोक बजैत अछि मैथिली आ जनगणना मे लिखबैत अछि उर्दू। अपनहि भीतर सेहो एकटा षड्यन्त्र रहबाक बात कहैत बजबाक शैली मे फर्क केर आधार पर स्वयं केँ मैथिली सँ इतर मानबाक बात पर सेहो ओ स्पष्ट कयलनि। भाषाक रूप सेहो कालान्तर मे परिवर्तित होइत रहबाक गूढ तथ्य साझा करैत श्री सिंह अपन मातृभाषा जाहि शैली मे बाजब मायक कोरा सँ परिवार-परिवेश मे सीखल गेल केँ भाषा कहलनि। ओ स्वयं केर बोली पर कोनो एक व्यक्ति केर टिप्पणी जे अहाँक बोली अनुसार अहाँक भाषा ‘बज्जिका’ थिक कहबाक बात केँ एहि तरहक अपनहि मोनक षड्यन्त्र आ अपनहि शक्ति केँ कमजोर करयवला कारक तत्त्व कहैत एहि सँ बचबाक आ सभक बोली-शैली मैथिली छी एकरा स्वीकार करैत अपन स्थिति मजबूत करबाक आह्वान सेहो कयलनि।
तदोपरान्त संचालक मोहन यादव द्वारा कार्यक्रम मे सुप्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक डा. राम अवतार यादव केँ सेहो आमंत्रित करबाक जनतब दैत हुनक एक भावपूर्ण प्रतिक्रिया सब सँ साझा करैत बतेलनि जे डा. यादव आगामी कार्यक्रम मे हिस्सा लेबाक सहमति सशर्त देलनि ई कहैत जे आजुक आयोजन कि-कोना विमर्श करैत अछि ताहि आधार पर ऐगला बेर जरूर समय देथिन, आर प्रतिक्रिया ईहो देलखिन जे केवल ‘जय मिथिला जय मैथिली’ नारा देला सँ उपलब्धिमूलक काज नहि हेतैक, एहि लेल वास्तविक सृजनकर्म, शोधकर्म, विद्वत् कार्य सब सेहो करबाक आवश्यकता छैक। जमीनी परिवर्तन लेल आ शिक्षा-संस्कृतिक समग्र विकास लेल अभियान चलय ताहि दिशा मे सब कियो सजग होइथ से जरूरी छैक – ओ अपन भावना रखलनि। संचालक यादव एहि तरहक अभियान मे लागल कतार सँ कवि-अभियानी राम अधिन संभव केँ आगामी वक्ताक रूप मे अपन विचार मैथिलीक वर्तमान अवस्था आ हुनकर जमीनी अभियान जे कतारक दोहा धरि चलैत अछि ताहि पर विचार रखबाक आग्रह कयलनि।
युवाकवि-अभियानी एवं लेखक राम अधीन संभव अपन सम्बोधन मे नेपालहि सँ मैथिली लेखन मे रुचि रखैत वर्तमान समय कतारक राजधानी दोहा मे आयोजित “साँझक चौपाड़ि” कार्यक्रम जे २०१६ सँ चलैत छल ताहि मे सहभागी होइत अपन मैथिली सृजनयात्रा केँ निरन्तरता मे रखलहुँ से जानकारी साझा कयलनि। साँझक चौपाड़ि कार्यक्रमक अगुआ विन्देश्वर ठाकुर, प्रणव नार्मदेय संग आरो कतेको सर्जक जेना बेचन ठाकुर, अब्दुर रजाक, अशरफ राइन, आदि अनेकों मैथिली सृजनकर्मी सब सँ भेंट हेबाक आ मैथिली लेखन मे उत्तरोत्तर सुधार करैत जेबाक आख्यान सेहो ओ मोन पाड़लनि। ओ कहलनि जे बजनाय आ लिखनाय दुनू एकसमान मे हमरो सँ कतेको त्रुटि होइत छल जेकरा उपरोक्त कार्यक्रम मे वरिष्ठ सर्जक सब सुधार करैत छलाह। बाद मे एहि लेल अपन रुचि सँ व्याकरण किताब तकबाक, मैथिलीक औपचारिक पढाई करबाक आ तदोपरान्त अपन लेखनी मे सुधार अनबाक यत्न करबाक कथा-वृत्तान्त सेहो ओ सुनौलनि। हुनकर समग्र मे कहब यैह छलन्हि जे आइ धरि जे बजैत रही तेकरा मैथिली बुझैत रही लेकिन पूर्व वक्ता लोकनिक चर्चाक बाद किछु आधार भेटल जे कहीं हमरो भाषा मैथिली सँ इतर त नहि! ओहो ई स्वीकार करैत अपन अनुभव साझा करैत बजलाह जे बोली आ लेखनी बीच सहजता कायम करबाक लेल आवश्यक पहल करबाक जरूरत अछि आर एहि लेल विज्ञ-विद्वान् लोकनि जरूर सहजकर्ताक भूमिका निर्वाह करता से अपेक्षा अछि। एहि तरहक सन्देह केर अवस्था शीघ्र दूर हो, युवा सृजनकर्मी-अभियानी मैथिलीक नीक दिन लेल कामना कयलनि। ओ अपन सम्बोधनक दरम्यान मैथिलीक चर्चित कवि-अभियानी प्रणव नार्मदेय केँ श्रद्धाञ्जलि सुमन अर्पित कयलाह। संगहि मधुबनी धरि पहुँचि नवारम्भ प्रकाशनक संचालक एवं कवि-साहित्यकार अजित आजाद संग भेंट, हुनका सँ पुस्तक सभक प्राप्ति आ लेखनीकला सभक सम्बन्ध मे कयल गेल चर्चाक सेहो उल्लेख कएने रहथि। बाकी एहि कार्यक्रम मे उपस्थित अन्य विज्ञजन सब सँ बेसी अपेक्षा करैत ओ अपन सम्बोधन केँ संछेप मे कहबाक भावना सेहो रखलथि।
