विचार
– प्रवीण नारायण चौधरी
मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल २०१९ – पुरबिया राजनीति केर शिकार
(मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल – जानकी कृपाक अद्भुत दर्शन)
२०१८ मे मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल दिल्ली मे भेल रहय, से मार्च मास मे। एहि वर्ष आम निर्वाचनक कारण आदर्श आचार संहिता केर समय पूर्वहि गछल बात पूरा नहि कय सकैत छल ‘मैथिली भोजपुरी अकादमी, दिल्ली’, ताहि सँ एहि कार्यक्रमक तारीख चुनाव पछाति करबाक सहमति बनबाक बात मैथिली लेखक संघक महासचिव विनोद कुमार झा बतौलनि। होइत-होइत ई आयोजन नवम्बर ८-१० (तीन दिन) कयल जेबाक तिथि तय भेल। मुदा ईहो ज्ञात छल जे दिल्ली मे १० सँ १२ नवम्बर धरि पूर्वांचल सांस्कृतिक मेला २०१९ केर आयोजन सेहो ‘मैथिली भोजपुरी अकादमी’ द्वारा आयोजित होयब तय अछि। एहि सन्दर्भ मे गोटेक मास पूर्वहि दिल्ली सरकारक उपमुख्यमंत्री मनीष शिशोदिया जी प्रेस संग वार्ता मे बतेने छलाह। मैथिली केँ शिक्षा मे शामिल करबाक घोषणाक संग-संग मैथिली, भोजपुरी, अबधी आदि भाषाक समग्र राजनीतिक नामकरण ‘पुरबिया’ केँ स्थापित करबाक उपक्रम केर रूप मे पूर्वांचल सांस्कृतिक मेला – २०१९ केर आयोजनक बात कयल गेल छल।
राजनीति मे सत्ता प्राप्तिक मार्ग कोना प्रशस्त होयत ताहि बात केर प्रमुखता होइत छैक। मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल मे जनसहभागिताक स्तर ओ राजनीतिज्ञ सब नहि देखि सकलाह। हुनका हिसाब सँ भीड़ जाहि उपक्रम सँ जुटत वैह टा कारगर आयोजन भेल। आर एहि मीमांसाक आधार पर एहि वर्ष आखिरकार मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल सँ मैथिली भोजपुरी अकादमी अपन हाथ खींचि लेलक। परामर्शदात्री समितिक सदस्य आ मैथिलीक चर्चित विद्वान् डॉ कैलाश कुमार मिश्र केर एक गोट अवधारणा फेसबुक पर पं. कौशल झा द्वारा सार्वजनिक कयल गेल अछि जाहि मे उपरोक्त पूर्वांचल सांस्कृतिक मेला २०१९ मात्र सांस्कृतिक मेला नहि पुरबिया आइडेंटिटी केर पुनर्जागरणक बिगुल कहल गेल अछि। ई ‘पूर्वांचल’ शब्द दिल्ली मे विगत किछु दशक सँ लगभग सब राजनीतिक दल द्वारा प्रचारित-प्रसारित ‘शिगूफा’ थिक, चाहे भाजपा हो या कांग्रेस या आम आदमी पार्टी – सभ कियो बिहार व उत्तरप्रदेश केर विभिन्न पुरबिया लोक केँ एकत्रित करबाक लेल ई राजनीतिक मंत्र केर प्रयोग कय रहल अछि।
विदिते अछि जे मिथिला आ मैथिली सँ अपन परिचय बनबैत अछि। तदोपरान्त ओ सब अपना केँ पब्लिक पोलिटिकल एरीना मे स्थापित भेल बुझि छुपल एजेन्डा पर काज करब शुरू करैछ। अपन राजनीतिक महात्वाकांक्षा पूरा करबाक वास्ते कइएक जानल-मानल मैथिल चेहरा भिन्न-भिन्न दल मे प्रवेश करैत अछि। आर फेर, ओकर गाड़ीक झंडा आ बंडीक बैच आदि मे पार्टीक लोगो आ राष्ट्रीय झंडा आदिक प्रवेश सेहो भेट जाइत छैक। आब मैथिली-मिथिला ओकरा लेल सेकेन्ड्री आ तथाकथित राष्ट्रीय