आबि गेल होली फेर – होली पर विन्देश्वर ठाकुरक सुन्दर कथा-माहात्म्य

साहित्य-कथा

– विन्देश्वर ठाकुर, दोहा, कतार

होली आ एकर महत्व
 
होली वास्त्वमे असत्य ऊपर सत्य केर विजय थिक। झूठ पर साँचक जीत थिक। होलीके होरी, फगुआ, फाग आदि नाम सँ सेहो जानल जाइत अछि। वसन्त ऋतुमे फागुन पूर्णिमाक दिन ई पावनि मनाओल जाइत अछि। होरी सँ ठीक पन्द्रह दिन पहिने मिथिलाक पावन भूमी कौचरी सँ राम-सियाक डोला उठि जनकपुरक जानकी मन्दिर परिसरमे जम्मा होइत अन्य सबटा डोलासंग पन्द्रह दिना परिक्र्मा शुरू होइत अछि। ई परिक्रमा नेपाल-भारतक विभिन्न धार्मिक स्थलसब होइत पुन: जनकपुर आबि अन्तरगृह परिक्रमा क’ धुरा उडबैत अछि आ बाबाजी-श्रद्धालु वा कही से साधु-संत द्वारा होली मनाओल जाइत अछि। तकर उपरान्त मात्र मिथिलामे होली मनेबाक प्रचलन अछि। ओना त नेपालमे प्राय: पहाडी समुदाय आ तराई समुदाय हिसाबे ज्यादातर पावनि दू दिन होइते छैक।ताहि अनुरुप होली सेहो दू दिन मनाओल जाइत छैक। पहिल दिन पहाडमे। तकराबाद तराईमे। समग्रमे होली असत्यपर सत्य, पाप पर पुण्य तथा झुठपर साँचक विजयोत्सव थिक।अन्हारक बाद इजोत आ रातिक बादके नव भोर थिक। दुःखके बादक खुशी आ शत्रुताक त्यागि मित्रताक बिगुल थिक।
 