नामी-गिरामी सामाजिक अभियन्ता तथा भोर नामक संस्थाक संस्थापक राजकुमार महतो जनगणना केँ प्राथमिकता देबाक आर एहि मे मैथिलीक संख्या कायम रखबाक आवश्यकता पर बल दैत एहि लेल कार्य करबाक जरूरत रहल से कहलथि। मैथिली मे कोनो न कोनो कारण सऽ मनभेदक अवस्था छैक, ताहि पर सेहो मन्थन होइत रहनाय जरूरी कहैत वर्तमान समय मे जनगणना पर समेकित रूप सँ काज करैत अस्तित्व बचेबाक काज पहिने करबाक विन्दु पर हुनकर जोर छलन्हि। मैथिली लेल मेन रोड बिगड़ि जेबाक कारण डायवर्सन रोड पकड़बाक यथास्थिति आ राज्य केर तरफ सँ प्रायोजित ढंग सँ पैसा लगा-लगाकय मैथिली केँ कमजोर करबाक प्रयास होयबाक महत्वपूर्ण रहस्य उजागर कयलथि। ओ एकरा राजनीतिक खींचातानी आ शासक वर्गक मनसाय जे मधेशक मुद्दा केँ जेना जाति-पाति मे विखन्डित कयल गेलैक तहिना भाषा सब केँ सेहो आपस मे लड़ेबाक नीयत पर प्रकाश देलथि। हुनका द्वारा दू महीना पूर्वहि सँ एहि दिशा मे विमर्शक आरम्भ करबाक, एकरा गजेन्द्र गजुर द्वारा दोसर बेर पुनः निरन्तरता देबाक, एहि सब विन्दु पर जानकारी करबैत आगाँ समय मे सेहो सब संस्था सब आपस मे मिलिकय – बाहरो मे कार्य करयवला संस्था सब मिलिकय एकटा गठबन्धन बनाकय संयुक्त रूप सँ मैथिली भाषा लेल जनजागरण – जनगणना २०७८ मैथिली भाषाक लेल जन-जन केँ जगेनाय पर जोर देलनि। जून २०२१ तक केवल एहि विन्दु पर काज हेबाक चाही, नहि कि आन कोनो कार्यक्रम। एहि लेल आगामी समय मे हुनकर प्रयास पुनः एक आरो वर्चुअल आ दोसर फिजिकल कार्यक्रम रखैत एक संयुक्त बैनर मे जनगणना लेल जनजागरण आ मैथिली भाषा प्रति पसरल सन्देह केँ दूर करबाक काज करबाक लेल प्रतिबद्धता जतेलनि।
युवा अभियानी आ मैथिली-मिथिलाक प्रबल पक्षधर सुच्चा मैथिल सन्तोष कुमार साह जे रौतहट जिला सँ ओहि क्षेत्रक बोली मे सभा केँ सम्बोधन कयलथि, डा. जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन द्वारा कयल गेल भाषिक सर्वेक्षण मे नेपालक क्षेत्र केँ झापा सँ बार-परसा धरिक क्षेत्र केँ मैथिलीक्षेत्र मनबाक शोधग्रन्थ प्रकाशित हेबाक जानकारी करेलनि। ताहि समय मे मैथिली छोड़ि आन कोनो भाषाक नामहु तहिया नहि रहल। लेकिन मैथिली भाषा आ मिथिला संस्कृति केर अभियानी लोकनिक गोटेक गलतीक कारण आइ मैथिलीक विखंडित होयबाक अवस्था सृजना भेल ताहि विन्दु पर बड़ा फरिछाकय – खुलिकय ओ आरोप-प्रत्यारोप सेहो लगौलनि। हुनकर कहब रहनि जे बहुसंख्यक द्वारा उपयोग कयल जायवला भाषा-शैली केँ मैथिली साहित्य आ पाठ्यक्रम सब मे नहि समेटल जेबाक कारण मैथिलीक ई दुर्गति भेल छैक। एहि लेल एखनहुँ नव सिरा सँ काज करैत बहुसंख्यकहि द्वारा प्रयोग कयल जायवला शब्द आ शैली सभ पर आधारित पाठ्यक्रम तैयार कयल जेबाक चाही, ओहि तरहक व्याकरण आ शब्दकोश सब सेहो परिमार्जित करैत शिक्षा मे लागू कयल गेलाक बाद एखन जे दुराव बनलैक अछि से खत्म हेतैक। श्री साह धनुषा आ महोत्तरी मे मगही भाषाक नाम पर जाहि तरहक उपद्रवी क्रियाकलाप आ गतिविधि सब कयल जा रहलैक अछि तेकरो समुचित विरोध नहि कय सकबाक विन्दु उठबैत अहु लेल आजुक मैथिली-मिथिला संस्था आ भाषा-संस्कृति अभियानी सभक चुप्पी आ सहिष्णुता प्रति आक्रोश व्यक्त कयलनि। हालहि मगहीभाषी केर कित्ताकाट करनिहार द्वारा मगध क्षेत्रक अमान्य पाबनि ‘सामा-चकेवा’ केर आयोजन धनुषा मे कयल गेलाक बादहु ओकर कोनो विरोध नहि करनाय केर उदाहरण दैत ई सवाल उठेलनि जे ई जनितो ई मगह क्षेत्र मे सामा-चकेवा नहि मनायल जाइत छैक तखन मिथिलाक्षेत्र मे मगहीभाषी मगही पर्व आ संस्कृतिक रूप मे सामा-चकेवा मनौलनि जेकर कियो प्रतिकार तक नहि कयलक। श्री साह द्वारा विगत मे मैथिली-मिथिला मंच पर प्रस्तुत एकल जातीय पहिरन पाग आ विभिन्न पाबनि, व्यक्तित्व सभक महिमामंडन पर सेहो सवाल उठबैत बजलाह जे केवल किछु खास वर्ग द्वारा पहिरल जायवला पाग केर व्यवहार करब लेकिन सर्वहारा-बहुजन समाज द्वारा पगड़ी केर प्रयोग नहि करब, मात्र कोनो खास वर्ग द्वारा मनायल जायवला पाबनि ‘मधुश्रावणी’ केर चर्चा करब लेकिन घरही बहुसंख्यक