नेपालक प्रदेश २ केर नाम आ राजकाजक भाषा तय करबाक झंझटिया सवाल पर धर्मेन्द्र झाक लेख

लेख

– धर्मेन्द्र झा

(मूल लेख नेपाली मे नयाँ पत्रिका मे प्रकाशित – मैथिली अनुवाद प्रवीण नारायण चौधरी)

प्रदेश २ मे नाम आर भाषाक बेहाली

प्रदेश २ मे नेपाली बाद सरकारी कामकाजक पहिल भाषाक रूपमे मैथिलीकेँ मान्यता प्रदान करबाक चाही।

 
प्रदेश दुइमे खूबे चर्चामे रहल राजधानी आर प्रदेशक नामकरणमध्य आ राजधानीक चर्चाकेँ हाललेल विराम प्राप्त भेल अछि । प्रदेश सभाद्वारा जनकपुरकेँ स्थायी राजधानीक रूपमे स्वीकार कयल गेल अछि । आबक चर्चाक विषय प्रदेशक नामकरण आर भाषा थिक । प्रदेश दुइक निर्माण पर्सासँ सप्तरीधरिक आठ जिला समेटैत भेल अछि ।
 
एकर संरचनाकेँ दृष्टिगत करब तँ एतय मूलतः दुइटा प्राचीन संस्कृति अस्तित्वमे छैक, मिथिला आ भोजपुरा । निश्चय टा प्रदेशक नामकरणक सन्दर्भमे ई दुइ संस्कृतिकेँ समेटबाक विकल्प नहि अछि । किछु लोक एहि प्रदेशकेँ मधेश आन्दोलनक परिणामक रूपमे सेहो देखल करैत छथि आर यैह आधारमे एहि प्रदेशक नाम मधेश राखबाक तर्क करैत छथि । लेकिन, ई तर्ककेँ हालधरि एकांगी मानय पड़बाक अवस्था अछि । मधेश आन्दोलनक माँग ई आठ जिलाटाकेँ मात्र मधेश मानल जेबाक कथमपि नहि छल । मधेश आन्दोलनक परिकल्पना तऽ मेचीसँ महाकालीधरिक सम्पूर्ण मधेश खण्डकेँ एक प्रदेशक रूपमे स्वीकार करब, करायब छल । मुदा, से सम्भव नहि देखल गेल ।
 
मधेशक नाममे आन्दोलन करयवला लोकनि हाललेल एहि माँगकेँ तिलाञ्जलि देने जेहेन देखाइत छथि । जँ से बात अछि तऽ ई अवस्था विगतक माँगकेँ विसर्जन केलक कहला सँ फर्क नहि पड़त । अपन विसर्जनवादी सोचकेँ ढकनाय-नुकेनाय अथवा ‘फेस सेभ’ करबाक नाममे हालक प्रदेश दुइकेँ मधेश नामकरण कयकेँ तुष्टीकरणक नीति अख्तियार करब केँ उचित नहि मानल जा सकैछ ।
 
सम्पूर्ण मधेश प्रदेश कायम कयल जेबाक अवस्थामे ताहिभीतर हालक प्रदेश दुइकेँ मिथिला–भोजपुराक नाममे स्वायत्त शासकीय संरचना विकसित करबाक सम्भावना भऽ सकैत रहय । एना केला सँ मधेश, मिथिला आ भोजपुरा सभक पहिचान आ परिचय अक्षुण्ण रहि सकैत छलय । मुदा, हालक दिनमे एना सोचनाय कोरा कल्पना मात्र होयत । तथापि एखनलेल एहि प्रदेशक समस्त बासिन्दाक भावनाकेर कदर करैत एहि प्रदेशक नामक सन्दर्भमे निम्न विकल्पकेँ आगाँ बढायल जा सकैछ – जनक–जानकी, मिथिला–भोजपुरा, मिथिला–भोजपुरा–मधेस या मिथिला ।
 
एहि तरहें प्रदेशक प्रथम भाषाक सन्दर्भमे सेहो बहस चलब अपेक्षित अछि । मैथिली एहि प्रदेशमे सर्वाधिक बाजल जायवला पहिल भाषा छी । एहि आधारमे एतय नेपालीबाद सरकारी कामकाजक पहिल भाषाक रूपमे मैथिलीकेँ मान्यता प्रदान करब जरूरी अछि । तेनाहीं भोजपुरी निर्विवाद रूपमे दोसर भाषा छी । एतय एहि आलेखमे प्रदेशक नाम मिथिला आ भाषा मैथिलीक सन्दर्भमे किछु चर्चा करबाक प्रयत्न कयल गेल अछि ।
 
