काल्हि १८ जनवरी २०२१ सन्ध्या साढे ५ बजे करीब काशी मे उपचाररत कवि प्रणव नार्मदेय केर दुखद निधन भऽ गेलनि। सोशल मीडिया मे ई खबरि समस्त मैथिली साहित्य जगत केँ मर्माहत कय देलक आ देर राति धरि लोक अपन-अपन स्मृति आ कवि नार्मदेय केर मार्मिक रचना सभ शेयर करैत हुनका श्रद्धाञ्जलि समर्पित करैत देखेलाह। सब सँ पहिने ई समाचार नवारम्भ प्रकाशनक संचालक आ साहित्यकार संगहि प्रणव नार्मदेय केर साहित्यिक आ वास्तविक जीवन मे अत्यन्त समीप रहनिहार व्यक्तित्व अजीत आजाद फेसबुक स्टेटस सँ देलनि आर तदोपरान्त त लगभग सब कियो हुनका श्रद्धाञ्जलि दैत देखेलाह।
अजीत आजाद द्वारा देल गेल बाकी अपडेट सँ पता चलैत अछि जे प्रणव नार्मदेय पिछला एक मास सँ काशी स्थित अस्पताल मे इलाजरत रहथि। वरिष्ठ साहित्यकार धीरेन्द्र प्रेमर्षि द्वारा शोक सन्देश दैत ईहो कहल गेल अछि जे ओ लीवर कैन्सर सँ संघर्ष कय रहल छलथि। समग्र मे मैथिली केर एक चर्चित युवा कवि प्रणव नार्मदेय बहुत अल्पावस्था मे एहि इहलोक सँ विदाह भऽ सब केँ दुःखी कय परलोक सिधारि गेलथि। सारा मैथिली साहित्य जगत हुनकर अभाव केँ महसूस कय रहल अछि। मैथिली जिन्दाबाद केर तरफ सँ विनम्र श्रद्धाञ्जलि!!
अनकर पापक तील-चाउर कहिया धरि बहतै
धौजनि अप्पन अहिना ओ कहिया धरि सहतै
सुधुआक मुँह सभदिना रहलै चाटैत कुकुरे
नहि बाजत जँ लोक त’ चुप कहिया धरि रहतै
सुन्नर लबनी सभमे पौरल छै माहुर अगबे
दिव्य रूप, अतमा कुरूप कहिया धरि लहतै
धनबल-जनबल पयने भेल बताह फिरै ओ
अपने टा मोनक बात कहू कहिया धरि कहतै
बुझहे पड़तै लगहरि बिसुखल मालक अन्तर
घीबक लेल खाली अथरा कहिया धरि महतै
छैक बेगरता बनबहि पड़तै कर्मक नव मन्दिर
नवो लोक पुरने गहबरकेँ कहिया धरि गहतै
धैरज, आस, भरोस जोगओने राखब संगी
भीत अन्हारक मोटका ई जहिया धरि ढहतै
– प्रणव नार्मदेय जीक ग़ज़ल
ई सत्ता सँ सत्ताधीशक अनुबन्ध भेलैए
सच सुनबहु पर आब प्रतिबन्ध भेलैए
छै जकरे बिक्खे मारल राज-समाज ई
ओकरेलेल लाबा-दूधक प्रबन्ध भेलैए
जै अल्ला-ईशक ना’ पर मरलै लोक से
जीवन-धारक वएह दुहू तटबन्ध भेलैए
जे सभ आस-भरोसक लेने छल ज़िम्मा
ओहि रखबारक चोरे सँ सम्बन्ध भेलैए
– प्रणव नार्मदेय जीक ग़ज़ल
