परोपकार सँ पैघ धर्म नहि – कम सँ कम एक कन्यादान मे सहयोगी जरूर बनू

परोपकार सँ पैघ कोनो धर्म नहि
 
जीवन हर जीव केँ प्रिय छैक। मुदा मनुष्य लेल ई मात्र प्रिय टा नहि अनमोल सेहो छैक। मनुष्य केँ प्राप्त आयु मे ओकरा बहुत किछु करबाक आधार भेटैत छैक जे आन जीव केँ शायद नहि छैक नसीब…. आर एहि तरहें मनुष्य योनि मे जन्म लेलाक बादे ‘मोक्ष’ जेहेन सर्वोच्च अभीष्ट प्राप्त होइत छैक।
 
आजुक विषय परोपकार कियैक?
 
दहेज प्रथा जे अपना मोन सँ आ अपन सामर्थ्य अनुसार जमा पूँजी मे सँ टका-पैसा गानि बेटी-बहिनक विवाह करैत अछि ओकर ओतेक महत्व नहि छैक, मुदा जे अपन सर्वोत्कृष्ट भावना सँ बिना कुटुम्ब पक्ष द्वारा मंगनहिये बेटी-बहिनक विदाई रीतिपूर्वक करैत अछि ओ भेल असल वीर।
 
तहिना, कन्यापक्ष सँ पाय गनबाकय फुरफैंसी देखेनिहार, कय तरहक प्रदर्शन कयनिहार आडम्बरी वीर त गये दिन समाज मे देखाइत अछि, लेकिन जे एहि सोच सँ बेटाक विवाह खूब सख-मनोरथ सँ खर्च-वर्च कय केँ करैत अछि जे ई केकरो सँ मांगल वा देल पैसाक बल पर नहि बल्कि अपन बेटाक कमायल वा अपन कमायल धन केर सदुपयोग केर आधार पर थिक तखन ओ भेल असल वीर।
 
उपरोक्त दुनू केस मे ‘वीर’ केर चरित्र अध्ययन करब त जरूर देखब जे ओ ‘परोपकारी लोक’ थिकाह। ओ कथमपि लोभी, लालची आ दोसराक धन पर अपन घमन्ड झाड़निहार व्यक्ति नहि छथि। सामान्य तौर पर दहेजलोभी एहि सब गड़बड़ीक कारण पापी बनि जाइछ, नरको मे वास ठीक सँ नहि हेतनि से कहि सकैत छी। एहि कारण आइ बहुत दिनक बाद दहेज मुक्त मिथिला समूह पर ई सवाल राखल अछि।
 
परोपकार आ आध्यात्म
 
अपन-अपन जीवन मे परोपकारक कोनो छोट कार्य करनिहार केँ हमर प्रणाम! समूह पर एकटा माहौल बनेबाक वास्ते आइ हमरो इच्छा भेल जे अपने सब संग एहि विषय पर वार्ता आरम्भ करी।
 
शास्त्र मे एकटा बड पैघ उक्ति (वचन) भेटैत अछि –
 
परोपकृति कैवल्ये तोलयित्वा जनार्दनः ।
गुर्वीमुपकृतिं मत्वा ह्यवतारान् दशाग्रहीत् ॥
 
भावार्थ :
विष्णु भगवान परोपकार और मोक्षपद दुनू केँ तौलिकय देखलाह तऽ उपकार केर पल्ला बेसी झुकल देखेलनि; ताहि लेल परोपकारार्थ ओ दसावतार (दस बेर अवतार) लैत समस्त मानव-जीव आ लोकक कल्याण कयलनि।
 
हम-अहाँ संकल्प लीः कम सँ कम एक गोट ‘कन्यादान’ मे सहयोगी बनी
 
बेटी अपन हो वा आनक, कतहु न कतहु कन्यादान मे जरूर सहयोगी केर भूमिका निर्वाह करब। जीवन मे ईहो पैघ उपकार होयत। एहि सँ धर्म आ सुन्दर प्रारब्ध अर्जित करब।
 
ॐ तत्सत्!
 
हरिः हरः!!