चन्दा झा मैथिलीक एहेन यशश्वी कवि तथा साहित्यकार छथि जे मैथिली रामायणक संगहि मिथिलाक सम्बन्धमे अनेकौँ रचना कएने छथि । हुनका द्वारा मिथिलाक इतिहास व भूगोलबारे काव्यात्मक ढंगसँ प्रकाश पाड़ल गेल अछि । पाँचम शताब्दीमे लिखल गेल वृहत् विष्णुपुराणक मिथिला महात्म्य खण्डमे वर्णित मिथिलाक सीमासम्बन्धी विवरणकेँ काव्यात्मक ढंगसँ अनुवाद करैत ओ कहलनि अछि, पूर्वमे कोसी, पश्चिममे गण्डकी, उत्तरमे हिमालय पर्वत शृंखला आर दक्षिणमे गंगानदीबीचक भूभागे मिथिला थिक ।
 
एखन विविध राजनीतिक विचार आ दर्शन हावी भऽ रहल सन्दर्भमे मिथिलाक क्षेत्रीयता आर भौगोलिकता बुझय वास्ते चन्दा झाक ओ उक्ति हमरा लोकनिकेँ विस्तारमे मददि करैत अछि । ओना त बसोवास आ भाषाक हिसाबे पैछला दिनमे नेपालमे पूर्वी रौतहटधरि मात्र मैथिली भाषाभाषीक सघन बसोवास रहल भेटैत अछि । धरि, यथार्थ कि अछि से आइयो धरि कोनो न कोनो रूपमे पर्सा धरि मिथिलाक प्रभाव अनुभूत कयल जा सकैत अछि । तहिना मिथिलाक प्राचीन सीमा रहल कोसी नदी पैछला किछु दशकमे पश्चिमदिश बेसिये विस्थापित भेल देखल जा सकैत अछि । ईहो वर्तमानमे मिथिलाकेँ बुझय वास्ते आरो सामग्री प्रदान करैत अछि । भाषा तथा संस्कृतिविद् एवं पूर्वप्रधानमन्त्री मातृकाप्रसाद कोइरालाद्वारा एकटा सन्दर्भमे कहल गेल अछि, आजुक तुलनामे कोसी नदी पूर्वकालसँ बहुते पूर्वसँ बहैत छल । हालक भारतक पूर्णियासँ पूर्व ।
 
आजुक कोसीक धाराकेँ आधार मानी तऽ भारतक दुइ जिला पूर्णिया आर कटिहार तथा नेपालक दुइ जिला मोरङ आर सुनसरी प्राचीन मिथिलासँ अलग भऽ जाइत अछि । लेकिन, यथार्थ कि अछि कही तऽ ई चारू जिलामे मैथिलीभाषीक उल्लेख्य जनसंख्याक बसोवास अछि । एहि सँ सेहो प्राचीनकालमे चन्दा झाद्वारा कहलजेकाँ मिथिलाक सीमा विशाल छल से स्पष्ट होइत अछि । सिंहावलोकन पत्रिकाक नेपालीय मैथिली विशेषांकमे संकलित कोइरालाक ओहि लेखमे दाबी कयल गेल अछि – नेपालक मोरङक रतुवा—मावा नदीसँ रौतहटक झाँझ नदीधरि मैथिलीभाषीक बाहुल्यता अछि ।
 
मैथिलीकेँ यदाकदा जातिगत वा सामाजिक संरचनाक दृष्टिसँ सेहो वर्गीकरणक प्रयास कयल गेल भेटैत अछि । एहि सम्बन्धमे भाषाविद् पण्डित गोविन्द झा आर डा. जयकान्त मिश्रद्वारा एहि तरहक वर्गीकरणकेँ अवैज्ञानिक कहल गेल अछि । एकर बदला ओ लोकनि क्षेत्रीय आधारमे वर्गीकरण कयल जेबाक बात सुझाव देलनि अछि । एहि सम्बन्धमे पूर्वाञ्चल विश्वविद्यालयक पूर्वउपकुलपति तथा प्रसिद्ध भाषाविद् डा. रामावतार यादवक कथन अत्यन्त सान्दर्भिक अछि ।
 
विगतकालमे मैथिली भाषा केकर छी ताहू सन्दर्भमे किछु व्यक्ति आर वर्गद्वारा जबर्दस्ती विवाद उत्पन्न करबाक प्रयासक सन्दर्भमे डा. यादवक कथन एकटा जबाब भऽ सकैत छैक । ओ कहैत छथि – किछु दशक पूर्वधरि ब्राह्मण आ कायस्थ आदि शिक्षाक प्रसार बढिरहल समुदायमे हुनका लोकनिक भाषामे किछु विशिष्टता देखल जाइत छल मुदा विगतक किछु समयमे शिक्षाक पहुँच बढैत गेल आन जातिक भाषाभाषीक स्तर सेहो हुनके लोकनिक स्तरक होइत चल गेल अछि ।
 