द्वारा मनायल जायवला घड़ी पाबनिक महिमामंडन आ व्याख्यान नहि समेटब, महाकवि विद्यापति केर स्मृतिगान करब लेकिन मिथिला सुरमा सलहेश, लोरिक, दीनाभद्री, कारिक बाबा आदिक नामहु नहि लेब – एहि सब तरहक विभेदपूर्ण व्यवहार मैथिली-मिथिला मंच द्वारा करैत एबाक कारण आइ लोक बाध्य भऽ अपन अलग समाज आ सम्मानक स्थान लेल ‘मगही या बज्जिका’ कहिकय मैथिली सँ अलग होयबाक अवस्था बनल अछि, ताहि लेल मैथिली-मिथिलाक काज करनिहार केँ चाही जे बहुसंख्यक समाज केँ अपनापन लागय ताहि तरहक व्यवहार करय, पहिरन उपयोग करय आ व्यक्तित्व सभक स्मृतिगान करय। एहि तरहें मैथिली एकजुट बनत, सशक्त बनत।
तदोपरान्त भाषा-संस्कृति अभियानी आ मैथिली लेल संचारकर्म केर आवश्यकता पर सदिखन बल दैत आबि रहल अभियन्ता सह मैथिली जिन्दाबाद वेब आधारित पत्रिकाक सम्पादक प्रवीण नारायण चौधरी मैथिलीक वर्तमान अवस्था पर अपन विचार रखैत पूर्वक समस्त वक्ता लोकनिक विचार संग अपन सहमति रखैत मैथिलीक दुरावस्थाक मूल कारण (१) राज्य के द्वारा उपेक्षित, (२) शिक्षा द्वारा उपेक्षित, (३) लोक मात्र मे रहल ई भाषा – लौकिक व्यवहार मे मात्र रहबाक आ (४) राजकाजक भाषाक रूप मे स्थापित नहि भऽ सकबाक कारण बतेलनि। मैथिली भाषाक विकास आ सभ लोक द्वारा अपनत्व बढेबाक दिशा मे बौद्धिक विमर्श लेल प्राज्ञ रामभरोस कापड़ि भ्रमर केर कान्तिपुर मे प्रकाशित लेख जाहि माध्यम सँ लगभग १८ टा महत्वपूर्ण दृष्टि-विचार राखल गेल छल से जानकारी साझा कयलनि। मुदा कोनो बौद्धिक विमर्श जेकर आरम्भ एक साल पूर्वहि कयल गेल ताहि पर समाजक सब वर्ग आ अगुआ सब कतेक ध्यान देलनि, ताहि अनुसारे परिवर्तनक क्रियाकलाप कि सब सम्भव भऽ सकल आर आगू कि सब करबाक जरूरत अछि ताहि पर सभाक ध्यानाकर्षण कयलनि। ओ खुद एन्टा द्वारा निरन्तर आयोजित कार्यक्रम आ विमर्श कतेक महत्वपूर्ण भऽ रहल अछि तेकर उदाहरण दैत ईहो भावना रखलनि जे मैथिलीक कमजोरी केँ दूर करबाक लेल राज्य आ प्रजा दुनू स्तर पर जनजागरण आ ईमानदार काज करबाक आवश्यकता अछि। तत्काल लेल मैथिलीक विकास आ संरक्षण केर सूत्र बाप-पुरखा केर सिखायल अपनहि श्रम, शक्ति, सोच, संस्कार आ संसाधन सँ पोखरि खुनेबाक आ महारहि पर बास करबाक उत्कृष्ट ‘स्वयंसेवा’ केँ अपनबैत आगू बढबाक आवश्यकता पर ओ जोर देलनि। स्वयं सेहो एहि तरहक सृजनकर्म मे विश्वास रखैत यथासंभव योगदान सँ भाषा-संस्कृतिक सेवा निरन्तरता मे रखबाक प्रतिबद्धता जाहिर करैत एहि सिद्धान्त पर समाजक समस्त जनमानस केँ चलबाक प्रेरणा ग्रहण लेल अपील कयलनि। श्री चौधरी एन्टाक आयोजन मे जाहि तरहक गम्भीरता सँ भाषाक संरक्षण-संवर्धन-विकास लेल स्तरीय व्यक्तित्व सब केँ समेटिकय निरन्तर कार्य कयल जा रहल अछि तेकरा निरन्तरता मे रखबाक आह्वान सेहो ओ कएने रहथि। निष्कर्षतः राज्य केर तरफ सँ मैथिली भाषा प्रति सकारात्मक सोच रखबाक लेल, भाषाविद्, शिक्षाविद् आ सामाजिक कार्य लेल अगुवाई करैत आबि रहल नागरिक समाज, सामाजिक अभियन्ता सब केँ सेहो सजग बनिकय आगू बढबाक निवेदन ओ कयलनि। डा. योगेन्द्र प्रसाद यादव द्वारा लिखल गेल मैथिली शब्दकोशक उदाहरण दैत ओकरा पढबाक आ तखन खामी तकबाक आग्रह करैत मैथिलीक समृद्धि आ कमजोरीक वस्तुस्थितिक अध्ययन पर ओ जोर देलनि। भाषाक काज भाषाविद्, शिक्षाक काज शिक्षाविद् आ राज्य द्वारा राजकाज भाषा बनेबाक लेल राजनीतिक शक्ति केँ काज करय पड़तनि तखनहि ई सब दुरावस्था दूर होयत अन्यथा आपसहि मे कतेको प्रकारक अन्तर्संघर्ष मे मैथिली फँसल रहत से ओ स्पष्ट सन्देश देलनि।
