की कविता मरि रहल अछि – अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर अखिल भारतीय विमर्श मे मंथन

साभारः दिलीप कुमार झा, मैथिली साहित्यकार, मधुबनी

अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर भारतक मणिपुर राज्यक राजधानी इम्फाल मे आयोजित अखिल भारतीय कविता उत्सव मे राखल गेल विमर्श जेकर विषय छल – की कविता मरि रहल अछि, जाहि मे स्वयं मैथिलीक प्रतिनिधित्व करैत लेखक दिलीप कुमार झा सहभागिता देने छलाह, ओ आबिकय ओहि विमर्शक अत्यन्त सारगर्भित संवाद हमरा सभक बीच संचरण कयलनि अछि। आउ पढी हुनकहि शब्द मे –

Is poetry dying? – की कविता मरि रहल अछि?

पछिला दिन गेल छलहुँ इम्फाल (मणिपुर) । ओतय अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवसक अवसरपर २१ फरवरी २०२० क’ साहित्य आकादमी आओर मणिपुरी लिटरेरी सोसायटीक संयुक्त तत्वावधानमे अखिल भारतीय कविता उत्सवक आयोजन कयल गेल छल। मैथिली दिससँ हमहीं प्रतिनिधित्व करैत छलहुँ। एहि कार्यक्रममे एकटा सत्र छल “की कविता मरि रहल अछि?” एहिपर बहुत गंभीर विमर्श भेल।

कविता साहित्यक आदिम विधा थिक। विमर्शक आरंभ बांग्लाक महत्वपूर्ण कवि डा. गौतम दत्ता करैत कहलनि जे कविता अपन रूप, स्वरूपमे कमजोर भेल अछि तकर अर्थ ई नहि जे कविता संसार सँ समाप्त भ’ रहल अछि, एखनो अमेरिकामे कविता पोथीक पहिल संस्करण बीस हजार प्रति तक बिकाइत अछि मुदा दुनियाँमे पोथी पढ़बाक प्रवृतिमे बहुत तेजीसँ गिरावट भेल अछि।

सोशल मीडिया के जे भाषा इग्नोर करत ओकर साहित्य खतरामे आबि जेतै !

लोक आब बहुत किछु लेल सोशल मीडिया पर निर्भर भेल जा रहल अछि। कविताक लेल सेहो सम्पूर्ण संसारमे लाखों कवि सोशल मीडिया खासकय फेसबुक, व्हाट्सअप, इंस्टाग्रामक माध्यम सँ अपन प्रस्तुति द’ रहल छथि आओर हुनकर लाखक संख्यामे फालोअर छनि तेँ पोथीक स्तरपर कविताक भविष्यक आब आकलन नहि कयल जा सकैछ। ओ कहलनि बांग्ला एहन लोकप्रिय भाषामे एक सय पोथी छपैत अछि पहिल संस्करणमे। फेर एक-एक सय पोथी छापि क’ ओकरा दोसर, तेसर संस्करण आबि गेल, से कहल जाइछ। कविता लिखा बहुत रहल अछि, छपियो बहुत रहल अछि मुदा बिका नहि रहल अछि।

हम हालहिमे गुजरातक यात्रापर गेल रही ओतय गुजराती भाषाक एकटा महत्वपूर्ण कवि श्री हर्षद त्रिवेदी सँ कविताक विषयमे गप करैत रही त’ हुनको इएह मन्तव्य रहनि जे कविता लिखाइत बहुत अछि मुदा छपैत बहुत कम अछि कारण, बिकाइत बहुत कम अछि।

गौतम दत्ता कहलनि जे सोशल मीडिया, खासकय फेसबुकपर खाली घटिया कविता अबैत अछि से बात नहि छैक, ओतय बहुत उच्चकोटिक कविता सभ सेहो अबैत अछि तेँ फेसबुक केँ इग्नोर केनाय अहाँ केँ अपना भाषा साहित्य सँ दूर क’ सकैत अछि। कएक अर्थमे नव कवि सभक लेल बहुत चंसगर द्वारि फोलैत अछि। किछु कवि सभ अपना केँ श्रेष्ठ साबित करबाक लेल फेसबुक सँ परहेज करैत छथि, हुनका ई नहि बुझल छनि जे हुनक रचनाक पाठक जे पोथी पढ़ि रहल छथिन से संख्या सैकड़ा सँ आगाँ नहि पहुंचलि आओर एहि फेसबुकक माध्यम सं आयल अपेक्षाकृत नबका कवि लोकनिक पाठक दस हजार सँ लाख धरिक छनि। ओहन कवि कविता विधा केँ तँ स्थापित कैये रहल छथि, स्वयं अपना केँ स्थापित क’ रहल अछि आओर संगहि अपन मातृभाषाक काज सेहो क’ रहल छथि। एहन कविक फुजल मोन सँ स्वागत कयल जयबाक चाही।