पैछला समयमे नेपालमे मिथिला आर मैथिलीकेन्द्रित चर्चा सब गति लेलक देखल जा सकैत अछि । ई चर्चा आर बहस कतेक सार्थक अछि वा होबयवला अछि, ताहि सम्बन्ध मे त भविष्ये टा निर्णय करत, धरि हाललेल एहेन चर्चाक नया विचार निर्माणक दृष्टिसँ काफी महत्व होयब सुनिश्चित अछि आर एहिमे सार्थक बहस अपरिहार्य अछि । उल्लेखित विषयमे मिथिलाक बहुतेरास लोकसब सहभागी होबय चाहैत छथि आर खुलिकय बहस करय चाहैत छथि । तेहेन अवसर प्राप्त नहि कय सकबाक शिकायत धरातल पर जहिं-तहिं देखल जा सकैत अछि । आशा करी जे भाविष्यमे सरोकारवाला लोकनिक एहि दिश समुचित ध्यान पहुँचतनि ।
 
एहि सन्दर्भमे घोषित–अघोषित रूपमे मैथिली केकर भाषा छी ताहि सम्बन्धमे सेहो किछु असहमतियुक्त विवादक स्वर सुनल गेल करैत अछि । एहेन असहमतिकेँ अन्यथा नहि मानबाक चाही । हमरा लोकनिक समाज बहुलवादी अछि आर यैह कारण समाजमे विभिन्न विचार सेहो छैक । लोकतन्त्रमे एहेन विविध विचारक पैघ महत्व छैक । एहेन सबतरहक विचारकेँ प्रस्फुटनक अवसर प्राप्त हेबाक चाही । एहेन विचार अभिव्यक्त होयबाक अवसर प्राप्त नहि होयत तऽ समाजमे अपनत्वक भावना विकसित नहि भऽ सकैत अछि आर समाज निर्माणक प्रक्रिया बाधित भऽ जायत । विविध विचार प्रकटीकरणक अवस्थामे मात्र सर्वाेत्कृष्टक चयन सम्भव भऽ सकैत अछि । मैथिलीक सन्दर्भमे व्यक्त धारणाकेँ सेहो एहि रूपमे बुझब श्रेयस्कर होयत ।
 
जहाँतक मैथिली केकर भाषा छी वला जे प्रश्न अछि, से तऽ स्पष्टे अछि, मैथिली मिथिलाक भूगोलमे बसनिहार सभक साझा भाषा थिक । एहि भूगोलभीतर, खासकय हालक प्रदेश दुइभीतर, ई भाषा सम्पर्क भाषा छी, एहिमे विवाद भइये नहि सकैत अछि । एहि भूगोलभीतर विभिन्न जात-जाति आर समुदायमे बाजल जायवला आरो कतेको भाषा अछि, भाषा वैज्ञानिक अध्ययन करैत जेबाक खण्डमे किछु अपवादबाहेक मैथिली ताहि सभक अभिभावक आर मूल भाषा छी कहल जा सकैत अछि । जहाँतक भूगोलक सन्दर्भ अछि, ऊपर कवीश्वर चन्दा झा आर मातृकाप्रसाद कोइरालाक प्रसंग उठान कयकेँ स्पष्ट करबाक प्रयत्न कयल गेल अछि ।
 
एहि सन्दर्भमे भाषाक प्रयोग आर स्तरबारे सेहो प्रश्न उठैत अछि । ताहि विषयमे डा. रामावतार यादवक ऊपर उल्लेखित कथन काफी महत्वपूर्ण रहल मानल जा सकैत अछि । मैथिलीमे यदाकदा मानकक चर्चा चलल करैत अछि । एहि सम्बन्धमे पंक्तिकारक स्पष्ट दृष्टिकोण अछि, एखन मानकक प्रश्न उठाकय स्तरीयता खोजिकय कित्ताकाटक रणनीति अख्तियार नहि करक चाही । जे मैथिली कहिकय जेना बजैत अछि वा लिखैत अछि, से मैथिलीक रूपमे स्वीकार करय पड़त । एहिसँ मैथिली गरीब नहि, बरु आर अधिक सम्पन्न बनत । शब्द भण्डार, शब्द विन्यास आर भाषा निर्माण प्रक्रियाकेँ आरो अधिक गति प्राप्त हेतैक । दोसरदिश आमव्यक्तिमे मैथिलीप्रति अपनत्वक भावमे वृद्धि हेतैक । कियोगोटे पंक्तिकारक एहि दृष्टिकोणकेँ भाषिक अराजकताक संज्ञा सेहो दय सकैत छथि । ताहिमे सेहो आपत्ति नहि मानल जेबाक चाही । यैह अराजकतासँ भविष्यमे आरो स्तरीकरण तथा परिष्करणक मार्ग प्रशस्त होयत ।
 
#धर्मेन्द्र_झा
 
हरिः हरः!!