गीतकार विजय झा मुन्नू केर दुइ गोट भक्ति रचना

भक्ति-रचना

– विजय झा ‘मुन्नू’

नचारी
दिय प्रलोभ लोभ मद त्यागी, चरणक करि सेवा
शिव यौ पाबि हम भक्ति सन मेवा
 
दया धर्म ने कनिको बांचल सबतर हम अन्याय देखैय छी
भाई भाई मे रक्त के प्यासल धिरज ने हम कतौउ देखैय छी
माय बाप के बेटा पुतोहु, देखाबैय छै ठेंगा
शिव यौ पाबि हम भक्ति सन मेवा
 
ताकी जिम्हरे धन संपत्ति सब भक्ति मे दिवार बनल ये
बौरहबा के कर्म फुटल छै अपने सिर के धुनि रहल ये
बढ़ल अन्याय महाभारत भेल, श्री कृष्ण के सोझा
शिव यौ पाबि हम भक्ति सन मेवा
 
आश अहींके विजय के छल कयने छलाह विश्वास
कृपा अहींके हे शिव शंकर बनल चरण के दास
ज्ञान दियौ सब जीव अहींके, रहैय ने केउ अकेला
शिव यौ पाबि हम भक्ति सन मेवा
 
दिय प्रलोभ लोभ मद त्यागी,चरणक करि सेवा
शिव यो पाबि हम भक्ति सन मेवा
 
२. कृष्ण भजन
थाकि गेलौं कहिकऽ बात यो उधवजी
देलौं ने श्याम के समाद यो उधवजी
 
लिख लिख पत्तिया श्याम के भेजलौं निर्मोही प्रेमी दरदियो ने जनलैन
राधा श्याम विनु रहैय छथि कोना जाय वेरू हमरा सँ भेंटो ने केयलैन
श्याम विनु जीवन विषाद यो उधवजी
देलौं ने श्याम के समाद यो उधवजी
 
केहन कठोर हमर घनश्याम भेलखिन जायके छलैन मथूरा प्रेम किया केलखिन
सौख सेहंता श्रृंगार ये परल विरह के अग्नि मे छोरि हमरा देलखिन
रास लेल यमूना उदास यो उधवजी
देलौं ने श्याम के समाद यो उधवजी
 
मुरली के तान सुनलाऽ कतेक दिन भऽ गेल जहिये सँ श्याम हमर मथुरा गेलैय
आबय ने अबाज पायल फेकि देलौं तोरिकऽ वृंदावन के गली विरान आब भेलैय
भगत विजयजी छैन दास यो उधवजी
देलौं ने श्याम के समाद यो उधवजी
 
थाकि गेलौं कहिकऽ बात यो उधवजी
देलौं ने श्याम के समाद यो उधवजी