कथा-संस्मरण
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हमर दहेज मुक्त विवाह
– प्रवीण नारायण चौधरी
अपन पैर पर ठाढ भऽ गेलाक बाद एना बुझायल जे आब विवाह कय लेबाक चाही, कारण विवाह एकटा निश्चित उम्रक सीमा मे भेनाय उचित होइत छैक। देरी सँ जे विवाह करैत छथि हुनकर जीवन मे कतेको प्रकारक समस्या वृद्धावस्था मे होइत देखलहुँ… से शुरुए सँ विचार बनेने रही जे अपन विवाह समय पर करब।
पिता केँ कहलियनि विवाह लेल उचित कथा देखबाक वास्ते… ताहि बीच पिताक अचानक अवसान भऽ गेलनि। ई करीब १९९४-९५ केर बात थिक जखन हम २२ वर्षक रही। पिताक अवसान सँ परिवारक मुख्य जिम्मेदारी अपनहि ऊपर आबि गेल, पिताविहीन पुत्रक विवाह मे अभिभावकक भूमिकाक बड पैघ कमी बुझायल।
माताक भूमिका पुरुषप्रधान समाज मे नहि के बराबर होइत छैक, तेँ नजदीकक सम्बन्धी आदि पर निर्भर रहय पड़ैत छैक, जेकर बड़ा कटु अनुभव हमरा भेल… न अपने खुलिकय किनको संग बात कय सकैत छलहुँ… न कियो ओहि तरहक जिम्मेदारी वहन करबाक लेल पीठ पर ठाढ रहथि। अतः अपन मोन मे ई ठानि लेलहुँ जे अपनहुँ सँ अधिक आर्थिक रूप सँ कमजोर परिवारक बेटी संग विवाह करब आ बेटीवलाक एक पाइ स्वयं नहि छुअब। हुनका अपन स्वेच्छा जे होइन। ई बात किछु अभिभावक सँ कहलियनि। जतय काज करैत रही ओतहु मित्रवर्ग मे चर्चा कएने रही।
एहि क्रम सँ दुइ-चारि कथा-परिचय भेटल आ अपन विवाह पूर्ण दहेज मुक्त, केवल अपन समाजक लोक केँ बरियाती मे अनबाक आ हुनका सभक नीक सँ स्वागत सत्कारक मांग कएने रहियनि जे सहर्ष पूरा भेल। शेष, हमर बहनोइ केर जेठ भ्राता (अभिभावक) आदति सँ मजबूर एकटा मोटरसाइकिल दूल्हा केँ चढय लेल दय देबनि बाजिये टा देलखिन जे अपना बड़ खराब लागल छल… हमर ससूर महाराज जे वार्ता लेल आयल छलखिन्ह ओ चौंकि गेल छलाह… ओ एतबे बजलखिन जे मोटरसाइकिल हम देबनि से कर्ज करय पड़त… बनारस मे ५ टके सैकड़ा मासिक सूदि पर पाय उठायब आ हिनका एक मोटरसाइकिल देबनि त ओ कर्जा चुकबय मे हमरा बहुत समय लागत… मोन कल्पैत रहत…। एहि सँ नीक जे हम आइ सहर्ष मोन सँ आशीर्वाद देबनि जेकर फलस्वरूप हिनका ८० टा मोटरसाइकिल कीनबाक सामर्थ्य स्वतः भेटि जेतनि।
हम अपन अभिभावक केँ कहलियनि जे ८० टा मोटरसाइकिल वला आशीर्वाद नीक विकल्प अछि। एहि तरहें बड़ा शुभ-शुभ हम दहेज मुक्त विवाह कयलहुँ आ हमर सासु-ससूर एतबा स्वागत-सत्कार आ साँठ-ताँठ सँठलनि जे तैयो किछु कर्जा कइये लेलनि। बाद मे पता चलल त हम अपना भरि अपन ससूर महाराज केर ओहो कर्जा हल्लूक करबाक यत्न कयल। कथमपि माता-पिता सँ लेबाक नहि देबाक नीति पर हम सन्तान चलब त निश्चित जीवन मे कर्मठता आ सफलताक प्रतिष्ठा प्राप्त करब। खुशी अछि जे आइ हुनका लोकनिक आशीर्वाद सदिखन जीवन मे बनल अछि।