पाँच गो माय आ पाँच पिता होयबाक तथ्य
मनुष्य जीवन मे ओना तऽ ज्ञानक स्रोत अनेक अछि, कहल गेल छैक जे अपना सँ छोटो सँ ज्ञान भेटय त ओकरा निश्चित ग्रहण करबाक चाही। मुदा मुख्य रूप सँ हिन्दू धर्मावलम्बी व आनो धर्मक लोक लेल धर्मग्रन्थ, ऋषिवाणी, सन्तवाणी, गुरुवाणी, विद्वानक वाणी आदि सेहो ज्ञानक मुख्य स्रोत थिक। आइ विद्यादायिनी देवी माँ सरस्वतीक विशेष पूजा-अर्चनाक दिवस ‘वसंत पञ्चमी’ पर एहने एक महान ज्ञानीक महान वचन फेर सँ कहय चाहब। विगत किछु समय सँ चाणक्यवाणी पढि-बुझि रहल छी तऽ अपन पाठक लोकनिक समक्ष टुकड़ा-टुकड़ा मे ओ सब ज्ञानामृत राखैत आबि रहल छी। आइ देखू चाणक्य कि कहि रहला अछि।
चाणक्य ५ गो माय हेबाक चर्चा करैत कहलनि अछि –
राजपत्नी गुरोः पत्नी मित्रपत्नी तथैव च।
पत्नीमाता स्वमाता च पञ्चैताः मातर स्मृताः॥
राजाक पत्नी, गुरुक पत्नी, मित्रक पत्नी, पत्नीक माय, तथा अपनी माय, ई पांच प्रकारक माता होइत छथि।
पुनः चाणक्य ५ गो पिता हेबाक चर्चा करैत कहैत छथि –
जनिता चोपनेता च यस्तु विद्यां प्रयच्छति।
अन्नदाता भयत्राता पञ्चैता पितरः स्मृताः॥
जन्म देनिहार, उपनयन संस्कार करनिहार, विद्या देनिहार, अन्नदाता तथा भय सँ रक्षा करनिहार, ई पांच प्रकार केर पिता होइत छथि।
ज्ञानक गूढता हमरा लोकनि अपन समझशक्ति सँ पता कय सकैत छी। हमरा सँ जँ कियो पूछत त चाणक्यक एक-एक बात यथार्थ सत्यक निरूपण करैत मानव जीवन लेल एकटा नीक मार्गदर्शन प्रस्तुत करैत अछि।
एतय माता आ पिताक ५ गोट रूप जे वर्णित अछि, एकर महत्ता लगभग सब कियो बुझि रहल छी।
हरिः हरः!!