समाज मे गदहा नहि उड़यवला घोड़ा बनेबाक होड़ हो

झूठक प्रशंसा सँ गदहा टा बनैत अछि
 
ई अनुभव हम सब कियो जरूर करैत होयब जे प्रशंसा असली आ नकली दू प्रकार केर होइछ, असली प्रशंसा मे नीक भविष्यक निर्माण होइत अछि ओत्तहि नकली प्रशंसा मे क्षणिक आनन्द प्राप्त होइतो ओ दीर्घकालीन प्रभाव नहि छोड़ि पबैत अछि। मैथिली केर पठन-पाठन या सृजन-पोषण केर कार्य मे सेहो एहि दुइ प्रशंसाक भरमार देखल जाइछ। एक व्यक्ति बिना कोनो मान-अपमान, सम्मान-अभिमान आदिक हिसाब कएने निरन्तर अपन कर्म-कर्तव्य करैत अछि, आ दोसर बस झूठक प्रशंसा लूटबाक आ क्षणिक सुख लेल मैथिलीक सेवा करबाक स्वांग करैत देखल जाइछ। पहिल तरहक लोक सुच्चा भेल आ दोसर तरहक लोक केँ हम टुच्चा कहैत छी – कारण ओकर टुचगिरी (तुच्छता) ओकरा ओहि वास्ते बनेनहिये छैक। लेकिन जखन नीति आ नैतिकताक भाषण देबाक बेर होयत त पहिल तरहक लोक अपन कमी-कमजोरी केँ आत्मनिरीक्षण करैत सुधार आ उत्तरोत्तर प्रगति केर पक्ष देखैत अछि जखन कि दोसर पक्ष बड़का-बड़का गप देबाक, दार्शनिक जेकाँ कय टा कमी-कमजोरी दोसरहि द्वारा होयबाक बात बघारैत भेटैत अछि।
 
एकटा बच्चा कक्षा ७ सँ अपन मातृभाषा मे रुचि लैत रहल। ओकरा अपन रुचि आ लगन सँ मैथिलीक सब उच्च सँ उच्चतर श्रेणीक योगदान कयनिहार सभक संग सत्संग भेटैत रहलैक। ओ बढैत चलि गेल। ओ कहियो रुकल नहि। नहिये ओकर जातीय पहिचान ओकरा कतहु बाधक भेलैक, नहिये ओकर हक-दाबी केँ कियो श्रेष्ठ (सीनियर) लूटनिहार भेलैक, ओ एकछत्र रूप सँ बढैत चलि गेल। ओकरे एकटा कक्षामित्र छलैक आ ओकरो रुचि भेलैक अपन मातृभाषा मे, रचनाशीलता सेहो छलैक ओकरहु मे – मुदा ओकरा अपन रचना प्रति दोसरक कतेक वाहवाही भेटल ताहि बातक अपेक्षा रहल करैक। ओ किछु समय बाद पहिल सँ पिछैड़ गेल। कनी दिनक बाद ओ मैथिली भाषा केँ गरियेनाय शुरू कय देलक। ई मात्र एकटा उदाहरण उपरोक्त हाइपोथेसिस (सैद्धान्तिक सत्य) केँ साबित करयलेल देल।
 
मैथिली भाषा पढबाक आ सिखबाक ललक बहुत नगण्य लोक मे भेटत। कियैक? कियैक त मैथिली भाषा पढिकय ओकरा नौकरी नहि भेटतैक, ई एकटा भ्रम समाज मे पसरल अछि। नेपाल मे एखन धरि मैथिली पढिकय कोनो प्रतियोगितात्मक परीक्षा आ नीक तह केर नौकरी आदिक स्थिति नहि बनलैक अछि, हँ शिक्षण पेशा, अनुवादक, लिपिक, आदि मे रोजगार मैथिली पढला सँ भेटतैक। मुदा मुस मोटायत त लोरहा होयत – एहेन नौकरी (अवसर) छहिये कतेक? यैह सोचि लोक उदासीन बनि अपन मातृभाषा बड बेसी चाव सँ नहि पढि पबैत अछि। ओम्हर भारत मे बिहार लोक सेवा आयोग, संघीय लोक सेवा आयोग, शिक्षक केर रूप मे, महाविद्यालय व विश्वविद्यालयक प्राध्यापक केर रूप मे, आ आरो भाषा आधारित अन्य किछु महत्वपूर्ण पद पर कार्य करबाक अवसर हेबाक कारण स्थिति कनेक निम्मन छैक।
 
तथापि, १०० मे सँ बामोस्किल १ विद्यार्थी लोकसेवा आयोग केर परीक्षा दय भारत मे उच्च प्रशासनिक सेवा पदाधिकारी बनबाक सोच रखैत अछि आर ताहि सँ इतर मैथिलीक उच्च अध्ययन सँ प्राध्यापक बनबाक या फेर व्यक्तिगत प्रतिभा मे उत्कृष्टता अनबाक लेल भाषा-साहित्यक पढाई लोक करैत अछि। यैह कारण मैथिली मे बहुल्यजन बड बेसी रुचि नहि लैत अछि। अभिभावक सेहो अपन बच्चा केँ मैथिली भाषा-साहित्य पढबाक लेल बहुत बेसी प्रोत्साहित नहि करैत देखाइछ। विद्वान् डा. देवेन्द्र झा केर एक उक्ति मोन पड़ैत अछि – होमियोपैथिक डाक्टर आ मैथिली सँ एमए – एहि दुइ लोक केँ समाज मे सम्मानक दृष्टि सँ बहुत पहिनहि सँ नहि देखल जाइत छैक। आब सोचि लियौक। मैथिली पढबाक आ एहि मे महारत हासिल करबाक सामाजिक व्यवस्था जँ एहने उदासीन या नकारात्मक रहतैक त के पढत मैथिली? लेकिन मैथिली पर फल्लाँ-फल्लाँ जातिक कब्जा अछि, दोसरक मैथिली मे अशुद्धताक बात कहि ओकरा हीनभावना सँ दुत्कारल जाइत अछि, अकादमिक वा प्रतिष्ठित मंच सब पर एलिट्स केँ मात्र स्थान भेटैत अछि, आदि समीक्षा गये दिन अयोग्यहु व्यक्ति करैत भेटि जायत अछि।
 
निष्कर्षतः असल प्रशंसा माने शिक्षा आ कर्तव्यनिर्वहन प्रति निष्ठावान व्यक्ति आ झूठ प्रशंसा सिर्फ खरखाँही लूटबाक प्रवृत्ति रखनिहार – नाम लेल करब साप्ताहिक वा मासिक कवि सम्मेलन, साहित्यिक विमर्श, विद्वत् सभा – मुदा तेकर मर्म केँ अपन जीवन मे जियब नहि, अपनहि भाषा मे निरन्तर सृजनकर्म करब नहि – ई भेल दोहरा चरित्र आ झूठक प्रशंसा लेल बेहाली! एहि तरहक लोक केँ कतबो पीठ ठोकि देबैक, ओ सिर्फ गदहा टा बनत, भार टा उघत। ओ उड़यवला घोड़ा नहि बनि सकैत अछि। बात जानी साफ!
 
हरिः हरः!!