कथा-संस्मरण
– विन्देश्वर ठाकुर, दोहा, कतार
बुधनाक होली
रवि दिन, साँझुक सात बजे खाना खा हम बेडपर ओंगठल छी। खाटके आगु कने दहिना साइडमे एकटा टेबल छैक। टेबल पर राखल छैक LG कम्पनीक सेकेन्ड हैन्ड कलर टि.भी। हमर रूममे चारिगोटे। ताहि मे सँ एकगोटेक नाइट ड्युटी। दोसर बाहर गेल रहैक आ तेसर सायद किचेनमे खाना बनबैत रहैक। दोसर रूमक एकगोट पडोसी आजतक चैनल पर समाचार देखैत रहैक। हम खाटपर ओंगैठ अमेरिका सँ प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका ‘अन्तर्दृष्टि’ पढैत रही। तखने मोबाइलमे फोन आएल। उठेलौं। पवन जीक फोन रहए। होली नजदिक आबि गेलाक कारणे कि-कोना आयोजन कएल जाए ताहिपर विमर्श करबाक लेल। ओ पहिनहे जकाँ सम्बन्धित विषयमे बातचित क’ हमर जिम्मेवारी हमरा पर सोंपि फोन रखबाक अनुमति मंगलनि। हम स्वीकारोक्ति देलियनि। ओ रखलाह। हम अपन काजमे लागि गेलौ। पत्रिकाक ६७ पृष्ठमे हमर एकटा कविता छपल छ्ल- शीर्षक छ्ल- ‘देश दुख्छ’। अपन आकर्षक फोटोसंग एहन विशिष्ट पत्रिकामे अपन कविता छपल देखि मोन गदगद भऽ गेल। मुदा जखन पूरा कविता पढलौ त ठीके एकबेर फेर हृदयमे देश दुखाएल आ आँखिमे तस्बीर झलझल देखाए लागल।
किछु काल बाद शान्तचित्त भऽ पवन जीक बात धियानमे आएल। हुनकर देल जिम्मेवारी बोध भेल आ फेर सँ अपन दोसर काज दिस अग्रसर भेलौं। कोन काज? अपने सबहक मोनमे प्रश्न होएत! जनतब दी जे हेल्प मधेशी दोहा कतारद्वारा २०१५ साल सँ कतारमे रहल मैथिल समुदायसबके एकत्रित क’ होली महोत्सव कार्यक्रमके आयोजना करैत आबि रहल अछि। एहि मादे कार्यक्रमके रूप ढाँचा सँ ल’क संचालनधरिके जिम्मा हमरा ऊपर रहैत अछि। से सहर्ष स्वीकारो करैत छी हम कारण जे देश सँ बाहर, सात समुन्द्र पार रहलाक बादो मोन त मोन अछि। पावनि-तिहार आ सभ्यता-संस्कृतिमे रमाएब हमरासबहक मनोभावना अछि।
अहुबेर पवन ठाकुर जी कार्यक्रमके ढाँचा एवं संचालन लेल अपन पूर्व तयारी करबाक अनुरोध केने रहथि। हम दिमाकमे कार्यक्रमेक रूपरेखा तयार करैत रही। एक एक क’ २०१५ सँ २०१९ धरिके होली महोत्सव नाच’ लागल। २०१५ बला कतारमे पहिलबेर रहए तें खूब मज्जा आएल। २०१६ मे हम नेपालेमे रही। मिथिलामे रहि अपन परिवारसबसंग मिलिक होली मनाएब माने परदेशी लेल स्वर्ग जाएब, नेहमे नहाएब आ आनन्दक चरम सीमा पार करब थिक। से सत्ते हमरो महसुस भेल आ अपना आपके बहुत भाग्यमानी मानने रही।
तकराबाद २०१७ आ २०१८ कतारेमे मनेलौं। जे जेना प्रवासमे रहियोक मधेशी भाइसबहक संग एकजुट भऽ अल डोसरी पार्कमे होली मनाएब माने कतारके मिथिलामय बनाएब होइछै। ते त हम अपन एकटा रिपोर्टमे कतारके ‘मिनि मिथिलाक’ संज्ञा सेहो देने छियै। एहि दू बरखमे दुइए दिन सही मुदा अपना आपके मैथिलमय आ मिथिलामे अनुभूति केने रही। हमरे संग रहल एकगोट मित्र रहए – बुधन साह जी। हिनक घर महोत्तरी जिल्लाक श्रीपुर कबिलासा रहैक। ओना हम देखने नै छी मुदा जनकपुर सँ किछुए दूरी पर छैक। संगे चलब त देखादेब ओ बेर-बेर कहैत छल। हमहूं ओकरे सूरमे मुरी हिलादैत छलियै। ओ बहुत प्रसन्न होइत छल।