१५ जनवरी १९७८ – मदन कान्त झा एवं नर्मदा झा, ग्राम – हरिपुर मजराही (कलुआही), मधुबनी जिला केर पुत्र केर रूप मे एहि धराधाम मे आयल छलाह प्रणव नार्मदेय । बहुत कम समय मे कइएक उपलब्धिमूलक कार्य मैथिली भाषा आ साहित्य लेल कय गेलाह । हुनकर कतेको रास कथा, निबन्ध, कविता, गजल आदिक विभिन्न पत्र-पत्रिका सब मे प्रकाशित होइत रहल अछि । हुनकर अपन लिखल रचना संग्रह पुस्तक रूप मे ‘विसर्ग होइत स्वर’ नवारम्भ प्रकाशन द्वारा प्रकाशित भेल छन्हि । हाल किछु वर्ष सँ मधुबनी मे अपन निजी रोजगार करैत जीवनयापन करैत छलाह । ताहि सँ पहिने किछु वर्ष ओ कतारदेशक राजधानी दोहा मे वैदेशिक रोजगार मे कार्यरत रहलथि । दोहा (कतार) मे सेहो साँझक चौपाड़ि नामक साहित्यिक कार्यक्रम केर संयोजन मे विन्देश्वर ठाकुर व अन्य मैथिली सृजनकर्ता लोकनिक संग सक्रिय रहलाह । दोहार सँ प्रकाशित ‘परदेशी आखर’ केर सम्पादन सेहो ओ करैत रहथि । ई एकटा त्रैमासिक पत्रिका थिक मैथिलीक । साहित्य आ कला मे काफी रुचि छलन्हि । तबला वादन सेहो करैत रहथि । हुनकर रचना मे एकटा अलग वैशिष्ट्य आ धार देखल जाइत – विज्ञ आ मर्मज्ञ अक्सर यैह बात कहल करथि ।
मैथिली जिन्दाबाद केर सम्पादक प्रवीण नारायण चौधरी हुनका संग आखिरी भेंट २०१८ केर विद्यापति स्मृति पर्व समारोह कुर्सों केँ मोन पाड़ैत श्रद्धाञ्जलि अर्पित करैत ईश्वर सँ हुनक आत्मा केँ चिर शान्ति प्रदान करबाक प्रार्थना करैत छथि । ताहि सँ पूर्व सेहो कइएक बेरुक भेंटघांट आ हुनकर प्रस्तुतिक विशेष अन्दाज – समर्पण आ हँसमुख चेहरा ओ विशेष रूप सँ मोन पाड़ि रहला अछि । २०१८ केर एक आयोजन स्व. चतुर्भुज आशावादी स्मृति उत्सव मधुबनी मे प्रणव नार्मदेय संग मधुबनी सँ मलंगिया धरिक यात्रा आ मैथिलीक महान स्रष्टा नाटककार महेन्द्र मलंगिया जीक आवासगृह मे आतिथ्य केँ मोन पाड़ैत ताहि समय काफी रास अन्तरंग बातचीत सेहो मोन पाड़ैत कहैत छथि जे जीवनकाल मे सेहो प्रणव केँ काफी रास आहत करऽवला घटना सब घटल छलन्हि, लेकिन ओ ताहि सब दर्द केँ स्वयं हलाहल विष जेकाँ पीबिकय अपन जीवन केँ बेर-बेर सही मार्ग पर आ सक्रियता सँ जियए के चेष्टा करैत रहल छलाह । मनुष्यक जीवन मे अस्थिरता बहुत पैघ दुर्दशा मानल जाइत छैक, लेकिन विधनाक खेल केँ मनुष्य कि रोकि सकैत अछि… ओ त घटित होइते रहलैक अछि, होइते रहतैक… प्रणव नार्मदेय समान संघर्षशील आ कर्मठ सृजन-सपूत द्वारा एतेक रास जीवनक दर्द आ घटित घटना सब सँ लड़ैत-जूझैत आखिरी समय सेहो कैन्सर जेहेन खतरनाक रोग सँ लड़ैत जीवन अन्त कयलनि, ई हम मानवक संवेदना केँ बड जोर सँ हिला रहल अछि, एक महाभूकम्प जेकाँ बुझा रहल अछि। बेर-बेर श्रद्धाञ्जलि हे कवि – हे सुच्चा मैथिलीपुत्र! स्वयं जानकी अहाँक आत्मा लेल सम्बल होइथ, अहाँ चिर शान्ति प्राप्त करी। अमरता त भेटिये गेल मैथिलीक सेवक केर रूप मे। अलविदा प्रणव! अलविदा!! जरूर हम सब फेरो भेटब!!