सङ्गोर मिथिलाक संस्थापक अध्यक्ष हृदय नारायण यादव द्वारा सिरहा केन्द्रित भाषा प्रति लोकक सोच पर सम्बोधन रखैत कहलथि जे मैथिली लेखन मे बहुत बेसी दिक्कत होइत छैक लोक केँ, मानकताक बात छोड़ितो सामान्य रूप सँ सेहो जेना बजैत छी तेना लिखबाक अवस्था नहि छैक। दोसर बात जे मैथिलीभाषी जनमानस मे अपनहि भाषाक शिक्षा लेबाक प्रति कोनो खास रुचि नहि देखल जाइछ। ऊपर सँ लोक ईहो आशंका मे फँसल देखाइत अछि जे ओकरा द्वारा बाजल जायवला भाषा वास्तव मे शुद्ध मैथिली छैक अथवा नहि। स्वयं अभियानक संचालन करैत स्कूली बाल-बालिका मे अपन मातृभाषा प्रति रुचि बढेबाक लेल जखन विद्यालय सब मे कार्यक्रम आयोजना लेल पहुँचैथ तखन लोक हिनकहि सब पर सवाल करय जे अभियन्ता रहितो अहाँ सब स्वयं मैथिली बाजि रहल छी से जानकारी अछि? ई सब दुविधाक स्थिति समाज मे विद्यमान रहबाक बात कहलथि, संगहि संस्थाक सचिव गजेन्द्र गजुर केर उक्ति जे जन्म भेल अछि मिथिला जेहेन पवित्र धरातल मे आर माय सँ जे बोली बजनाय सिखलहुँ वैह छी मैथिली – एहि मे आन किन्तु-परन्तु के कोनो बाते नहि छैक, बस यैह समझ केँ मूल मानि ई लोकनि अपन मातृभाषा मैथिली प्रति सजग रहिकय सेवा-धर्म निर्वाह करबाक बात स्पष्ट कयलनि।
सङ्गोर मिथिलाक सचिव संग आइ लव मिथिला केर संस्थापक सदस्य गजेन्द्र गजुर जे निरन्तर मैथिली अभियान मे सक्रिय भूमिका निर्वाह करैत आबि रहल छथि ओ कहलनि जे वर्तमान पुस्ता लेल अपन मातृभाषा मैथिली लेल काज करबाक बड पैघ अवसर थिकैक आर एहि तरहक समझ सँ स्कूल स्तर पर ओ सब काज करबाक आ जन-जन मे अपन भाषा प्रति जागरुकताक प्रसार करबाक बात कहलनि। संगहि ओ ऊपरका खाड़्हीक स्रष्टा सब सँ प्रश्न कयलनि जे ओ लोकनि केहेन बिया बाउग कयलथि जेकर गाछ एहेन भेल आ आशंका मे लोक सब घेरायल अछि। एखनहुँ ओहि गलती सब केँ सुधार करबाक जरूरत पर बल दैत वर्तमान पीढीक मस्तिष्क मे रहल अनेकों प्रश्न, शंका, दुविधा दूर करबाक जरूरत पर सेहो ओ ध्यानाकर्षण कयलथि।
एन्टाक सदस्य डा. रविन्द्र मंडल द्वारा नेपाल मे माहौल केर अभावक कारण मैथिली विकसित नहि होयबाक स्थिति आ स्वयं केर अनुभव कहैत आगाँ लैंग्वेज, डायलेक्ट आ स्क्रीप्चर मे कि फर्क छैक तेकरा स्पष्ट करबाक लेल विज्ञजन सँ अनुरोध कयलनि।
एन्टाक वरिष्ठ सलाहकार डा. राम कृष्ण साह द्वारा काफी स्पष्ट आ जोरदार स्वर मे मैथिलीक वर्तमान काफी विकसित होयबाक बात कहलनि। ओ केवल समस्या देखबाक विन्दु सँ इतर आइ मैथिलीक विकासक स्वरूप पर देखबाक लेल सभा सँ निवेदन कयलनि। युनाइटेड नेशन्स तक मैथिलीक प्रतिनिधित्व स्थापित होयबाक आर ताहि मे स्वयं हुनकहि लोकनिक भूमिका होयबाक उदाहरण सेहो देलनि। मैथिली आइ कतेको देश मे अपन वजूद स्थापित कय लेलक सेहो ओ बतौलनि। एक्के समाज मे मगही केर बात करब आ मैथिलीक ठीकेदार सब सँ बचबाक आग्रह सेहो ओ कयलथि। आइ मैथिली लेल गाँव-गाँव मे काज होयबाक अपनहि गाम सिरहाक उदाहरण दैत ओ माहौल मे नैराश्यता केँ हंटेबाक कार्य सेहो कयलन्हि।
एहि कार्यक्रमक प्रमुख अतिथि प्रा. डा. योगेन्द्र प्रसाद यादव – सर्वप्रथम एन्टा केँ एहि तरहक आयोजन लेल धन्यवाद ज्ञापन करैत स्वयं त्रिभुवन विश्वविद्यालय मे भाषा-विज्ञान केर प्रमुख आ प्रज्ञा प्रतिष्ठानक भाषा विभाग प्रमुख केर तौर पर कार्य करैत रहबाक बात बतेलनि। एहि मे नेपालक समस्त भाषाक संग अपन मातृभाषा मैथिली लेल सेहो कार्य करैत रहबाक बात ओ बतेलनि। एहि क्रम मे शब्दकोश संग आङ्गन नामक पत्रिकाक प्रकाशन करेबाक बात ओ बतेलनि।
नेपाल टेलिविजन केर पत्रकार आ मैथिली साहित्यकार श्याम सुन्दर यादव पथिक – देशक दोसर सब सँ बेसी बाजल जायवला भाषा मैथिली रहितो जाहि तरहें एकर संरक्षण-संवर्धन सरकार द्वारा होबक चाही से नहि भऽ रहल छैक कहैत आर-आर स्तर पर सेहो पर्याप्त प्रयास नहि भऽ सकबाक बात ओ कहलनि। प्रदेश २ केर भाषा मैथिली रहितो राजनीतिक स्तर पर मैथिली लेल जे सहयोगात्मक भूमिका होबक चाही से नहि भऽ कय उदासीनता देखाइत छैक। एहि कारण एकटा सशक्त संघर्षक जरूरी होयबाक अवस्था देखा रहल अछि ओ बतेलनि। विगत मे भाषिक जागरण अभियान द्वारा जन-जन मे अपन भाषा मैथिली लेल विगत केर जनगणनाक समय मे सप्तरी आ सिरहा मे प्रयास करबाक जानकारी सेहो ओ देलनि। संगहि जनगणना मे गणक द्वारा कय रंगक गड़बड़ी जानि-बुझिकय सेहो करैत मैथिली भाषा पर चौतरफा आक्रमण सँ केना बचि सकत ताहि लेल सभाक ध्यानाकर्षण कयलनि। गाम-गाम मे जा कय लोक केँ बुझेबाक अवस्था – आशंका आ दुविधा केँ दूर करबाक बात आ रेडियो, टेलिविजन व पत्र-पत्रिका संग सामाजिक संजाल मार्फत सेहो अपन मातृभाषा मैथिली लेल प्रयास केँ निरन्तरता देबाक वचनबद्धता प्रकट कयलथि।
