मैथिली सुन्दरकाण्डः श्री तुलसीदासजी रचित श्रीरामचरितमानस केर सुन्दरकाण्डक मैथिली अनुवाद
लंका जरेलाक बाद हनुमान्जी केर सीताजी सँ विदाई माँगब और चूड़ामणि पायब
दोहा :
पूँछ मिझाय विश्राम कय धय छोट रूप बहोरि।
जनकसुता केर आगू ठाढ़ भेला कर जोड़ि॥२६॥
जनकसुता केर आगू ठाढ़ भेला कर जोड़ि॥२६॥
भावार्थ:- पूँछ मिझाकय, थकावट दूर कयकेँ और फेर छोट सन रूप धारण कय हनुमान्जी श्री जानकीजी केर सामने हाथ जोड़िकय आबि ठाढ भऽ गेलाह॥२६॥
चौपाई :
मातु मोरे दिअ किछु चिन्ह। जेना रघुनायक मोरा दिन्ह॥
चूड़ामनि उतारि फेर देलनि। हरषि समेत पवनसुत लेलनि॥१॥
चूड़ामनि उतारि फेर देलनि। हरषि समेत पवनसुत लेलनि॥१॥
भावार्थ:- (हनुमान्जी कहलखिन -) हे माता! हमरा कोनो चिह्न (पहिचान) दिअ, जेना श्री रघुनाथजी हमरा देने छलाह। तखन सीताजी अपन चूड़ामणि उतारिकय देलीह। हनुमान्जी ओ हर्षपूर्वक लय लेलनि॥१॥
कहब तात एना मोर प्रणाम। सब प्रकार प्रभु पूरणकाम॥
दीन दयालु कीर्ति बड़ भारी। हरब नाथ मोरा संकट भारी॥२॥
दीन दयालु कीर्ति बड़ भारी। हरब नाथ मोरा संकट भारी॥२॥
भावार्थ:- (जानकीजी कहलखिन -) हे तात! प्रभु सँ हमर प्रणाम निवेदन करब आर एना कहब – हे प्रभु! यद्यपि अहाँ सब प्रकार सँ पूर्ण काम छी (अहाँ केँ कोनो प्रकारक कामना नहि अछि), तथापि दीन (दुःखी) पर दया करब अहाँक बहुत प्रसिद्ध कीर्ति (यश) अछि, तेँ हमर भारी संकट केँ दूर करब॥२॥
तात सक्रसुत कथा सुनायब। बाण प्रताप प्रभु सुमियाब॥
मास दिवस धरि नाथ नहि आयब। तौँ फेर मोरे जिअत नहि पायब॥३॥
मास दिवस धरि नाथ नहि आयब। तौँ फेर मोरे जिअत नहि पायब॥३॥
भावार्थ:- हे तात! इंद्रपुत्र जयंत केर कथा (घटना) सुनायब और प्रभु केँ हुनकर बाण केर प्रताप स्मरण करायब। यदि महीना भरि मे नाथ नहि औता त फेर हमरा जियैत नहि पेता॥३॥
कहु कपि कोन विधि राखब प्राणा। अहुँ कहय छी आब अछि जाना॥
अहाँक देखि शीतल भेल छाती। पुनि हो धैन वैह दिन वैह राती॥४॥
अहाँक देखि शीतल भेल छाती। पुनि हो धैन वैह दिन वैह राती॥४॥
भावार्थ:- हे हनुमान्! कहू, हम कोन तरहें प्राण राखू! हे तात! अहाँ सेहो आब जेबाक बात कहि रहल छी। अहाँ केँ देखिकय छाती ठंढा भेल छल। फेर हमरा लेल वैह दिन आ वैह राति!॥४॥
दोहा :
जनकसुता समझाय कय बहु विधि धीरज देल।
चरण कमल सिर नाइ कपि गमन राम मिलय लेल॥२७॥
चरण कमल सिर नाइ कपि गमन राम मिलय लेल॥२७॥
भावार्थ:- हनुमान्जी जानकीजी केँ बुझाकय, बहुतो प्रकार सँ धीरज दय और हुनकर चरणकमल मे सिर नमाकय श्री रामजी केर पास गमन कयलनि॥२७॥