पिरसियाम रंग, छोटे खुटक मरद, ठरगर नाक आ पतरे मोछ – ठीके बुधनके हमरा सँ फराक देखएमे लगैत छ्ल। हमर रूम D ब्लक तीनतल्ला पर आ ओ A ब्लकके नीचामे रहितो खाना अपन-अपन रूममे आ हाथ एक्केठाँ सुखाबी। ओना पहिने ओकरा संग तेहन कोनो लगाब नै रहए मुदा ड्युटी एक्केटा बसमे जाएब, एक्केठाँ उतरब आ फेर समाप्तिमे एक्केटा बसमे आएब कृयाकलापसँ एक-दोसरके नजदिक बनादेने रहए। धीरे-धीरे ओकर बिचार व्यवहार सँ परिचित होइत गेलौं। बहिरी रुप सँ फराक रहितो बुधन भीतरसँ बहुत नैतिकवान आ मृदूलभाषी लागल। धीरे-धीरे त ओ साहित्यप्रति सेहो ततेक ने आकृष्ट भऽ गेल जे बुझू लिखलहबा सबटा रचनाक पहिल पाठक ओएह होब’ लागल।
द्नूगोटे खूब प्रसन्न रही। दुख-सुख, अपन-अपनैती सबटा ओ शेयर करए।बहिनक विवाहक कर्जा,घरक गरिबी कोन तरहे ओकरा पढाइ छोड लेल विवश क’ देलक तकर दुखान्त कहानी ओ कहैत छल प्राय:। तकरबाद विवाहदान भेल आ एकटा बेटी भेलाक बाद मजबुरीमे विदेश आब’ पडल कहानी सेहो कतेको बेर ओकर मुंह सँ सुनने रही। जे जेना समय बितैत गेल। समस्या सेहो निपटैत गेलै। अपना आपके भाग्यमानी आ संतोषी बुझैत गेल। मुदा एकदिन जखन चाय पिब लेल साँझु पहर उतरलौ त ओ किछु बिधुवाएल सन लागल। पुछलियै त मोन खिन्न केने घरक बखेरासब कह’ लागल। साउस-पुतहुके झगडा, गारि-गरोबलि आ टेन्सा-टेन्सीबला बात सँ बड बेपीडित रहैक ओ। कतेक सम्झेलाक बाद किछु शान्त भेलैक आ किछु फ्रेस जेहन लागल। ओकर बेर बेर तर्क रहैक – “जे हम नइ छी ते ने घरमे अतेक कलह भऽ रहल छैक? एकदिस माय आ दोसर दिस पत्नी। कहियै ककरा? दोष ककर छै सेहो त नै बुझल अछि। हम छी एत। दुनू एक-दोसरके दोष लगाबैए। हे भगवान! जे ने कराबे ई गरीब जिनगी!”
एकदिन फेर ओ ड्युटीए सँ फोन केने रहए – “सर ई कि लिखलियै अपने? हमर त दिल-दिमाक झकझोरि देलक।” हम पुछलियै – “कि भेल? एना किए?” ओकर जबाब सँ पता चलल ओ हमर लेख पढि ब्याकुल आ भयभीत भऽ गेल छल। ‘बैदेशिक रोजगारी सँ फाइदा-बेफाइदा’ शीर्षकके लेख ओकरा बहुत बिचलित क’ देने छलैक। ओहिमे हम सकारात्मक आ नकारात्मक दुनू पक्षक चर्चा केने रहियै। मुदा नै जानि किए ओकरा नकारात्मक पक्ष बेसी असर केलकै। ओ कहैत छ्लै – “सर हमरो गाममे एहन घटनासब बहुते भेलैए। आब त डर लगैए कहुँ….. बीच्चेमे हम रोकैत कहलियै – “चुपू! बुड़बक! एहनो कतौ भेलैए? सबके एक्के नजरिसँ देखब उचित नइ। हमर-अहाँक घरनीसब अपना सबहक दुःख, दर्द आ पसेनाक मोल बुझैए। तें सपनोमे एना नै हेतैक। अहाँ झुट्ठे-फुसेक चिन्तामे नै पडू।” यथासम्भव ओकर जिज्ञासा कम करबाक चेष्टा केने रही हम।
