मां के रूप धरि ममता बांटथि।
पत्नी रूप में सघन स्नेह।।
बेटी रूप में एली जानकी।
पुलकित सुनैना संग विदेह।।
बेटा घर के संस्कार बेटी संस्कृति।
जेना विश्व में व्याप्त पुरूष प्रकृति।।
एक बिना दोसरक अस्तित्व असंभव।
बिना सतीश सती के सतीत्व असंभव।।
एक चक्र स रथ के कोनो गति नै भेटत।
समता राखब दुनू में तखने सुख भेटत।।
शक्ति स विहीन शिव के पूजन केना होयत।
बिना अन्नपूर्णा मां के किनको भोजन भेटत??
पिता रक्षति कौमारे।
भर्ता रक्षति यौवने।।
पुत्र:तु स्थविरे भावे।
न स्त्री स्वातन्त्र्यमर्हति।।(मनुस्मृति
बाल्यकाल में पिता द्वारा ।युवावस्था में पति द्वारा ।एवं वृद्धावस्था में पुत्रादि द्वारा।स्त्री के सुरक्षा भेटैत छैन।जे कि अत्यावश्यक छैक। स्वतंत्रता एवं स्वच्छंदता स्त्री के योग्य नै छैन।कियैक त ओ हुनका लेल लांछन के कारण बनैत छैन।
कृष्ण कान्त झा