एन्टा सदस्य जनकपुर केर मूल निवासी खुशनन्दन ठाकुर द्वारा मैथिली लेल अमेरिका मे वा अन्यत्र कम समस्या रहबाक यथास्थितिक वर्णन करैत नेपालहि केर मूल मिथिला-मधेश मे मैथिली प्रति अनेकों तरहक शंका-आशंका पसरल रहबाक विचार राखल गेल। ओ कहलखिन जे एहि लेल मिथिला-मधेशक राजनीति मे सक्रिय राजनीतिक शक्तिक हिन्दी प्रति प्रेम आ समर्थन बेसी होयबाक कारण मुख्य अछि। अमेरिका मे सब अंग्रेजिये बजैत अछि लेकिन सभक टोन (बजबाक शैली) भिन्न होइत छैक, त कि ओकर भाषा अंग्रेजी सँ इतर आन कहाइत छैक? एहि सवालक संग मैथिली भाषाक बोली-शैली विभिन्न तरहक होयबाक यथार्थ केँ स्वीकार करैत सभक समग्र परिचिति मैथिली मात्र मानिकय बढल जेबाक ओ आग्रह कयलनि।
कार्यक्रम केर दोसर राउन्ड मे सवाल-जवाब आ विज्ञ सुझाव संकलनक प्रस्ताव संचालक मोहन यादव द्वारा राखल गेल छल। एकर शुरुआत पुनः प्राज्ञ राम भरोस कापड़ि भ्रमर सँ संचालक यादव सवाल पुछलथि जे अपने प्रज्ञा प्रतिष्ठान केर प्राज्ञ सदस्य बनिकय कि सब योगदान मैथिली लेल देलहुँ ताहि पर प्रकाश दी। एहि बातक जवाब दैत प्राज्ञ भ्रमर बजलाह जे हुनका द्वारा मैथिली मे पत्रिका निकालबाक कार्य प्रथमतः आरम्भ भेल। आङ्गन पत्रिका एखन धरि जारी। एकरा शुरुआत हुनकहि द्वारा भेल छल। सलहेश केन्द्रित २-२ टा गोष्ठी सिरहा मे नेपाल आ भारत दुनू दिशक विद्वान् लोकनिक सहभागिता करबैत आयोजित कयल गेल छल। एकर उपलब्धि सलहेश पर साहित्य उपलब्ध करेबाक आ तेकर उपयोगिता विश्वविद्यालय स्तर धरिक शिक्षादीक्षा मे सेहो होयब आरम्भ भेल। तहिना दीनाभद्री पर केन्द्रित आयोजन कयल गेल। कतेको रास लेखक-विद्वानक किताब सेहो प्रकाशित करायल जेबाक जनतब सेहो देलखिन। ११ महीना धरि साझा प्रकाशन मे सेहो अपन योगदान देने रही जाहि मे देवेन्द्र मिश्र केर बगियाक गाछ (बालकथा) केर प्रकाशन सँ ओतय मैथिलीक किताब प्रकाशनक आरम्भ कयलथि, ताहि सँ पहिने ओतय मैथिली लेल कोनो प्रकाशनक काज नहि होइत छल।
एक आन प्रसंग जे प्रदेश सरकार द्वारा मैथिली लेल कि सब कयल गेल अछि, ताहि सम्बन्ध मे सेहो जानकारी दैत प्राज्ञ भ्रमर बजलाह कि प्रदेश-२ मे स्वतः मैथिली प्रदेशक कामकाजक भाषा बनबाक स्थिति स्पष्ट छैक, लेकिन आन्तरिक राजनीतिक भावना मे अज्ञात दुविधाक स्थिति आ सुनियोजित ढंग सँ मैथिली केँ कम करबाक नीयत रहबाक बात ओ बतेलथि। संघीय सरकार मे स्वाभाविके एकल भाषाक पक्षपोषणक नीति रहबाक नीयत देखाइते रहल अछि। राज्य स्तर पर भाषा प्रतिष्ठान केर स्थापना आ प्रदेशक कुल ७ गोट भाषा लेल कार्य करबाक निर्णय कयल गेलैक, लेकिन ईहो लागू कहिया हेतैक ताहि पर कोनो स्पष्ट स्थिति नजरि नहि अबैत अछि। प्रज्ञा प्रतिष्ठानक स्थापना आ मैथिली प्रति समर्थन एकमात्र सहायक अछि। समग्र मे संस्थागत आ व्यक्तिगत योगदान सँ एहि भाषा-साहित्य केँ जियेबाक उल्लेख्य कार्य होइत आबि रहबाक विन्दु पर बजैत ओ खुद एन्टाक आयोजनक उदाहरण देलनि। एकर अलावे स्वयं एक कलमजीवीक तौर पर अपन योगदान केँ निरन्तर रखबाक आ मैथिली सहित तराई केर चारू भाषा लेल काज पूर्व सँ भविष्य धरि जारी रखबाक वचनबद्धता प्रकट कयलनि।