राजनीति आ दिल्ली राजनीति सर्वोपरि बनि जाइत छैक। पूर्वांचली, पुरबिया, पूर्वीजन, एहेन कतेको रास विशेषण सँ लोक सब केँ फुसलेनाय आ सत्ता धरि पहुँचबाक सीढी खुलेआम प्रयोग कयल जाइछ दिल्ली मे। वैह लोक जँ मुम्बई मे भेटत त ओ बिहारी, मैथिल, भोजपुरिया आदिक नाम सँ चिन्हल जाइछ – मुदा दिल्ली मे ई महान राजनीतिक महात्वाकांक्षी लोक सब ‘पुरबिया’ पहिचान केर फेंटा बान्हि राजनीति करैत अछि।
कैलाश कुमार मिश्र जी सँ परिचित हरेक व्यक्ति ई आलेख पढब त स्वतः बुझि जायब – लेख साभार पंडित कौशल झा जहिनाक तहिना राखल गेल अछि।
डॉ कैलाश कुमार मिश्र से पं कौशल झा की बातचीत:-
पूरब का अर्थ होता है साँझी संस्कृतियों, संस्कारों, भाषा और विचार का संगम स्थल। पुरब का अर्थ होता है सीता, बाल्मीकि, चाणक्य, अशोक, गौतम, कर्ण, भारती, मंडन, वाचस्पति, कालिदास, सलहेश, जनक, याज्ञवल्क्य, अष्टावक्र, तुलसीदास, गान्धी, दिनकर, नागार्जुन, विद्यापति, कबीर, जयशंकर प्रसाद, भारतेन्दु, फणीश्वरनाथ रेणु, दशरथ माँझी, भिखारी ठाकुर, शैलेन्द्र, जयप्रकाश नारायण, स्वामी सहजानन्द सरस्वती , राजेन्द्र प्रसाद, सिधु कानू की कर्मभूमि।
गौतम बुद्ध ने श्राप दिया इस धरा को की हमेशा आग और पानी से त्रस्त रहेगा। हम आज भी उस श्राप को भुगत रहे हैं। कभी बाढ़ तो कभी सुखार झेल रहे हैं। लेकिन हम पुरबिया लोगों का चित्त चंचल नही है। हम अकाल पर अन्य तथाकथित विकसित क्षेत्र के किसानों की तरह आत्महत्या नहीं करते। हम गंभीर होकर उसका सामना करते हैं। हम बिपत्ति पर भी राजनीति नही करते, साहित्य का निर्माण करते हैं। कभी निराला “भिक्षुक” कविता लिखते हैं तो कभी नागार्जुन “अकाल और उसके बाद” का निर्माण करते है और, कभी हमारे किसानों के हिम्मत से प्रभावित होकर अज्ञेय को लिखना पड़ता है “धन अकाल आये आकर चले गए”।
इसबार भी जब केरल में बाढ़ तूफान आया तो पूरा भारत द्रवित हो गया। सरकार से कॉर्पोरेट और देशके टैक्स पेयर ने सुविधा और पैसों से भर दिया प्रदेश को। बिहार में भी बाढ़ आया था। पटना डूब गया। और तो और शारदा सिन्हा डूबने लगी। लेकिन न ही केंद्र सरकार गंभीर हुई न ही कॉरपोरेट, टैक्स पेयर की तो बात छोड़ दीजिए।
हम अर्थात पुरबिया उन्नत धरती के गरीब सन्तान हैं। दोष हमारे नेता, नीतिकार और विद्वानों की है। हमारे लोग अलग-अलग खेमे, और दल के दलदल में बंटे हैं। फिर क्यों सुने केंद्र सरकार! हम पुरबिया गरीब जरूर हैं, आपदा से फंसे हुए हैं लेकिन मिहनतकश लोग हैं। हम ईमानदारी से मिहनत कर भारत क्या संसार के किसी कोने में रहकर अपना जीविकोपार्जन करना और जीना जानते हैं। हम अंग्रेजो के समय से कभी चीनी, चाय, कहवा आदि की खेती के लिए असम, पूर्वोत्तर प्रदेश तो कभी दुनिया के अनेक देशों में गिरमिटिया मजदूर बनकर जाते रहे हैं। हमने कोलकाता में मानव रिक्शा खींचहकर भी आत्मसम्मान के साथ जीना सीखा है। हम अपनी भाषा, संस्कृति, संस्कार, को अपने साथ लेकर चलते हैं।