दैबक खेल हमरा कहाँ बुझल रहए। ओकरहि शंका ओकरहि घर जरेतै! बात ई भेलै जे पछिला बर्षक होरीमे कार्यक्रमके सबटा तैयारी क’ लेलाक बाद एकदिन जखन ग्राण्डमौलके मीटिङ सँ घुरलौं त बुधन जीक फोन लगेलियै। नै लागल। रूममे खोजलौं। नै भेटल। तकराबाद एकगोटे सँ पता चलल जे उत्तरदिस जाइत देखलियै। हम ओम्हरे जाइत रही किछुए देर गेलौ कि देखलियै बुधन तरमराइत, बर्बराइत आबि रहल छैक। देखिते हमर होस उडिगेल… मोस्किल सँ बियर पीब’ बला आदमीके मुंह सँ आइ शृलंका (सब सँ लोकल दारू) के दूर्गन्ध अबै छलय। हमरे कैम्प सँ किछुए दूर बाद टिपरसबहक साइडमे शृलंका दारु चोरिए-छुपे भेटैत छैक। कतारमे अवैधानिक रहितो एकर उपभोक्ता आ बिक्री-वितरण बहुत तेजी सँ चलैत छैक।
बुधन के ई हाल देखि हम अचम्भित भऽ गेलौं। टेनसन बर्दास्त नै होइछै ओकरा से त हमरा बुझल छल मुदा टेनसनोमे अतेकधरि ओ कहियो नै केने रहए। हम नम्रता सँ पुछलियै -“बुधन जी कि भेल? कोनो टेनसन? देखू त हाल केहन बना लेने छी?” अते कहैतधरि ओ हमर छातीसँ लिपैट क’ बपहारि तोड़’ लागल। आँखिसँ श्रवन नोर बहैत छलै। “हम बर्बाद भऽ गेली सर। ओ भरछुही हमर नाक कटा देलक। दुनू बच्चाके छोडिक’ मुसरबा संगे चलिगेल। ओकरे लेल ने हम एत जहरके पानि पिबैत छली। कहु त कि कि ने देलियै ओकरा? कि कि ने केलियै ओकरा लेल? मुदा ओ हमरा आ हमर परिवार संग धोका बाहेक कि केलक?” अपन हृदयके भडास दारुक गन्ध संग एक्केबेरमे निकालि देलक ओ। हमरा बिजुली सँ बेसी झट्का लागल। ई बातसब सुनैत जेना ओकरा पर नै हमरे पर दुःखक पहाड़ आ करेजपर आसमान खसल हो तेहन भान भेल। हमर आँखि भरि आएल। हम नि:शब्द भऽ गेलौ। कहानीमे ओकर शंकाक जिवन्त रूप आ एकटा आओर पात्र थपा गेलैक सोचि मोनमे टीस उपजल।
ई घट्ना होलीक ४ दिन पूर्वक रहैक। सबकियो होली मनेलकै। बुधना लेल होली होलिकाक दहन सन भऽ गेलैक। कतबो कहलियै नै गेलै ओ कार्यक्रममे। हमरा पर जिम्मेवारी रहए। से हमरा जाइए पड़ल। कार्यक्रम सेहो संचालन करबाक छल। केलौं मुदा कार्यक्रमके भरि अवधीभरि बुधन जीक संग नै होएबाक अभाव खटकैत रहल। ओकर ड्म्फा पिटनाइ, जोगिरा गेनाइ, खानामे दौर-दौर क’ माउस आ सल्लादके परसन देनाइ…. कार्यक्रम चलबैत समय बीच-बीचमे पानि पियेनाइ, सबटा मिस करैत रहलौं। सब सँ बेसी याद आएल घर सँ निकलैत काल ओकर माथपर लगाएल अबीर संग ओकर नैन सँ खसल नोर आ ओहि नोरमे रंगाएल हमर हाथ। ठीके तखन लागल नोरमे रंगाएल हाथ आ करेज सँ निकलल शोणितक रंग ओहने-ओहने छै।
ओह! देखिते-देखिते रातिक ९ बजिगेल छैक। काल्हिखन ड्युटी सेहो जेबाक अछि मुदा पुरना स्मृतिसब अनवरत रुपमे आबिए रहल अछि। ओहु सँ बेसी मोनके अधीर केने अछि बुधनाक याद! २०१९क होली त नहिए फलित भेलै ओकर। २०२० के केहन हेतैक? किछु दिन पूर्व बात त भेल रहे मुदा तहियाधरि दोसर विवाह त नै केने रहैक। फेर दिमाकमे घुमैए – “कोना कनैत-खिजैत ओकर दिनसब बितलै? कतेक ढाँढस देलाक उपरान्तो ओकर घाउपर हमरा सँ पूर्ण मलहम नै लगलै? अन्तत: ६ महीना पहिने कोना ओ अपन बच्चेसब लेल कम्पनी सँ मजबुरीमे कैन्सिल गेलै?” हम हतपत मोबाइल उठा बुधनाके फोन करैत छी। कम्प्युटर बजैत अछि -“द नम्बर इज कलीङ इज नट इन सर्भिस!” हम फेर सँ ब्याकुल भऽ बुधना, होली, होली, बुधना …. सोच’ लगैत छी। सोचिते रहैत छी। सोचिये रहल छी।