प्रमुख अतिथि प्रा. डा. योगेन्द्र प्रसाद यादव सँ संचालक मोहन यादव किछु अत्यन्त महत्वपूर्ण आ सारगर्भित सवाल सब पुछलथि – नेपालक धरतीक चर्चित महापुरुष सलहेश, दीनाभद्री, लोरिक आदिक मातृभाषा कोन छलन्हि? मैथिलीक सांस्कृतिक उत्सव सामाचकेवा, झिझिया व अन्य लोकोत्सव सभ बिना भाषाक कोन गति केँ प्राप्त करत? संस्कृति नहि रहतैक त धर्म कतय जेतैक? मैथिलीभाषाक सीमा कतय सँ कतय धरि रहलैक? एहि प्रश्नक उत्तर दैत प्रा. डा. यादव कहलथि जे झापा, मोरंग सँ लैत सर्लाही-रौतहट धरि ई भाषा बाजल जाइत अछि। अहु मे मुख्य रूप सँ सप्तरी, सिरहा, धनुषा, महोत्तरी आ सर्लाही – एहि पाँच जिला मे बहुसंख्यकक भाषाक रूप मे मैथिली मात्र अछि। सलहेश, दीनाभद्रीक भाषा कि छलन्हि ताहि ऊपर बहुत बेसी अनुसन्धान त नहि भेल छैक लेकिन हिनका लोकनिक अवस्थिति जाहि तरहें मिथिलाक्षेत्र रहलनि ताहि अनुसारे निश्चित तत्कालिक संस्कृत सँ प्राकृत अपभ्रंश केर रूप मे मैथिलिये हुनका सभक भाषा रहलनि से स्पष्ट अछि। भाषा केर महत्व बहुत पैघ छैक। भाषा रहले पर संस्कृति सेहो जियैत छैक। विश्वक लोपोन्मुख भाषाक संस्कृति सेहो लोप हेबाक उदाहरण सेहो ओ देलनि। भाषा आ संस्कृति बीच अन्योन्याश्रय सम्बन्ध होयबाक आर ताहि लेल निरन्तर कार्य सब कयल जेबाक जानकारी सेहो ओ देलनि।
पुनः संचालक मोहन यादव द्वारा मैथिली केर शिक्षा मे ऐच्छिक विषयक रूप मे कक्षा ९ आ १० मे पढाई करायल जेबाक आख्यान रखैत प्राथमिक स्तर पर ई केना शिक्षा मे आओत ताहि पर आ संगहि डा. रविन्द्र मंडल केर प्रश्न जे भाषा, भाषिका आ स्क्रिप्चर पर विज्ञ विचार आबय – तेकर जवाब दैत प्रा. डा. योगेन्द्र प्रसाद यादव बतेलनि जे हरेक भाषाक अनेकों बोली (डायलेक्ट्स) होइत छैक जे कतेको आधार पर भिन्न होइत छैक, मैथिलीक सेहो बहुते रास बोली छैक जाहि मे क्षेत्र, समाज (जाति) आ शिक्षा-दीक्षाक स्तर अलग-अलग छैक। एहि मे कतहु सँ उच्च-तुच्छ केर वर्गीकरण नहि बल्कि सब बोली समान सम्मानक होइत छैक। सब बोलीक समग्र रूप भाषा आ से मैथिली मात्र भेलैक। मैथिलीक अपन तिरहुता लिपि सेहो छैक, लेकिन कालान्तर मे लेखनी व छापाक सुविधाक कारण ‘देवनागरी’ लिपि अपनायल गेलैक। संचालक यादव द्वारा एक आरो प्रश्न जोड़ैत मगही व अन्य बोलीक नाम पर यदि कियो अपन कित्ता काट करैत अछि त ओकरा मान्यता भाषाक रूप मे भेटतैक अथवा नहि – एकर जवाब मे प्रा. डा. यादव कहलखिन जे जनगणना मे कुल तीन टा भाषाक उल्लेख करेबाक काज हेतैक, एकटा पुरखाक भाषा, अपन भाषा आ दोसर भाषा; अपनहि उदाहरण दैत ओ फरिछेलखिन जे ‘हमर पुरखाजनक भाषा मैथिली, हमर भाषा मैथिली आ दोसर भाषा नेपाली’। मगही व अन्य बोलीक उल्लेख करबाक सन्देहक अवस्था केँ दूर करबाक लेल वृहत् स्तर पर जनजागरणक आवश्यकता पर सेहो ओ जोर देलनि। जनगणनाक गणक द्वारा पूछल जायवला सवालक जवाब त वाचक द्वारा देल जेतैक, यदि ओतय कोनो तरहक प्रेशर (दबाव) रहतैक त ओ सब गलती कय सकैत छैक, अतः एकरा लेल जनजागरण जरूर हेबाक चाही। मैथिली केँ तोड़बाक लेल कतेको तरहक मिसअन्डरस्टैन्डिंग सब पसारल गेल छैक, एकरा दूर करनाय बहुत आवश्यक छैक।
प्राज्ञ कापड़ि सँ एक आर प्रश्न जे नेपाल मे मैथिली मे प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य कोना सम्भव हेतैक आ मैथिली राजकाजक भाषाक रूप मे इतिहास मे चर्चित छैक ताहि दुनू विन्दु पर प्रकाश पाड़ि दी – एकर जवाब दैत ओ कहलखिन जे १३म् शताब्दी मे नान्यदेवक शासनकाल नेपालहि केर सिमरौनगढ राजधानी सँ आरम्भ हेबाक इतिहास भेटैत छैक। ताम्रपत्र, पान्डुलिपि, शिलालेख, अभिलेख आदिक अध्ययन सँ ज्ञात होइत छैक। मल्लकालीन राजा लोकनिक समय मे मैथिली राजकाजक भाषा सेहो छलैक। साहित्यक स्वर्णकाल मैथिली लेल एहि समय केँ मानल जाइत छैक। एखनहुँ धरि नेपालहि केर अभिलेखालय सँ मैथिलीक कतेको रास प्राचीन अभिलेख सब प्राप्त भेलैक से गौरवक बात छैक। दोसर बात जे प्राथमिक शिक्षा मैथिली मे हो ताहि लेल विगत २५ वर्ष सँ नेपाल मे काज आरम्भ भेल छैक, किताबहु सब लिखा गेलैक, लेकिन पढाई करबाक अवस्था डाँवाडोल छैक। शिक्षक केर कमी आ लोकक नैराश्यता जे मैथिली पढियेकय कि होयत – एहि सब कारण सँ पढाई केर अवस्था नीक नहि छैक मैथिली लेल। हँ, यदि अनिवार्य विषय केर रूप मे आ अनिवार्य माध्यम मातृभाषा मैथिली लागू भेलापर स्थिति मे सुधार जरूर अओतैक। स्थानीय स्तर केर पाठ्यक्रम केर विकास करैत सब बोली-शैली केँ शिक्षा मे लागू कयल जाय त स्वतः मैथिली प्रति अनेकों दुविधा दूर होयबाक जवाब देलनि।