हमरा जनैत मैथिली भाषाक लेल त’ फेसबुक वरदान साबित भ’ रहल छैक। जाहि भाषाक लग कोनो दैनिक समाचार पत्र नहि, नीकसन के दसोटा कोनो पत्रिका नहि ताहि भाषाक चतरबाक, पसरबाक एहि सँ नीक अवसर की हैत? हँ, एहिमे अलाय बलाय सेहो बहुत लिखा रहल अछि। से प्रिंट मे कोनो अलाय बलाय नहि अबैत छल? खूब अबैत छल। ओतय संपादक द्वारा कतेको प्रतिभा कें असमय गरदनि ममोरैत देखल गेल अछि। मुदा आब एतय ककरो गरदनि नहि मरोरल जा सकैछ। हँ, श्रेष्ठ सँ श्रेष्ठ रचना आबि सकैत छैक से संभव हैत अग्रज पीढ़ीक उचित मार्गदर्शन सँ समीक्षक लोकनिक दृष्टिकोणमे परिवर्तन सँ।

एखन धरि सोशल मीडियापर लिखल गेल कविता केँ समीक्षाक परिधिमे नहि आनल जा रहल अछि से चिंताक विषय अछि। हम मैथिलीक सन्दर्भमे किछु युवा कविक नाम लेबय चाहब जे सोशल मीडिया सँ अपन एकटा फराक आओर गंभीर कविक पहिचान बनौलनि अछि ताहिमे हम पहिल नाम लेब विकास वत्सनाभ के। एखन धरि हुनक कविताक कोनो संग्रह प्रकाशित नहि छनि मुदा ओ मैथिलीक युवा पीढ़ी मे बहुत चर्चित भेल छथि। एतय धरि जे परंपराक विपरीत हुनक कवितापर मैथिलीक श्रेष्ठ समीक्षक प्रो. ललितेश मिश्र सोशल मीडियापर दमदार समीक्षा लिखलखिन। दोसर नाम हमरा सोझाँ अबैत अछि पंकज कुमार जे उड़ीसामे रहैत छथि आओर हुनको कोनो पोथी अद्यावधि प्रकाशित नहि भेल छनि मुदा ओ एकटा फराक पहिचान अपन कायम क’ लेलनि अछि। ई दुनू युवा कवि पेशा सँ अभियन्ता छथि। मैथिल प्रशान्त आजुक चर्चित कवि छथि। हुनको पहिचान सोशल मीडिया सं बनल छनि। हलांकि हुनक आब कएकटा पोथी आबि गेलनि अछि। राजीव रंजन मिश्र आओर प्रदीप पुष्प दूटा मैथिली गज़ल क्षेत्रक एहन नाम अछि जे फेसबुक के माध्यमसं अपन एकटा फराक परिचिति बनौलनि अछि। आओर अपन रचनाक कारणें बहुत लोकप्रियता अर्जित क’ रहल छथि। हमरा जनतबे अद्यावधि हिनका दुनूक कोनो पोथी नहि प्रकाशित छनि। श्रीमती रोमिशा आओर श्रीमती श्वाती शाकम्भरी सेहो सोशल मीडिया सँ बेश ख्याति अर्जित क’ लेलनि अछि। श्रीमती बिभा झा (काठमांडू) नाम हमरा लेबहि पड़त। हलांकि स्वाती आओर रोमिशा दुनूक सम्प्रति एक-एक गोट पोथी छपि गेलनि अछि। श्री नीरज कुमार झा (दिल्ली), रामबाबू सिंह, सुमित मिश्र गुंजन, अक्षय आनन्द सन्नी, अनुराग मिश्र, सोनी नीलू झा, मुख्तार आलम, रोहित यादव, शान्त्वना मिश्रा, सबिता मिश्रा, प्रभाष अकिंचन, सबिता सोनी झा, जयन्ती झा, प्रियरंजन, विरेन्द्र कुमार झा आदि मैथिलीक कवि सम्प्रति फेसबुकक देन हम मानि सकैत छी। ई लोकनि बहुत गंभीरतासँ काज क’ रहलाह अछि, हिनका सभकेँ कोनो तरहें अनठाओल नहि जा सकैछ।

