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कि हेतय आगू?

विचार-मंथनः प्रवीण नारायण चौधरी
 
किछु मोनक बात….
आइ कतेको दिन सँ आन्तरिक उद्वेलित मन बहुत किछु चाहियो कय लिखय नहि चाहैत अछि…. पता नहि एहेन स्थिति केँ कोन संज्ञा दी! लेकिन अजीब हाल अछि। कतेको बेर अपना केँ बुझबैत छी, बौंसैत छी, खेलबैत छी, हँसबैत छी…. लेकिन घुरि-फिरिकय वैह अजीब अनिश्चितता सँ भरल भविष्य देखि फेर सिहैर उठैत छी। चीन केर वुहान सँ आरम्भ एक महामारी पूरे संसार केँ हिला देने अछि। तखन बहुत रास निराशाक बात सेहो नहि छैक, कारण कारी दिनक बाद फेर उज्जर दिन अबैत छैक से वैह चीनक वुहान शहरक ७६ दिनक लौकडाउन खुजला सँ भेटैत अछि।
मोन मे कतेको प्रकारक बात अबैत अछि। जीवन आ मृत्यु पर प्रकृति केर अधिकार छैक, मनुष्य या जीव केवल माध्यम आ कारक तत्त्व नाम लेल बनैत अछि। परमपिता परमेश्वर जे समस्त जीवमंडलक निर्माता, निर्देशक, संचालक आ व्यवस्थापक छथि; ई सबटा हुनकहि नियंत्रण मे छन्हि आर वर्तमान अवस्था सेहो पक्का हुनकहि इशारा पर भऽ रहल अछि। मानव पर संकटकाल अछि। संकटक जड़ि मे स्वयं मानव जिम्मेवार बुझाइत अछि। बहुतो बात एहेन भऽ गेल छल जे लोक प्रकृति केर मर्यादा सँ बलात्कार करैत देखाइत छल।
खूब ग्लोबल वार्मिंग आ ईकोसिस्टम अनबैलेन्स आदिक बात होइत छल, लेकिन नियंत्रण केवल नाममात्रक वृक्षारोपण, जलव्यवस्थापन, वातावरणक सफाई-स्वच्छता (सैनिटाइजेसन) आदि गोटेक उपाय लेल मनुष्य समय-समय पर चर्चा करय, जतय संभव होइक उपाय सेहो अपनाबय… लेकिन ताहि सब सँ उपलब्धि बहुत उच्चस्तरक वा उल्लेख्य भेलैक ई कहब गलत हेतैक। कारखानाक चिमनीक धुआँ हो या बढैत ट्रैफिक, डिजल-पेट्रोलक बेसीमा बढैत खपत, प्राकृतिक स्रोतक दोहन मनुष्य अपन फायदा लेल बेतरतीब ढंग सँ करय लागल छल।
शाकाहारी-माँसाहारी भोजन मे एकटा मर्यादा छलैक। जीवनचक्र मे घास खायवला जीवक भक्षण करबाक एकटा चेन (श्रृंखला) विज्ञानहु द्वारा कहल गेल। जलजीव मे माछ-काउछ, डोका-काँकौड़ सेहो खायल जेबाक एकटा परम्परा हमरा लोकनिक मिथिला मे भेटैत अछि। जंगल मे निवास करयवला कय गोट जनजातीय समुदाय केर भोजन परम्परा मे आरो किछु अलग आ विकसित-सभ्य मानव स्वभाव सँ भिन्न काँचे माँस या कोनो जीव केर भक्षण सेहो देखल सुनल जाइत छल। लेकिन हाल किछु समय मे मानव भोजन परिकार सेहो बेतरतीब बढल आ लोक चमगादड़ केर जूस सँ लैत कय गोट कीड़ा-फतिंगा सेहो खाय लागल छल।
गिरगिट केर भोजन कीड़ा-फतिंगा होइत अछि, आर गिरगिट केँ सेहो मानव जीवन मे विषालू जीव केर रूप मे देखल जाइत अछि। माछहु मे जेकर भोजन अन्य माछ वा जलजीव छैक – यथा भौंरा, बुआरी, आदि – एहि माछ केर भोजन केँ अपन मिथिला मे सेहो सभ मौसम मे खाय योग्य नहि कहल गेल अछि। अर्थात् भोजनक सीधा सम्बन्ध पाचन शक्ति आ तदोपरान्त रक्त निर्माण प्रक्रिया सँ जुड़ल रहबाक कारण बहुत रास बातक परहेज आ पकेबाक विशेष तौर-तरीका विहित अछि। तथापि, मानव अपन जीवनशैली मे बहुत तरहक विहित सीमा केँ नांघिकय जेहो न सेहो करब शुरू कय देने छल।
निष्कर्षतः ई कोरोना वायरस – कोविड १९ आ कि अन्य विषाणु द्वारा पसैर रहल रोग यदि मानव जीवन केँ त्रसित कय देलक त कोन बेजा भेलैक? ई प्रश्न हमर मन मे बहुत समय सँ घुरघुरा जेकाँ नाचि रहल अछि। एकर जवाब ताकय लेल ओना व्यक्तिगत तौर पर हमरा अपन वेद-वेदान्त आ शास्त्र-पुराण मे वर्णित कतेको कथा-गाथा आ जीवन पद्धति मात्र समाधान नजरि आबि रहल अछि, तैयो ई टेलिविजन पर दिन भरिक चेँ-भोँ सँ माथा शान्त नहि रहि पबैत अछि। खैर… सभक कल्याण हो! अहाँ अपन अनमोल सुझाव आ प्रतिक्रिया दय हमर मनक उद्वेलन केँ शान्त कय सकी त स्वागत अछि, आभारी होयब। अस्तु! फेर भेटैत छी!

हरिः हरः!!

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