मैथिलीक दुरावस्था दूर करबाक लेल सुझाव
१. संतोष साह – मैथिलीक मानक आ व्याकरण मे जनसामान्य केर बोली-शैली केँ समेटिकय पुनर्लेखन आ रेडियो-टेलिविजन सब मे सेहो जनसामान्य केर बोली बनेलाक बादे मैथिली प्रति स्वीकार्यता आ समर्थन बढत।
२. प्रवीण नारायण चौधरी – राज्य के द्वारा संरक्षण, शिक्षा आ संचारकर्म – तीनू केर सहयोग सँ मात्र मैथिली प्रति पसरल वितृष्णा समाप्त होयत। एकर अलावे स्वयंसेवा आ निरन्तर सृजनकर्म सँ मैथिली भाषाक संरक्षण, संवर्धन आ प्रवर्धन होइत रहत। घर-घर मे बच्चा केँ शिक्षा देबाक कार्य हम सब स्वयं करी। मातृभाषाक माध्यम सँ जा धरि कोनो बच्चा केँ शिक्षा अपनो प्रयास सँ हम सब नहि देबैक त ओकर विकास उचित रूप सँ भऽ सकैत छैक। १००% साक्षरता लेल सेहो मातृभाषा मे शिक्षाक महत्व केँ आत्मसात करी। राज्य एहि सब स्थापित विन्दु पर चिन्तन करैत यथाशीघ्र राजकाजक भाषा आ शिक्षा एवं संचार मे मैथिली केँ बढाबय। एन्टा व समस्त संस्था आ व्यक्ति अपन योगदान निरन्तर दैत रहय। तिल-तिल मे बिखरल मैथिली केँ समेटबाक छैक। जातीय वैमनस्यता सँ निकलबाक छैक। अपन कर्तव्यपरायणता पर सदिखन बढैत रहबाक छैक।
३. राजकुमार महतो – जनगणना धरि मैथिली भाषाक मतभिन्नता-मनभेद आदि केँ साइड (किनार) कय केँ एकटा बैनर मे एकजुट भऽ ६ महीना जनजागरणक काज करी, बाकी बात सब क्रमशः होइत रहतैक। एखन सिंगल एजेन्डा यैह हो। कौमन एजेन्डा – कौमन एलायंस सँ ई काज पूरा करी।
४. राम अधीन सम्भव – भाषा आ भाषिका केर बाते विवादक मुख्य कारण छैक, सब बोली केँ सम्मान दैत सब केँ जोड़बाक काज जरूर कयल जाय। लेकिन महतो सर केर राखल प्रस्ताव पर आम जनजागरणक काज यथाशीघ्र कयल जाय। षड्यन्त्रक तहत जे लोकक मोन मे विभाजन सब पैदा कयल गेल छैक तेकरा दूर करनाय बहुत जरूरी छैक।
५. हृदय नारायण यादव – राजकुमार सर सँ सम्पर्क करैत सहकार्य करब आ निश्चित लोक मे पसरल भ्रम केँ दूर करबाक काज करब। एक अबधी भाषी आजुक विचार-विमर्श देखि रहल छलखिन, एतय उपलब्ध अलग-अलग भाषिका (शैली) बाजल जाइतो ओ कहलथि जे हुनका त सभक भाषा एकसमान बुझेलनि आ मैथिली मे भिन्नता कतहु सँ नहि बुझेलनि। ताहि हेतु मानकता आदिक मुद्दा पर अनावश्यक चिन्ता करनाय ओतेक जरूरी नहि बुझाइत अछि। पाग या एकल जातिक जातीय संस्कारक प्रदर्शनक मुद्दा सेहो विरले कतहु देखाइत अछि, पाग सम्मानक प्रतीक थिक आ सब कियो पहिरैेत अछि, एहि सब तरहक मुद्दा केँ ठाढ कय जातीय विद्वेष भावना केँ नहि भड़केबाक चाही।
६. गजेन्द्र गजुर – पाग केर प्रयोग राय समुदाय मे सेहो होइत छैक, पाग हंटेबाक बात नहि करबाक चाही। पगड़ी केँ सेहो स्वीकार करबाक चाही। नवका डार्हि केर रूप मे सहयोगी भूमिका निभेबाक जरूरत छैक। युवा पीढीक दिमाग केँ अपन नीक पक्ष सब बतेनाय जरूरी छैक नहि कि कमी-कमजोरी आ गलत-सलत मुद्दा मे ओकरा सब केँ उलझेबाक काज करी कियो। डकुमेन्ट्री केर माध्यम सँ, भाषा-भाषिका आ मैथिली मे शिक्षाक महत्व आ जनगणना मे मैथिली लिखेबाक ‘स्टोरीटेलिंग’ करैत बढबाक चाही। अलग-अलग भाषिका मे बेसी सँ बेसी लेखन कार्य हो। रौतहट या कोनो क्षेत्रक मैथिलीक रूप जखन आनो-आनो लोक सब पढता-बुझता तखनहि आपस मे जुड़ाव बढत। सब कियो अपन-अपन बोली मे बेसी सँ बेसी लिखब त स्वाभाविक तौर पर मैथिलीक विविधता प्रचारित-प्रसारित आ स्वीकृति पाओत।
प्रमुख अतिथि प्रा. डा. योगेन्द्र प्रसाद यादवक निष्कर्षात्मक संबोधन
