कतय छी हम – चिन्तन आलेख

मिथिला सभ्यताक वर्तमान पर चिन्तन

– प्रवीण नारायण चौधरी

कतय छी हम

 
इतिहास हमरा सभक समृद्धि सँ भरल अछि, तेँ बेर-बेर इतिहासे बेसी मोन पाड़ैत रहैत छी। वर्तमान समय मे हमरा लोकनि बहुत बेसी समस्या आ द्वंद्व सँ जकड़ल रहबाक कारण जे आत्मप्रसन्नता सच मे भेटबाक चाही से नहि भेटि पबैत अछि। जातिवादी विभाजन सँ लैत भाषा-बोलीक विभाजन आ वर्गीय विभाजन त सहजहि – ई सब हमरा सभक वर्तमान नियति बनि गेल अछि। एहेन अवस्था मे उत्सवधर्मिताक माहौल, देखाबटी भोजभात आ उजड़ा-ललकाक प्रयोग पर्यन्त आत्मसंतोष नहि दय रहल अछि।
 
आइ लगभग १०० वर्ष (१९३० सँ २०२० केर ९० वर्ष) मे निज भाषा निज मूल्य केँ यदि बहुल्यजन मे हम सब नहि बुझा सकल छी तऽ आगाँ एहि दिशा मे योजना बनाकय काज कयले सँ एकर सही उपयोगिता आ कि लाभ जन-जन धरि पहुँचि सकत।
 
जेना संस्कृत भाषा आ साहित्य मात्र आरक्षित वर्ग मे जियैत रहल, अत्यन्त उच्च मूल्यक रहितो आखिर एकर अवस्था ताहि उच्च शिक्षित वर्ग मे पर्यन्त आइ हाशिया पर चलि गेल अछि। पक्ष-विपक्ष मे तर्क बहुत प्रकारक भऽ सकैत छैक, हम एहि सँ असहमत नहि छी नहिये होयब… लेकिन कष्टक बात ई जरूर छैक जे एतेक गहींर महत्वक भाषा-साहित्य आखिर आम मानव समाज सँ त दूर भइये गेल छैक। तहिना मैथिली भाषा-साहित्यक अवस्था बुझि पड़ैत अछि।
 
अपन अध्ययन त बड गहींर नहि अछि, मुदा वर्तमान विपन्नताक अन्दाज मात्र एतबे सँ लगबैत छी जे मातृभाषा रहितो ई जनसामान्य लेल सहज नहि बनि सकल एखन धरि। एकर कारण की?
 
सरकार द्वारा शिक्षा व्यवस्था सँ एकर अनिवार्यता केँ स्थापित नहि केनाय एकटा गम्भीर कारण थिकैक एकरा कियो नहि काटि सकैत अछि। लेकिन मातृभाषा सँ स्वस्फूर्त प्रेम तक जनसामान्य मे नहि बनि सकब, ई कि देखबैत अछि? कहीं संस्कृतहि जेकाँ एहि भाषाक शिल्प या कथ्यक मापदंड जनसामान्य लेल भारी त नहि?
 
एहि विन्दु पर शोध आ विमर्श दुनू हेबाक चाही। व्यवहारिक तौर पर मैथिलीक पठनीयताक जाँच कयल जायब, बाल-बालिका वर्ग मे विभिन्न प्रतियोगितात्मक गतिविधि आदि करायब, शायद एकर उचित समाधान मार्ग छी की… एहि पर सोचल जाय।
 
हरेक समाजक काज छैक जे अपन यथार्थ स्थिति, सम्पन्नता किंवा दयनीयता, दुनू बातक समीक्षा करय।
 
राजनीतिक तौर पर सिर्फ दुहाइत रहल समाज मे मूल्य ओ मान्यता पर चिन्तन कठिन छैक, एकरो कियो नहि काटि सकैत अछि… लेकिन समाधान आ सही मार्गदर्शन लेल ई सब सान्दर्भिक कार्य त करहे टा पड़त। राज्य ई काज कहियो नहि करत, कारण सत्ताक मलाई चखय लेल एहि तरहक महत्वपूर्ण कार्य करबाक परम्परा लगभग समाप्त भऽ गेल छैक… सिर्फ जातीय गुम्हार पसारिकय, अगड़ा-पिछड़ा मे समाज केँ बाँटिकय, सामन्ती युगक गोटेक अमानवीय व्यवहारक घाव केँ खोंटिकय, कोहुना सत्तारोहण करब आजुक राज्य संचालक व राजनेताक नीयत बनि गेल छैक। ओकरा सब केँ समाजक सही आ सार्थक चिन्तन सँ लेने-देने की?
 
एहि कार्य लेल पुनः समाजक वैह वर्ग केँ आगू बढय पड़त जे एहि तरहक सामर्थ्य रखैत अछि। ओना स्थिति एतहु भयावह एहि लेल छैक जे ओ सामर्थ्यवान वर्ग अपना केँ घोर उपेक्षित आ अपमानित पाबि आइ मिथिला सँ नीक प्रवास क्षेत्र केँ मानय लागल अछि, ओ सब प्रवास क्षेत्र मे नया समाज विकसित करैत अपन जीवनयापन मे विश्वास करय लागल अछि। मिथिला अनाथ आ बेसहारा जीवन व्यतित करय लेल बाध्य भेल अछि।
 
एहि तरहें मिथिलाक वर्तमान मे सामाजिक समरसता आ जातीय सौहार्द्रता केँ पुनर्स्थापित करबाक पहिल जरूरत देखा रहल अछि। राजनीति कयनिहारक योगदान सँ लैत अन्य-अन्य विकसित वा विकासशील समाजक उदाहरण पर वृहत् चर्चा सँ शायद लोकक नजरिया बदलि सकय!
 
समाजक सोच केँ बदलय लेल संचारकर्मक विशेष योगदान होइत छैक, दुर्भाग्य सँ मिथिलाक संचारकर्मी लोकनि केँ चोरी, डकैती, हत्या, हिन्सा, देखाबटी उत्सव, व्यक्तिगत चाटुकारिता, फूसिक यशगान आ बढा-चढाकय आडम्बरी बात-विचार एतबा समाचार लिखैत देखल जाइत अछि।
 
समाज मे पसरल कूरीति या आपसी दूरी केँ कोना घटायल जाय ताहि सब पर त कलम चलैत नहि देखल गेल अछि। नहिये अपन क्षेत्रीय अस्मिताक महिमामंडन करैत पर्यटन वा अन्य विकासक चर्चा उचित मात्रा मे देखाइत अछि संचारक्षेत्र मे। तखन मिथिलाक भविष्य पर प्रश्नचिह्न कोना नहि लागत?
 
एहि लेख केर अभिप्राय मिथिला केँ चौजुगी जियेबाक लेल वर्तमानक जरूरत पर सरोकारवलाक ध्यान जायब थिक। अफसोस जे आइ-काल्हि कवि सम्मेलन या साहित्यिक विमर्श सेहो कोनो पार्क केर खुला आकाश मे वैह गोटेक लेखक-कवि केँ मात्र समेटिकय सम्पन्न कयल जाइछ। आमजनक अभाव ओत्तहु देखि मोन आरो उद्विग्नता केँ प्राप्त करैछ।
 
तखन त एक्के गोट चमत्कारिक समझ जे एतेक युग जियल त आगुओ जियत! बस एतबे!
 
हरिः हरः!!