लघुकथाः राजदरबाक दरबज्जा खोलबाक सूत्र
– किशोर कुमार झा, सुपौल
एकटा राजा एकटा विशाल महल बनेलथि । ओहि महल केर प्रवेशद्वार पर एकटा गणितक सूत्र लिखि देलखिन्ह आ घोषणा कयलखिन्ह जे एहि सूत्र केर हल करलाक बादे एहि महल केर प्रवेश द्वार खुजत । आर, जे कियो ई हल कऽ पेता तिनका आधा राजपाट देल जाएत । एक सँ एक गणितज्ञ सब अयलाह, मुदा ओ सूत्र हल नहि भऽ सकल । काफी समय बीति गेल आ प्रतियोगिता के अंतिम दिन आबि गेल । ओहि दिन तीन टा विद्वान अयलाह जाहिमे दू टा तँ मोट मोट गणितक पुस्तक संगहि आनने छलथि आ तेसर खाली हाथ कोनो साधु जेकाँ लगैत छलाह । राजा केर मंत्री एहि साधु केँ कहलखिन्ह सूत्र हल करवा लेल जाहि पर ओ कहलखिन्ह जे पहिने ओहि दूनू विद्वान कय प्रयास करऽ देल जाय । ओ दूनू विद्वान थाकि गेलैथ मुदा सूत्र हल नहि भेल । तखन ई तेसर साधु महाराज पहुंचलाह । ई सीधे दरवाजा केँ स्थिर सऽ धकेललखिन्ह आ कि दरवाजा खुलि गेलैक । राज्य मे हर्षोल्लास होमय लागल । राजा दरबार लगाकय हुनका पुरस्कृत कयलखिन्ह आ पूछलखिन्ह जे अहाँ कोना सूत्र केँ हल कयलहुँ । ओ साधु कहलखिन्ह जे पहिने हर मनुष्य केँ ई जांच करबाक चाही कि जे भी समस्या छैक ओ वास्तवमे छै कि नहि । हमरा मोन मे आयल जे पहिने ई जांच कऽ ली जे वास्तवमे इ दरवाजा बन्द छै कि नहि । राजा प्रसन्न भऽ कय कहलखिन्ह जे वास्तवमे एहि प्रतियोगिताक उद्देश्य इएह छल जे किनका अपन आत्मा केर आवाज सुनाइ पड़ैत छन्हि!
नोटः ई कथा दहेज मुक्त मिथिला समूह पर आयोजित लघुकथा प्रतियोगिता मे द्वितीय पुरस्कार सँ पुरस्कृत कयल गेल अछि।