लेख
– पिताम्वरी देवी
कन्यादान
“दीदी मां! दीदी मां! अहाँ केँ बड खिस्सा अबैत ये, हमरा एकटा खिस्सा कहु ने।” रेणू केर सात वर्षक भतीजी आँचर पकड़िकय कहय लगलनि । ओ भतीजी केँ कोरा में बैसबैत कहलनि, “आ! तोरा एकटा खिस्सा कहै छियौ ।” ओ भतीजी केँ दुलार करैत कहलनि, “जखनि तोँ पैघ भऽ जेवहिन तखनि भैया गामे-गाम घुमिकय तोरा लेल एकटा सुन्दर सन वर अनथुन । गामे गाम के लोक सब औतैक, गाजा बाजा बजतैक, हमर भतीजी के विवाह हेतैक । वर वरियाती सब औतैक । अंगना में वेदी गाड़ल जेतैक । भैया कन्यादान करथिन । हमर भतीजी के विवाह होयत ।”
भतीजी – “पापा हमर दान करथिन ? हम कोनो बस्तु छियै ?”
पीसी – “धुर बकलेल! से थोड़वे होइत छैक ! कन्यादान एहि लेल कयल जाइत छैक जे बिना दान केने वर केँ कोन अधिकार हेतैक, ओ तऽ आन गाम के रहैत छैक । ओकरा से कोनो सम्बन्ध नै रहैत छैक । पिता अपन सोन सन के बेटी के आन गोत्र, आन कुल-मूल में कोन अधिकार सँ दय देथिन । तैँ, पिता दान कय केँ विष्णु तुल्य जमाइ केर हाथ पकड़ा दैत छथिन जे आइ सँ हमर बेटी अहाँक भेल। आर जमाइ सपथ खा के दान लैत छथिन । आर सपथ खाइत छथिन जे आइ सँ ई हमर पत्नी भेलीह, हमर अर्धांगिनी भेलीह । हिनकर सुख-दुःख में हम हमेशा संग रहवनि । हिनकर भरण-पोषण केर भार हमर भेल । हिनकर सम्पूर्ण मांग केँ हम पूरा करवनि । तखनि सँ बेटी के गोत्र, कुल, मूल सबटा बदलि जाइत छैक । जे जमाइ केर गोत्र-मूल रहैत छनि ओ गोत्र-मूल बेटियो केर भय जाइत छैक । पिता केर कुल सँ बाहर भ’ कय सासुर केर कुल मे मिलि जाइत छथि । नैहर केर तीन दिन के अधिकारी भ’ जाइत छथि आर सासुर के तेरह दिन के अधिकारी भ’ जाइ छथि । तैँ, कन्यादान केनाय आबश्यक छैक । यदि कन्यादान नै करथिन तऽ बेटी सासुर कोना जेती आर ओहि घर में कोन अधिकार सँ रहती ? पत्नी पति केर अर्धागिनी छथिन तैँ पति केर सब बस्तु पर पत्नीक अधिकार रहैत छनि । माय-बाप केँ बेटी पर सँ अधिकार हँटि जाइत छनि आर पति केर अधिकार पत्नी पर भय जाइत छनि । एहि लेल बेटी केँ दान कयल जाइत छैक । बरियाती, सरियाती सब एकर गबाह रहैत छथिन । तैँ बर-बरियाती ल कय विवाह करैय लेल अबैत छथि । असकर विवाह नै होइत छैक । असकर विवाह केँ नहि मानल जाइत छैक ।”
भतीजी – “दीदी मां! तैँ अहाँ सासुर में रहैत छियैक ? अहुं केँ बाबा दान केलनि ?”
पीसी – “हँ, हमरो बाबूजी दान केलनि । बेटी के जन्मे अहि लेल होइत छैक । पिता केर पाग आर ससुर केर मान केँ हमेशा ध्यान राखय पड़ैत छै । भलेहि बेटी दुनू कुल केर लाज रखैत-रखैत अपने किया ने जन्म भरि पिसाइत रहथि ! कन्यादान सन आर कोनो दान नै कहल जाइत छैक । सत में पिता अपन कलेजाक टुकड़ा केर दान करैत छथि, एहि सँ पैघ कि दान होयत । कन्यादान करै काल सब सँ तर में पिता केर हाथ रहैत छनि, हाथ में तिल, कुश, जौ, संख, जल, फल रहैत छन्हि । ताहि ऊपर वर केर हाथ रहैत छनि । आर सबसँ ऊपर बेटी केर हाथ रहैत छनि । तखनि दान होइत अछि । हमरा सभक गाम में मड़वा सेहो बनैत अछि आर मड़वा पर कन्यादान होइत अछि । ओना सब ठाम वेदी तर कन्यादान होइत अछि ।”