चौरचन मिथिलाक महत्वपूर्ण लोकपर्व थिकः डा. महेन्द्र नारायण राम

लोकसाहित्यकार डा. महेन्द्र नारायण राम केर महत्वपूर्ण विचार लोकपाबनि पर

२३ अगस्त २०२०। मैथिली जिन्दाबाद!!

चौरचन २०२० बीतल। भाद्र शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि केँ आर कतहु चन्द्रमाक दर्शन वर्ज्य अछि, लेकिन मिथिला मे ई अदौकाल सँ चानक विशेष दर्शन लेल जानल जाइत अछि। एकरे चौरचन कहल गेल छैक। एकरा लोकपाबनि सेहो कहल गेल छैक। एहि सन्दर्भ मे लोकसाहित्यक विशिष्ट मर्मज्ञ-साहित्यकार डा. महेन्द्र नारायण राम सँ कयल गेल एक जिज्ञासा – “सर, चौरचन पर अहाँक किछु टिप्पणी साहित्यिक तौर पर चाहि रहल छी। ई लोकपाबनि कहल गेल अछि, एकरा व्याख्या करू।”

डा. राम केर जवाब जे आयल से अपने लोकनि संग समस्त पाठक जन लेल काफी महत्वपूर्ण भऽ सकैत अछि –

  • चौरचन मिथिलाक महत्वपूर्ण लोकपर्व थिक! ई भादव शुक्लपक्षक चौठ तिथि कें मनाओल जाइत अछि! एहि तिथि कें राति/साँझ मे सविधि चानक पूजा कयल जाइत अछि! साँझ मे जखनहि चान आकाश मे उगैत अछि, तुरत पूजन प्रारंभ भs जाइत अछि! मिथिलावासी गरीब-धनीक खाली हाथ नहिं, अपितु केरा, नारिकेर, खीरा कोनो फल लsकs चानक दर्शन करैत अछि! ओना खाली हाथ चानक दर्शन एहि राति दोषपूर्ण आ कलंकयुक्त मानल जाइत अछि!
    सहनिहारि सभ भरि दिन सहलाक बाद आंगन कें निपि केराक पात पर सभ पूजन सामग्री चढबैत छथि! खीर, पूरी, मटकुर सभ मे दही, फल, तरकारी, ओलक चटनी आदि पसारैत अछि! चान उगलाक बाद हाथ उठबैत छथि आ तत्पश्चात टोल-पडोसक लोक कें बजा कs मड़र खोटबैत/भंगबैत छथि! तखन व्रतिक संग आन सदस्य भोजन करैत छथि! भोजनोपरान्त बचल सामग्री कें केरा पात संगहि ठामे ओहि आंगन मे गाड़ि देल जाइत अछि!
    ई परम्परा लोकपरंपरा छी, मुदा कखनो-कखनो लोकोपरंपरा देखा-देखी आ बंदिशक विकल्पक परिणामस्वरूप होइत अछि जे हमरा बुझने बाबजूद तइयो एहि मे धार्मिकता, सुख-शांति, सौहार्दपूर्ण भाव सन्निहित रहितहिं अछि! पुराण मे वर्णित कथनानुसार एहि राति श्री कृष्ण चान के देखलन्हि आ दू बेर मणि चोरायबाक कलंक सँ ग्रसित होमs पड़लनि! पौराणिक कथा के अनुसार एक समय गणेश जी कें तुन्दील शरीर आ गजमुख देखिकs चन्द्रमा कें हँसी आबि गेलनि! गणेश जी एहि पर क्रोधित भs उठलाह आ हुनका श्राप दs देलखिन- “जे तोहर मुँह देखत, ओकरा कलंक लागि जायत!” अपन एहि श्राप सँ मुक्त हेबाक लेल स्वयं गणेश जी सेहो व्रत रखलनि आ तहिये सँ एहि पर्वक चलनि भs गेल आ आइ धरि ई लोकपरंपरा चलि आबि रहल अछि! तैं एकरा “गणेश चौठ” सेहो कहल जाइत अछि!
    एहि राति कोनो ने कोनो स्थान पर चान कें मारबाक लेल ढेप फेकल जाइत अछि! एहि राति मिथिला मे खेबाक पीबाक सुन्दर आयोजन होइत अछि! प्रातःकाल भने गुरूजीक पूजा सेहो होइत अछि! गणेश जीक मूर्ति छात्र लोकनि माथ पर लs लकुठी बजबैत दरबज्जे दरबज्जे घुमबैत अछि आ गीत गबैत रहैत अछि – गुरूजी गुरूजी….. प्रणाम! मुदा आब एहु मे वैश्वीकरणक प्रभाव पड़ि गेल अछि!