किछु गोटे फेसबुक पर कविता लिखब अपना के ओछ करब बुझैत छथि वा कोनो नीको वा गंभीरो कवितापर टिप्पणी देब अपन शान के खिलाफ बुझैत छथि ई हुनक आत्मघाती प्रवृत्ति साबित हेतनि। आबयवला समय दिन – दिन सोशल मीडिया आओर विभिन्न रूपमे भकरार होइत जायत तखन ओहो माननीय मठाधीश लोकनि झख मारि क’ एहि प्लेटफार्म पर अओता। हमर सलाह अछि समय अछैते आबि जाउ, सक्रिय होउ। अपन भूमिकाक निर्वाह करी जाहि सँ भाषा साहित्यक कल्याण त’ हेबे करतै, अहुँक सम्मान मे गुणात्मक वृद्धि होयत।

अंग्रेजी कवि श्री गोपाल लाहिरिक कहब छलनि जे कविता पोथीक तुलनात्मक कथा आओर उपन्यासक पोथी बेसी बिकाइत अछि। ओकर लोकप्रियता दिन-दिन बढ़ल जा रहल अछि। कवितामे सँ लयात्मकता आओर राग तत्व के विलोपन सँ कविता भखरैत अछि आओर ओ लोकक जिह्वापर नहि चढ़ि पबैत अछि।  कवितामे लयात्मकताक समावेश कविता केँ दीर्घजीबी बना सकैत अछि। आब कविता नव-नव रूपमे सेहो आबि रहल अछि।

श्री लाहिरि कहलनि जे आब कविता अपन नव-नव फार्मेट मे आबि रहल अछि। जापानी हाइकू के लोकप्रियता सं ईहो सिद्ध भेल अछि जे छोट कविता एखनुक दौरमे बेसी लोकप्रिय हैत। हमरा संज्ञानमे अबै छथि मैथिलीक अपेक्षाकृत एकटा नव कवि कक्का अमरनाथ झा। हुनक लोकप्रियता एखन चरम पर छनि। एकटा सुदूर गाममे बैसि क’ चारि पांती आओर छ: पांतीक कविता लिखि क’ हुनक जे अर्चा – चर्चा भ’ रहलनि अछि से ई फेसबुकक प्रताप अछि। श्री विभूति आनन्दजीक चरिपतिया सेहो हमरा स्मृतिमे अंकित भ’ रहल अछि।

मलयालम कवयित्री रोज मेरी कहलनि जे मलयालम मे एखनो कविता खूब बिकाइत अछि। मलयालम कविता लोकक दर्द आर पीड़ाक बात उठबैत अछि। कविकें जनमानस के बीच जेबाक चाही कविता आओर जीवनमे संवाद स्थापित करबाक चाही तखने कविताक लोकप्रियता बढ़त आओर दीर्घजीबी सेहो भ’ सकैत अछि।

मराठी कवि रफीक सुरुज अनेक मराठी सन्त आओर जनकविक उदाहरण द’ क’ कहलनि जे सन्त एकनाथ सं तुकाराम धरि आओर सम्प्रति सेहो मराठी मे जे कविता लिखाइत अछि मुदा एखन कविता लोक तक कम पहुँच पाबि रहल अछि।

हमरा सभकें रचना लोकतक पहुंचेबाक प्रयास करक चाही। सोशल मीडिया केँ एलासँ कविताक फलक मे विस्तार भेल अछि। मणिपुरी कवि एल. जयचन्द्र सिंहक कहब छलनि जे कविता सभदिन जनभाषाक विषय रहल अछि। अनपढ़ लोक सेहो रचना करैत अछि आओर रचना सुनैत अछि। कथा, उपन्यासक क्षेत्र प्रबुद्ध पाठक धरि सीमित अछि मुदा कविता जन- जन धरि पहुंचैत अछि, एहि लेल कवितामे राग तत्व आवश्यक अछि। एवं प्रकारे कविता पर एकटा बढ़ियां संवाद स्थापित भेल। एतय भारतक चौबीस भाषा आओर किछु जनजातीय भाषा – चीरु, माओ, तंगकुल भाषाक कवि सभ सेहो उपस्थित छलाह।

बहसक निचोड़ छल कविता साहित्यक आदि विधा अछि। प्रसार मे समय सापेक्ष कमी बेसी भ’ सकैछ। मुदा कविता कहियो नै मरत। जाबे धरि संसार अछि ताबे धरि कविता अछि।

हमरा मोन पड़ल अपन कविता ‘अथ उतरोत्तर कथा’क किछु पांती जे हमर पोथी बनिजाराक देसमे संग्रहित अछि –

“सतयुग सँ कलयुग धरि जीबैत अछि कविता/आदि सँ अन्त धरि लड़ैत अछि कविता
कविता राजदरबार सँ निकसि खेत खरिहान धरि पहुँचल
फेर बहुमंजिला मकान धरि पहुँचल
आब अज्ञातवास मे ओंघा रहल अछि कविता
नबका बाट लए छरपटा रहल अछि कविता।