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चौरचन पाबनिक वैदिक पूजा विधान

मिथिला कर्मकांड – लोकपाबनि चौरचनक वैदिक पूजा विधान

– डा. सुधानन्द झा (ज्योतिषीजी), ग्रामः राढ़ी, जिलाः दरभंगा केर हस्तलेख पर आधारित

(संकलन – श्री शंकर सिंह ठाकुर, सचिव, अप्पन ब्राह्मण समाज, विराटनगर, नेपाल)

पुनर्लेखनः प्रवीण नारायण चौधरी 

चौरचन लोकपाबनि थिकैक। एहि मे मंत्रक प्रधानता सँ बेसी भावक प्रधानता छैक। मिथिलाक विशिष्ट पाबनि थिकैक चौरचन, जतय संसार मे आजुक चान केर दर्शन वर्ज्य मानल गेलैक अछि ओतय मिथिला मे प्राचीनकाल सँ एहि ठामक राजाक रक्षार्थ राखल गेल कबुला केर कारण समस्त मिथिलावासी चौठीक चान केर ऋतुफल-दधि-मिष्ठान्न-खीर आदिक भोग लगबैत फलहि-दही आदि सँ चन्द्रमा केँ हाथ उठाकय प्रणाम करैछ, जाहि लेल चन्द्रमा द्वारा विशेष आशीर्वाद प्राप्त करबाक विधान वर्णित अछि। कतेको विज्ञजन एहि लोकपाबनि मे सेहो वैदिक विधान केर प्रयोग करैत घरहि केर बड़-बुजुर्ग वा अन्य शिक्षित सज्जन द्वारा पुरोहिताई करैत पाबनि मे चन्द्रमा केँ हाथ उठाकय प्रणाम करबाक सम्पूर्ण विधान पूरा करैत छथि। आउ, प्रसिद्ध ज्योतिषीजी डा. सुधानन्द झा केर हस्तलिखित पत्रानुसार चौरचनक वैदिक विधान पर नजरि दी, एहि मे मंत्रक जे उल्लेख कयल गेल अछि तेकर विभिन्न स्रोत छथि, कारण ज्योतिषीजीक मंत्रक उल्लेख अस्पष्ट बुझाइत छल।

चतुर्थीचन्द्र (चौरचन) पूजा विधि

(२४.०८.२०१७ केँ लिखल)

