मैथिली मे जे सब देखल
– प्रवीण नारायण चौधरी
लगभग एक दशकक समयकाल
अपन फेसबुक यात्रा मे
‘मैथिली’ भाषाभाषी केँ
अपन मातृभाषा संग
असीम अनुराग देखल।
कविता, कथा, नाटक
उपन्यास, गजल आ गीत
विभिन्न विधा मे
हजारों मैथिली सर्जक केँ
अपन सृजनकर्म करैत देखल।
लाखों मैथिलीभाषी केँ
भाषिक पहिचान प्रति आत्मगौरव
क्षेत्रीय अस्मिता प्रति जुड़ाव
दिन-राति संरक्षण-विकासक चिन्तन
आर, ताहि लक्षित जनजागरण
विभिन्न आयोजन करैत देखल।
पोथी लेखन आ प्रकाशन
लेखक-साहित्यकार केँ प्रोत्साहन
अकादमिक गतिविधि संग-संग
सामूहिक-सामुदायिक हितचिन्तन
सिर्फ भाषा आ पहिचान लेल
चहुँदिश जागृत होइत देखल।
एक सँ बढिकय एक रहस्योद्घाटन
भाषा-साहित्यक संग युगों-युगोंक इतिहास
विमर्श मे समृद्धिक संग विपन्नताक उल्लेख
जे एक सभ्यता लेल वांछित तत्त्व होइछ
से सब किछु मैथिली लेल देखल।
एक सँ बढिकय एक सपूत
कर्मठताक नव उदाहरण ठाढ करैत
कोनो हाल मे कतहु नहि हारब
नहि झूकब नहिये झूकय देब
मुदा बहुतेक खरखाँही लूटेरा
फुसिये हन्टिंग राउन्ड दि बूश
अक्सरहाँ बलधकेलो कइएक देखल।
अपनहि भाषा सँ भड़कैत
मिथिलाक नाम सुनिते छटपटी छूटैत
कियो नीक करय तेकरा सँ जरैत
करनिहार लोक सभक टंगड़ी खिचैत
अपनहि बुद्धि केर दावी रटैत
तेहनो तत्त्व सब केँ अगियाइत देखल।
जनक-जानकीक मिथिला
त्रेता युग सँ एहि कलियुग धरि
कोना जियल कि जियैत अछि
आ कि आगुओ जियत
ताहि समस्त मर्म आ मर्मज्ञ केँ
अहर्निश राति-दिन खटैत देखल!
मैथिली जिन्दाबाद!!
हरिः हरः!!