हम दु-तीन टा बात पर फोकस करय चाहि रहल छी। कोनो भाषाक संरक्षण, संवर्धन आ प्रवर्धनक लेल सब सँ नीक उपाय होइत छैक जे ओहि भाषाक प्रयोग होयबाक चाही। हम देखि रहल छी जे नेपालक सन्दर्भ मे भाषाक प्रयोग ३ टा क्षेत्र मे प्रमुख रूप सँ देखि रहल छी। शिक्षा मे – प्राथमिक शिक्षा मे मातृभाषाक प्रयोग होयबाक चाही ताहि पर बहुत रास अनुसन्धान भेल छैक आर घर मे प्रयोग भेल भाषा मे बच्चाक समझशक्ति नीक बनैत छैक आ भाषाक संग संस्कृति सेहो विद्यालय धरि जाइत छैक जे बच्चा सब केँ सुसंस्कृत बनबैत छैक। कोनो एक भाषा मे पारंगत कियो भऽ जाय त ओकरा दोसर-तेसर कोनो भाषा सिखबाक काज सहज भऽ जाइत छैक, तेँ प्रथमतया मातृभाषा मे शिक्षित बच्चा लेल उच्च शिक्षा हासिल करब सहज होइत छैक। मातृभाषा मे मानसिक विकास बहुत बढियां सँ होइत छैक। दोसर बात जे सरकारी कामकाजक भाषा बनला सँ स्वतः ओहि भाषाक अनिवार्यता सब पर लागू होइत छैक आर भाषा केँ स्वतः प्रवर्धन होइत छैक। तेसर बात जे संचार मे सेहो जतेक बेसी मैथिलीक प्रयोग हेतैक ततेक बेसी ओकर विकास सम्भव होइत छैक। एकर दु-तरफा फायदा छैक, भाषाक संग भाषाभाषीक विकास, सुसंस्कारक प्रसार, शिक्षित समाजक निर्माण – ई सब बात सम्भव होइत छैक। एन्टा द्वारा एहि तरहक सुनियोजित आ सुन्दर सुविचार संग्रहक निमित्त कयल गेल आयोजन सँ बहुत खुशी भेटल, ई निरन्तरता मे रहय।
विशिष्ट अतिथि राम भरोस कापड़ि भ्रमर सेहो अपन निष्कर्षात्मक सम्बोधन दैत एन्टा केँ एतेक महत्वपूर्ण कार्यक्रम लेल धन्यवाद ज्ञापन कयलनि। समावेशी व्याकरण केर वास्ते देवेन्द्र मिश्र काज कय रहला अछि। शब्दकोश लेखन लेल भाषा वैज्ञानिक होयब जरूरी नहि छैक, ई काज विभिन्न क्षेत्र मे सक्रिय सहज जानकार लोकनि शब्द आ ओकर अर्थक संग्रह कय सकैत छथि। प्रा. डा. योगेन्द्र प्रसाद यादव सर केर लिखल शब्दकोश सेहो परिमार्जित भऽ छुटल शब्द सब केँ समेटिकय जल्दी आबय से अपेक्षा डा. साहेब सँ करैत छी। व्याकरण लेखन कठिन छैक, ताहि लेल विज्ञता सँ लिखबाक जरूरत छैक। उच्छृंखल बनिकय अनियन्त्रित लेखन सँ मानक तय करब कठिन काज हेतैक। तेँ सर्वसुलभ आ सभक लेल मान्य शैलीक मानक स्थापित हो, एहि लेल प्रदेश सरकार केँ पहल करैत आधिकारिक मानक देनाय बेसी प्रभावकारी हेतैक, एहि लेल अपेक्षा आ आग्रह दुनू। नीक संकेत सब आजुक कार्यक्रम मे आयल। एहि तरहें आगू बढबाक प्रकाश भेटल। ई निरन्तरता मे रहय।
सभाध्यक्ष डा. इन्द्रदेव साहुक अध्यक्षीय सम्बोधन –
एन्टा दिश सँ मोहन यादव जी केँ बहुत धन्यवाद – अत्यन्त सारगर्भित रूप सँ ई कार्यक्रमक संयोजन-आयोजन व प्रस्तुति लेल मोहनजी प्रति हृदय सँ आभार। नेपाल मे सुतय केर समय रहितो सब गोटे जुड़िकय एहि कार्यक्रम केँ सफल बनेलहुँ – एन्टा एहि लेल कृतज्ञतापूर्वक धन्यवाद दैत अछि। प्रा. डा. योगेन्द्र सर, प्राज्ञ रामभरोस कापड़ि सर, प्रवीण सर व समस्त विज्ञजन केँ अपना आ एन्टा दिश सँ बहुत धन्यवाद दैत छी।
आजुक कार्यक्रम मे बहुत रास बात सब एलैक अछि। हम मैथिली भाषाक एक्सपर्ट त नहि छी, लेकिन अपन भाषा-संस्कृति केँ केना बढाबी से हमरा सभक लक्ष्य छैक। एन्टाक मिशन आइडेन्टिटी, इन्टीग्रेसन आ इम्पावरमेन्ट – अपन पहचान केँ जाबत आगाँ नहि अनबैक त आत्मसम्मान नहि बढत, समाज विकसित नहि होयत। पहचान मे भाषा बड पैघ चीज होइत छैक। अमेरिका मे सेहो बहुतो तरहक आइडेन्टिटी वला लोक सब रहैत अछि, लोकल स्तर पर एतय सेहो कोलोकियल अंग्रेजी केर प्रयोग सामान्य स्तर पर होइत छैक। झापा सँ रौतहट तक मे बोली मे फर्क एनाय स्वाभाविके छैक।
आधुनिकता सँ भिजला पर डायनामिक हेतैक। एजुकेशन, अवेयरनेस, ई सब बड पैघ बात होइत छैक। परिवर्तन अपना आप सँ शुरू करू। अपन मातृभाषा प्रति जागरुक व्यक्तिगत स्तर पर हेतैक तखनहि परिवार मे अपन धियापुता आ आसपड़ोस सब मे चेतना वृद्धि हेतैक। अमेरिका मे रहितो हम सब अपन घर मे अपने भाषाक प्रयोग करैत छी, जाहि सँ बाल-बच्चा सब मे भटकाव नहि आबय। बहुत रास काज भऽ रहलैक अछि। पोजिटिविटी केँ लय कय आगू बढय पड़तैक। अपन-अपन जगह सँ सब कियो योगदान देल जाउ। एन्टा अपन संस्कृति, भाषा, समाज, पहिचान केँ आगू बढेबाक लेल – जनचेतना आ जनजागरणक आरो-आरो काज सब आगू निरन्तर करैत रहबाक वचनबद्धता, एन्टा एकरा आगू बढबैत रहत। पोजिटिविटी संग आगामी जनगणना लेल सब कियो प्रयास करय जाउ यैह अपील।