यह एक अलग और कारुणिक स्थिति है कि हमारे लोगों को विदेश कौन कहे अपने भारत देश के ही अनेक जगहों पर प्रताड़ित किया जाता है, अपमानित किया जाता है। उन्हें कही असभ्य तो कहीं कुछ और कहकर उनका माखौल उड़ाया जाता है। और सत्ता और नेता या तो मौन रहते हैं या उदासीन। फिर भी हम पूरब के लोग अपना धैर्य नहीं खोते। हम बिपरीत परिस्थितियों में जीना जानते हैं। हम अपनी संस्कृति लेकर चलते हैं।
सौभाग्य से दिल्ली सरकार हमारी सांस्कृतिक भावना का सम्मान करती है। छठ घाट अनेक बने हैं। दिल्ली सरकार की संस्था मैथिली भोजपुरी अकादमी के माध्यम से अनेक छठ घाट पर गायक और कलाकारों को भेजा जाता है। छठघाट समितियों को कार्यक्रम सुचारू रूप से चलाने के लिए आर्थिक अनुदान भी दिया जाता है। इससे एक तो लोगों एवं दर्शनार्थियों का मनोरंजन होता है और दूसरी और कलाकारों को उचित मानदण्ड मिल जाता है जिससे लोककलाएं जीवित रहती हैं। आज दिल्ली में रहकर भी पूरब के लोग यह अनुभव करते हैं कि वे अपनी धरती पर हैं। वही माहौल, वही उत्साह, वही उमंग।
मैथिली-भोजपुरी अकादमी केवल भाषा और साहित्य तक सीमित नहीं है। इसमें संस्कृति के अनेक प्रतिमान यथा गीत, नाटक, खान-पान, नृत्य, लोककथा, लोक उत्सव, सभी कुछ सम्मिलित है।
इसी बात को ध्यान में रखकर सरकार अकादमी के माध्यम से दिल्ली के बिभिन्न क्षेत्रो में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करवाती है। पिछले दिन १० से १२ नवम्बर २०१९ को पूर्वांचल सांस्कृतिक मेला – २०१९ का आयोजन किया गया। इसमें मैथिली और भोजपुरी भाषा साहित्य एवं संस्कृति के पुस्तकों, मिथिला एवं अन्य चित्रकलाओ, आदि का प्रदर्शन एवं स्टाल लगाया गया। पूरब के ऐतिहासिक स्त्री-पुरुषो की छवि को सजाया गया, गीत, नृत्य, संगीत, एवं अन्य अनेक विधा के कलाकारों को बुलाकर सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। प्रतिदिन कनाट प्लेस के मैदान में लोग उमड़े हुए थे। अपनी संस्कृति के उपादानों को देखकर पुलकित हो रहे थे। मैथिल अपनी संस्कृति के साथ-साथ भोजपुरी संस्कृति और भोजपुरिया भी अपनी संस्कृति के साथ-साथ मैथिली संस्कृति के प्रदर्शन से पुलकित हो रहे थे।
लोगों के आनंद और उत्साह से ऐसा लग रहा था कि यह सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं पुरबिया पुनर्जागरण का बिगुल है। पूरब के लोग भी अब मुख्यधारा में अपनी भूमिका को समझते हैं और अपनी भाषा-संस्कृति-और संस्कार से अपनी सहभागिता के लिए कृतसंकल्पित हैं। इस पुनर्जागरण के लिए दिल्ली सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और मैथिली भोजपुरी अकादमी के उपाध्यक्ष नीरज पाठक धन्यवाद के पात्र हैं।