  • सायंकाल स्नानादि सँ निवृत्त भऽ कय पूजाक सामग्री अर्घ्य, अरिपन, कलश आदि ओरिया लियऽ। खड्ग धारण करू। जौ, कुश, तिल, अक्षत, दीप, माला, जनेऊ, सिन्दूर, पल्लव, सिक्का, सुपाड़ी, चन्दन, गंगाजल, केराक पात, गाय केर काँच दूध आदि सरिया लियऽ।
  • उत्तर-मुंहें वा पश्चिम मुंहें बैसिकय पहिने कुश सँ जल लय सब किछु सिक्त करू – मंत्रः नमः अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा । यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥ आब ३ बेर आचमन करूः “नमः नारायणाय नमः! नमः केशवाय नमः!! नमः माधवाय नमः!!” आर फेर ‘नमः हृषीकेशाय नमः’ पढैत मुंह पोछि लियऽ।
  • आब कुश-अक्षत लय केराक पात पर पंचदेवताक पूजा करू – नमः श्री गणपत्यादि पंचदेवता इहागच्छत इह तिष्ठत। पुनः जल लय हुनक चरण पखारबाक लेल अर्घ्य दैत आचमनि व स्नान कराउ – एतानि पाद्य अर्घ्य आचमनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि नमः श्री गणपत्यादि पंचदेवताभ्यो नमः। चन्दन – इदमनुलेपनम् नमः श्री गणपत्यादि पंचदेवताभ्यो नमः। अक्षत – इदमअक्षतम् नमः श्री गणपत्यादि पंचदेवताभ्यो नमः। पुष्प – एतानि पुष्पानि नमः श्री गणपत्यादि पंचदेवताभ्यो नमः। जल सँ नैवेद्यक उत्सर्ग – एतानि गंध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बुल-यथाभाग नानाविध नैवेद्यानि नमः श्री गणपत्यादि पंचदेवताभ्यो नमः। जल लय आचमनि – इदमाचमनीयं नमः श्री गणपत्यादि पंचदेवताभ्यो नमः। पुनः पुष्प लय – एष पुष्पाञ्जलि नमः श्री गणपत्यादि पंचदेवताभ्यो नमः।
  • आब जँ सधवा छी तँ गौरीजी केर पूजा कय लियऽ।
  • पुनः विष्णु भगवान केर पूजा करू (एतय लेखक द्वारा सिर्फ विधवा द्वारा विष्णु पूजा करबाक उल्लेख अछि।) – नमः भूर्भुवः स्वः श्री भगवन् विष्णोः इहागच्छ इह तिष्ठ। जल लय पाद्य, अर्घ्य, आचमनि आ स्नान – एतानि पाद्य-अर्घ्य-आचमनीय-स्नानीय-पुनराचमनीयानि नमः भगवते श्री विष्णवे नमः। चन्दन – इदमनुलेपनम् नमः भगवते श्री विष्णवे नमः। जौ एवं तिल लय – एते जौ तीला नमः भगवते श्री विष्णवे नमः। पुष्प – एतानि पुष्पाणि नमः भगवते श्री विष्णवे नमः। जल सँ नैवेद्य आदिक उत्सर्ग – एतानि गंध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग नानाविध नैवेद्यानि नमः भगवते श्री विष्णवे नमः। जल लय आचमनि – इदमाचनियम् नमः भगवते श्री विष्णवे नमः। पुनः पुष्प – एष पुष्पांजलि नमः भगवते श्री विष्णवे नमः। 
  • आब कुश-तिल-सिक्का-सुपाड़ी-जल लय केँ संकल्प करू – नमः अस्यां रात्रो भाद्रेमासे शुक्लेपक्षे चतुर्थ्यां तिथौ अमुक गोत्राया (अपन गोत्रक नाम लियऽ) अमुकी (अपन नाम) देव्या सपरिवारस्य सकलदूरितोपिसर्गापच्छान्तिपूर्वक सकल मनोरथ सिद्ध्यर्थं यथाशक्ति गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-नैवेद्यादिभिः पूर्वांगीकृत रोहिणी सहित भाद्रपद चतुर्थीचन्द्र पूजनमहं करिष्ये। 
  • चौठी चान केर पूजा आरंभ – हाथ मे कुश, अक्षत आ फूल लियऽ आ चन्द्रमाक आवाहन पूजा करू – नमः रोहिणीसहित भाद्रशुक्ल चतुर्थीचन्द्र इहागच्छ इह तिष्ठ। जल लय पाद्य, अर्घ्य, आचमनि आ स्नान – एतानि पाद्य-अर्घ्य-आचमनीय-स्नानीय-पुनराचमनीयानि एषोऽर्घः श्रीरोहिणीसहित चतुर्थीचन्द्राय नमः। चन्दन – इदमनुलेपनम् चन्दनम् श्रीरोहिणीसहित चतुर्थीचन्द्राय नमः। अक्षत – इदमक्षतम् श्रीरोहिणीसहित चतुर्थीचन्द्राय नमः। पुष्प – इदम् पुष्पम् श्रीरोहिणीसहित चतुर्थीचन्द्राय नमः। जनेऊ लय – इमे यज्ञोपविते वृहस्पतिवरुणेन्द्र दैवतम् श्री रोहिणीसहित चतुर्थीचन्द्राय नमः। पीयर वस्त्र लय – इदम् पीतवस्त्रम् वृहस्पति-वरुणेन्द्र दैवतम् श्रीरोहिणी सहित चतुर्थीचन्द्राय नमः। माला लय – इदम् पुष्पमाल्यम् श्रीरोहिणीसहित चतुर्थीचन्द्राय नमः।
  • तदोपरान्त आजुक पाबनिक बनाओल गेल समस्त पकवान-प्रसाद एवं पौरल गेल दही तथा ऋतुफल आदिक भोग-नैवेद्यक अर्पण, जल सँ नैवेद्य आदिक उत्सर्गएतानि गंध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग नानाविध नैवेद्यानि श्रीरोहिणीसहित चतुर्थीचन्द्राय नमः। आब हाथ मे दही आ फूल-पानक डाली लय केँ पश्चिम मुंहें ठाढ भऽ कय ई मंत्र पढूनमः दधिशंख तुषाराभं क्षीरोदर्णव सम्भवम्। नमामि शशिनं भक्त्या शम्भोर्मुकुट भूषणम्॥ पुनः दोसर मंत्र – नमः सिंह प्रसेनमवधित सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदीः तव ह्येष स्यमन्तकः॥
  • पबनैतिनक हाथ पर जे डाली छन्हि ताहि पर घरक बाकी सदस्य एक-दोसरक हाथ पकड़ि गाय केर काँच दूधक धार सँ आ चन्द्रमा सँ अपन घर-परिवार आ अपन खुशहाली लेल वरदान मांगथि। दूधक अर्घ्य देबाक मंत्र –एषः दूग्ध अर्घ्यः श्रीरोहिणीसहित चतुर्थीचन्द्राय नमः। एवम् प्रकारेन पबनैतिन द्वारा बेरा-बेरी सभटा अर्घ्य चन्द्रमा केँ समर्पित करथि आर घर-परिवार व बालबच्चा सब कियो प्रार्थना करथि। फेर घरक सब गोटे एक-एकटा सामान हाथ मे लियऽ आ ऊपरवला हाथ उठेबाक दुनू मंत्र पढैत चन्द्रमा केँ प्रणाम करू।
  • सोनाक सिकरी सँ मारड़ि भांगू।

  • आब विसर्जनक वास्ते कुश-तिल-जल लय केँनमः श्री गणपत्यादि पंचदेवता पूजितोसि प्रसीद प्रसनो भव क्षमस्व स्वस्थानं गच्छ। नमः भगवते श्री विष्णवे पूजितोसि प्रसीद प्रसनो भव क्षमस्व स्वस्थानं गच्छ। नमः श्रीरोहिणीसहित चतुर्थीचन्द्राय पूजितोसि प्रसीद प्रसनो भव क्षमस्व स्वस्थानं गच्छ। 
  • दक्षिणानमः अद्य कृतैतत् श्रीरोहिणीसहित भाद्रशुक्ल चतुर्थीचन्द्र पूजन कर्म प्रतिष्ठार्थम् एतावत् द्रव्यमूल्यक हिरण्यमाग्नि दैवतं यथानाम ब्राह्मणाय दक्षिणां दातुं अहं उत्सृज्ये।
  • प्रार्थना मंत्र-

    मृगाङ्क रोहिणीनाथ शम्भो: शिरसि भूषण।

    व्रतं संपूर्णतां यातु सौभाग्यं च प्रयच्छ मे।।

    रुपं देहि यशो देहि भाग्यं भगवन् देहि मे।

    पुत्रोन्देहि धनन्देहि सर्वान् कामान् प्रदेहि मे।।

एहि तरहें चौठी चान केर पूजन विधि सम्पन्न भेल। आब प्रसाद ग्रहण करय जाउ। सभक कल्याण हो!

हरिः हरः!!

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