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पंचतंत्रक रोचक खिस्सा – धूर्त ठक आ ब्राह्मण

धूर्त ठक आ ब्राह्मण

(पंचतंत्रक खिस्सा, अनुवादः प्रियशील नारायण चौधरी)
 

अनुवादकः बाल लेखक प्रियशील नारायण चौधरी

एकटा नगर मे पूजा-पाठ करै वाला एगो पन्डित के हुनकर जजमान हुनका दान मे बकरी देने छेलखिन जेकरा लऽ कऽ ओ वापस आइब रहल छेलखिन। अबैतकाल रस्ता मे ओहि बकरी पर चाइर गो ठक लोकक नजरि पैड़ गेलै। एकदम नीक बकरी केँ देखिकय ठक सब ब्राह्मण सँ ओ बकरी के ठकैके योजना बनेलक। विचार कैर क ओ योजनानुसार अलग-अलग भ गेल।

 
ओइ ठग मे सँ एगो ठग पन्डितजी के सामने आइब क कहै छै – “छिः छिः पन्डितजी, अहाँ पन्डित भऽ कऽ एकटा गन्दा कुत्ता केँ काँध पर उठा कऽ जा रहल छी। अहाँ के त धर्म भ्रष्ट भऽ गेल। शास्त्र मे कहल गेल छै जे –कुत्ता, मुर्गा, ऊँट, गधा, ई सब छुवै योग्य नै होइत छै।” पन्डित जी केँ ओहि ठकक बात पर बड तामस एलैन। पन्डितजी झट सँ कहलखिन – “रै पागल, तुँ आन्हर छिहिन जे बकरी के कुत्ता कहि रहल छिहिन।’’
 
“पण्डितजी! किया तमसाय छी? जाओ, अप्पन रास्ता जाओ। हम जे सत्य देखलौं, सेहे कहलौं।’ ’कहिकय ओ ठक अप्पन रस्ता चैल देलक।
 
पन्डितजी आगु बैढ गेलखिन। आब पन्डितजी कनी दूर चलने हेथिन कि हुनका दोसर ठक सामने सँ अबैत देखैलैन। ठक पन्डित जी के नजदीक आइब क कहलकनि – “अरे पन्डितजी! कते दुख के बात छै जे अहाँ एगो जंगली बिल्ला के रस्सी थामि कऽ लजा रहल छी।’’
 
पन्डितजी तामस मे कहलखिन- “रै मूर्ख! तोरा बकरी नजर नै अबै छौ, जे तु जंगली बिल्ला बता रहल छिहिन।’’
 
ठग कहलकय – “पन्डितजी, अहाँ नै तमसाओ। हमरा कि लेना- देना? जे देख रहल छी, सेहे कहि रहल छी।’’
 
एहि प्रकारे पन्डितजी ओतय सँ चैल पडला तँ कनी दुर गेला पर हुनका तेसर ठक भेटलैन और कहलकनि – “अरे भाइ! अहाँ इ गधा के हाँकिकय लऽ जा रहल छी।’’
 
“कि इ गधा छिये कि?’’ पन्डित आश्चर्य भऽ कऽ ओ ठक केँ देखकऽ आ फेर सोच मे पइड गेला। पन्डित जी के समझमे किछु नै आइब रहल छेलैन। ओ सोच लगलखिन इ सब कि छियै? पहिल आदमी के बकरी कुत्ता देखेलै, दोसर आदमीके बिलाइर और एकरा गधा देखाय द रहल छै, कहीं हम बकरी के रुप मे कोनो बवाल नहि त घर लऽ जा रहल छी कि? इ ख्याल मोन मे आइबते पन्डित जी डरा गेला। डर के मारे ओ बकरी के ओहि जंगलमे फेक देलथि आ ओतय सँ तेजी सँ भाइग गेलथि।
 
एहि प्रकारे तीन ठक सब बाते-बात मे ब्राह्मण केँ मूर्ख बनाकऽ बकरी ठइक लेलक। तेँ हम कहय छी बुद्धिमान बनू। एकता बनाकय राखु, एकता मे बल होइ छै। यदि एकता होइ तँ छोट छोट चुट्टी सब सेहो साँप के खा सकय छै।
 
(नोटः खिस्सा पूरा पढि प्रियशील केर मैथिली लेखन अभ्यास लेल आशीर्वाद स्वरूप सुझाव-सलाह जरूर देबैक।)

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