मै किसी राजनितिक दल का आदमी नही हूँ। शोध और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता हूँ। अतः मेरी भावना को किसी राजनितिक दल से न जोड़कर अगर सांस्कृतिक पुनर्जागरण और पुरबिया अस्मिता से जोडकर देखेंगे, जो लोग इस तीन दिवसीय कार्यक्रम के साक्षी रहे हैं, वे लोग अगर इसका पुनरावलोकन करेंगे तो आपको इस कथन का अर्थ पता चल जाएगा। अभी इतना ही।
आप पूर्वांचल शक्ति दिल्ली
उपरोक्त लेख मे भावनात्मक प्रेरणा संचरण लेल कतेक रास मसालेदार बात कहल गेल अछि। मैथिली भोजपुरी अकादमी आ दिल्ली सरकारक महिमामंडन स्पष्टे अछि कारण छठिक घाट आ विभिन्न सांस्कृतिक आयोजन आइये सँ नहि, कइएक दशक सँ बिहार आ उत्तरप्रदेश केर आमजन द्वारा होइत रहल अछि। बिहारी कहिकय अवहेलना करयवला जाट आ गुज्जर समुदाय विरुद्ध संगठित होयबाक लेल कइएक सूत्र दिल्ली मे आइ कतेको वर्ष सँ स्थापित अछि। परञ्च कैलाश कुमार मिश्र जी अपन लेख मे एकटा पेशेवर लेखक जेकाँ ‘पूरबिया आइडेन्टिटी’ केँ स्थापित करबाक महारत देखबैत अनेकों बात रखलनि अछि। राजनीतिक उपलब्धि लेल सब राजनीतिक दल केर सूत्र होइत छैक, निश्चित ओ आम आदमी पार्टीक निवर्तमान सरकार केँ २०२० केर विधानसभा चुनाव मे आगाँ रहबाक लेल कइएक प्रयास करता, आखिर अरविन्द केजरीवाल केर सरकारे त सच मे नीरज पाठक समान सकारात्मक सोचक उपाध्यक्ष देलनि जे वास्तव मे ‘मैथिली भोजपुरी अकादमी’ केँ सुसुप्तावस्था सँ पूर्ण जाग्रत अवस्था मे आनि देलाह।
बात सबटा जायज अछि। कहबी छैक न – मुहब्बत और जंग में सब कुछ जायज है… ठीक तहिना आइ-काल्हि राजनीति मे सब किछु जायज अछि। लेकिन जाहि तरहें ‘मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल २०१९’ सँ अकादमी अन्तिम समय मे हाथ खींचि लेलक ई बड पैघ सवाल ठाढ करैत अछि। नीरज पाठक जी असगरे ई निर्णय एकदम नहि कएने हेताह। एहि निर्णय मे आरो पेशेवर माहिर लोकक फौज जे हुनकर आगाँ-पाछाँ पसरल अछि तेकरो हाथ जरूर हेतैक। भाषा आ साहित्य संग कला आ संस्कृति प्रति समर्पित आयोजन मे पूर्वांचल सांस्कृतिक महोत्सवक आयोजन अड़चन भेल, ई बात कतहु-कतहु सुनलहुँ। अकादमीक सचिव लिटरेचर फेस्टिवल प्रति नकारात्मक भाव रखलनि सेहो सुनलहुँ। घोर आश्चर्यक बात भेल जे मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल २०१९ लेल पहिनहिं समय नहि दय आखिरी समय मे एना तिथि निर्धारण सँ लैत सब सत्र, विमर्श, विद्वान् साहित्यकार लोकनिक सूची आदि मे संग रहि अचानक पूरबिया आइडेन्टिटी केँ स्थापित करबाक चक्कर मे मैथिली संग द्वेष-भाव कियैक? ई सवाल बहुतो दिन धरि अकादमी आ वर्तमान दिल्ली सरकार पर बनल रहत। मिश्रजी समान विचारक-लेखक आ योजनाकार पर सवाल बनल रहत। मैथिल समाज केँ एहि अपमान प्रति सजग बनि आगाँ एकर हिसाब लेबय पड़त। छोट-छोट आयोजन मे अकादमी योगदान दैत अछि, मुदा एतेक निश्छल आ पवित्र आयोजन मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल केँ अन्तिम समय मे धोखा देनाय कतहु सँ उचित नहि लगैत अछि।
क्रमशः…. तेसर कड़ी आगाँ अछि! समय देल, पढि लेल, आभार पाठक लोकनि!!