एकर इतिहास वा होली मनेबाक परम्पराक जहन बात करी त हिन्दुपुराण वा श्रीमद्भागवत गीताक हिसाबे सतयुग सँ जुडल एकटा महत्त्वपूर्ण घट्नाक उल्लेख कएल गेल अछि। झाँसी सँ ८० किलोमिटरके दूरीमे अवस्थित इरच नगर नामक एकटा जगह जे सत्युगमे हिरन्यकश्यपुक देशक राजधानी रहैक। हिरन्यकश्यपु ओतुका राजा रहए। ओ भगवानके अत्यन्त घोर तपस्या क’क प्रसन्न केलाक बाद अपना अमर होएबाक वरदान मंगलक। जइ अनुरूप नर-नारी, देवता, गन्दर्भ, किन्नर कियो नै मारि सकए। ने रातिमे ने दिनमे, ने घरमे ने बाहरमे, माने अपना हिसाबे पूर्ण रुप सँ सुरक्षित बनेबाक वरदान ब्रह्माजी सँ पओलाक बाद ओ मदमत्त भऽ गेल आ अपनाके भगवान बुझ’ लागल आ अपन क्रूरता, राक्षसी प्रवृति देखाबय लागल। भगवानके पूजा-अर्चना छोडिकय अपन स्वयंके पूजा करबाक आज्ञा प्रजाकेँ देलक। जनतासब डरके कारण विवश भऽ गेल। एहनेमे ओकरे घर कयादुक कोखिसँ हुनक पुत्र प्रह्लाद जन्म लैत छथि जे भगवान विष्णुक सब सँ पैघ भक्त रहैत छथि। ओ भगवान विष्णुके आराधना करै छथि। हुनक पिता एहि बात सँ बहुत दुःखी रहैत छथि। बादमे कतेको समझेलाक बादो जहन प्रह्लाद नै मानैछै त ओकरा मारबाक अनेकानेक षड्यन्त्रसब कर’ लगैए। पहिने त साँपक तहखानामे डसय लेल पठबैत छै। तकराबाद देकांचल पर्वत सँ बेतवा नदीमे फेक दैत छैक। नारयण भक्त प्रह्लाद तैयो जिवन्त रहै छथि। ओ पर्वत एखनो सुरक्षित छैक। एखन ओकरा डिकोली पर्वतके नाम सँ जानल जाइत अछि। अन्त्यमे कोनो सीप नै लगलाक बाद ओ अपन बहिन होलिका सँ मदत मंगै छथि। होलिकाके ब्रह्माजी सँ आगिमे नै जरबाक वरदान रहैत छैक। मुदा कहबी छैक जे हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता……
जखने प्रह्लादके ल’क होलिका आगिमे बैसैत छै त भगवान विष्णुक कृपा सँ होलिका स्वयं भस्म भऽ जाइत छै आ भक्त पहलाद जिवित रहैत छैक। तत्पश्चात: खम्बा सँ नरसिंह अवतारमे स्वयं सर्वेश्वर प्रकट होइत छथिन् आ हिरन्यकश्यपुके संहार क’ असत्यके सदा लेल विनास करै छथिन्। एहि उत्सवमे होली मनाओल जाइत अछि। एखन्धरि अपना सबहक समाजमे होली सँ एक दिन पूर्व होलिकाके दहन (सम्मत जराएब) आ विहान भेने पुरी, पुवा, खीर, पकवान वा कि मांसाहारी सबहक लेल माछ-माउस आ भांग, गाजा, मदीराक संग खूब जोर सोर सँ होली मनाओल जाइत अछि। होलीमे ढोलक, झालि, मृदंग, डम्फा आदिक बाजासंग विभिन्न रास जोगिरासब गाएल जाइत अछि। एहिठाँ जोगिरा माने एहन जोगीसबहक टोली जे किछु पल, क्षण वा भरि दिन लेल सबकिछु भुलाक’ बस आमोद-प्रमोदमे, खुशी प्रसन्नतामे लीन निफिकीर व्यक्ति बुझि सकैत छी।तहिना सरररर… एकटा नशामे मातल प्रसन्नताक टोन छियै। तें कहल जाइत छैक – “जोगिरा सररर……. ।
होलीक सन्ध्यामे “मरि जाए से लेखा लिए, जिबए से खेलए फाग” नाराक संग धुरा उडाओल जाइत अछि।
तहिना दोसर प्रसंगमे त्रेता युगक बात अबैत छै। जखन रावणके अन्याय-अत्याचार चरमसीमा पार क’ देलकै त नारायण स्वयं मानव रुपमे ओकर विनाश करबाक लेल धरतीपर जन्म लेलनि। आ से मानव जिनगीमे काट बला सबटा दुख-सुख कटलनि। तकराबाद सागर पर सेतु बान्हि लंका पहुँच रावणके बद्ध केलनि आ फेर सँ असत्यता ऊपर सत्यके विजय पताका फहरौलनि। जखन सकुशल सब परिवार एवं बन्धु-बान्धवसंग अयोध्या अएलनि त ओएह खुशीमे होली महोत्सवके आयोजना कएल गेल। तें ने कहल जाइछै जे होली खेलए रघुवीरा अबधमे होली खेलए रघुवीरा…….।
तकराबाद आउ द्वापर युगमे। एहि युगमे सेहो दूटा कथा मानल जाइत छैक। एकटा त ई जे श्रीकृष्ण जखन बाल अवस्थामे रहथि तहिए पुतना नामके राक्षसनी ओकरा खानामे विष ध’ मरबाक भरपूर चेष्टा केलक मुदा ओ त स्वयं नारायण छलाह त भला कोना मरतथि? परिणाम पुतना मारल गेल। आ तकर उत्सवमे होली उत्सव मनाओल गेल। दोसर प्रसंगमे इहो कहल जाइत छैक जे कृष्ण कारी भेलाक कारणे गोपीसब ओकरा बेसी खौझबथि आ से एकदिन मोहन सबके गालमे भिन्न-भिन्न अबीर-गुलाल सँ रंगि देलथि आ होलीक रंग चढिगेल।
आखिर जे होइक,समग्रमे ई जे चाहे ओ हिरनकश्यपु वा होलिका होथि आ कि रावण-कुंभकरण वा अन्य राक्षस आ कि पुतना चाहे कंश स्वयं ई सब अहंकार, असत्य, दुराचार, पाप के प्रतीक थिक। और एहिपर सत्यता, निष्ठा, पुण्य वा सदाचारके विजय असलमे प्रसन्नता थिक। होलीक महोत्सव थिक। अत: एहि पर्वमे केवल बाहिरी राक्षस व दुराचारके नै बल्कि अपन भीतर रहल बुराइ, दुराचार, वैमनस्यता, अहंकार आदिके सेहो दहन क’ नैतिकवान, मानवतावादी आ एक असल व्यक्ति बनि एक-दोसर संग भाइचाराके नाता लगाबी। नेहक रंग बाँटी। खूब जमिक’ सभ्य ढंग सँ होली मनाबी सएह शुभकामना अछि।
बोलु सररररर……..जोगिरा सरररर………..
— कोन गाछ तर आसन-वासन कोन गाछ चौपाई?
कोन गाछतर भोजन केलनि राम-लखन दुनू भाइ जोगिरा सररर….
 
— आम गाछतर आसन-वासन, बेल गाछ चौपाई..२
चनन गाछतर भोजन केलनि राम-लखन दुनू भाइ जोगिरा सररर……