कथनी आ करणी मे असमानता नेपाल मे पहिचानक समस्याक मूल कारण

नेपाल मे पहिचानक समस्या कियैक?
 
Why Identity Crisis In Nepal?
 
नेपाली सहित सब भाषा केँ सिर्फ अलंकृत रूप मे राष्ट्रीय भाषा कहि देला सँ न्यायोचित अधिकारसम्पन्नता आबि सकत?
 
कथनी आ करणी मे फर्क केँ हंटेबाक लेल संघीयता केँ निर्भीकता सँ लागू करय मे तकलीफ कियैक?
 
नेपाली बाद दोसर सशक्त भाषा ‘मैथिली’ केँ खन्डित करबाक अनेकों षड्यन्त्र कियैक?
 
आखिर ई पहिचानक समस्या नेपाल मे कियैक छैक? एकर जड़ि ताकू। सिर्फ भाषण मे कहि देनाय जे नेपाल बहुभाषिक-बहुधार्मिक-बहुसांस्कृतिक आ बहुल्य पहिचानक देश थिक, मुदा व्यवहार मे ‘एकल भाषा – नेपाली भाषा’ मात्र नीतिगत रूप सँ लागू करबाक कारणे दोसर भाषाभाषी केँ अपन भाषिक पहिचान प्रति स्वाभिमान-सम्मान बोध नहि भऽ पाबि रहल छैक, ओ स्वयं अपनहि नजरि मे ‘दोस्रो दर्जा’ केर नागरिक बनिकय अपनहि राष्ट्रीयता पर सवाल रखैत अछि।
 
नेपाल मे एहि तरहक कथनी आ करणी मे फर्क केँ मेटाबय लेल एकमात्र कड़ा संघर्ष भेलैक ‘मधेश आन्दोलन’ सँ, मुदा ओहो आन्दोलन किछु नीतिगत आ सैद्धान्तिक गलत अवधारणा आ नेतृत्वक लोभी, अहंकारी आ मिथ्याचारी होयबाक कारण अन्ततोगत्वा धराशायी भऽ गेलैक एक बेर लेल। हम दावीक संग कहि सकैत छी – नेपाल मे दोबारा, तेबारा आ बेर-बेर खूनी क्रान्ति हेतैक एहि ‘पहिचानक समस्या’ केर कारण। एतय एक वर्ग मालिक आ दोसर वर्ग मजदूर जेकाँ ‘आन्तरिक भान’ मे फँसल अछि। मालिक आ मजदूर बीच जहिना बोनि लेल संघर्ष होइत रहैत छैक, तहिना एहि ठामक शासक वर्ग आ शासितो मे शोषित वर्ग बीच संघर्ष होइत रहत।
 
समाधान लेल एक्के गोट बात बुझू – विश्व भरि मे प्रचलित न्यायपूर्ण सिद्धान्त छैक भाषिक पहिचान आ भाषा आधारित शिक्षा, सरकारी कामकाजी भाषाक रूप मे मान्यता, रोजी-रोजगार लेल सभक भाषा केँ सम्मानपूर्वक राज्य द्वारा हितपोषण – सभक संस्कृति आ इतिहास केँ राष्ट्रीय स्वामित्व पेबाक अधिकार, नहि कि ई देश हमर बाप-पुरुखाक अरजल देश थिक आ मधेशी कहेनिहार एतय दोसर-तेसर लोक थिक। ई भान जा धरि ‘नेपालीभाषाभाषी’ समुदायक दिमाग सँ नहि हंटतैक, ता धरि ई देश मे शान्ति सपनहुँ मे संभव नहि होयत।
 
एकटा नीक बात ई भेलैक जे संघर्षक बीच नव संविधान लागू भेलैक। लेकिन ईहो नव संविधान लागू कतेक भेलैक आ एकर जमीनी प्रभाव कतेक परिवर्तन आनि सकलैक से सब कियो देखिये रहल छी। फेर सँ कथनी आ करणी मे फर्कक एकटा नंगा नाच देखि सकैत छी राज्य द्वारा निर्धारित नीति-कार्यक्रम आ बजट विनियोजन संग व्यवहार मे लागू अधिकारसम्पन्नताक सम्बन्ध मे। लोक एखन चुप अछि। वर्तमान दु-तिहाई बहुमतक दावी करयवला सरकार द्वारा केना-केना कि सब अधिकार व्यवहार मे लागू कयल जेतैक तेकर प्रतीक्षा मे सब चुप अछि। मुदा बवंडर मानू कतहु प्रतीक्षा कय रहल हो…. मानू जेना फल्लाँ दिन फल्लाँ समय धरि फल्लाँ काज नहि हेतैक त एतय पुनः मधेश आन्दोलित होयत आ आरपार केर संघर्ष होयत।
 
हमर व्यक्तिगत धारणा ई अछि जे संघर्ष सँ पहिनेक चुप्पी पर राज्य आ राजनीतिज्ञ-नीतिकार – राष्ट्रहित मे सोचनिहार ध्यान देथि, बात बुझथि। शीघ्र सर्वदलीय बैसार कय आन्तरिक असन्तोष, संविधान संशोधनक मुद्दा आदि केँ संबोधन कयल जाय। नहि त दुर्घटना घटब तय अछि।
 
एकटा आर्टिकल सन्दर्भ लेल राखि रहल छी, ई पढूः
https://jia.sipa.columbia.edu/online-articles/identity-crisis-nepal
 
हरिः हरः!!