नेपाल मे आंगुर पर गानय योग्य भत्ताभोगी व्यक्ति मैथिलीक विरोध मे कुतर्क कियैक करैत अछि

नेपाल मे मैथिलीक विरोध लेल एकटा खास भत्ताभोगी वर्ग सक्रिय

केकरो नाम लेनाय त उचित नहि अछि परञ्च ई बात लिखब आवश्यक अछि जे आंगुर पर गानल किछु लोक भिन्न-भिन्न नाम सँ आईडी बनाकय मैथिली भाषाक सम्बन्ध मे गलत अफवाह आ कुतथ्य केर प्रसार कय अपना केँ पोल्हा रहल अछि। ओ ई बुझैत छैक जे ओकर एहि किरदानी सब सँ मैथिली भाषाक स्थिति दयनीय भऽ जेतैक, ओकरहि शब्द मे १-२% लोकक यानि ब्राह्मण-कायस्थ मात्र केर भाषा बनिकय रहि जेतैक….। हास्यास्पद स्थिति तखन बनैत छैक जखन ओ अपने समान जातिवादिताक दुर्गन्धित नर्क मे समय बितौनिहार सब केँ ताकि-ताकि कय सोझाँ आनि ‘मैथिली भाषा’ केँ सेहो अधिकारविहीन बनबय चाहि रहल अछि। ओनाहू मिथिलाक दुर्भाग्य यैह छैक जे आपस मे खण्डित आ छद्म बौद्धिकताक अहंकारी प्रदर्शन मे बेसी लोक बाझल अछि। केकरो निजताक पोषणक चिन्ता नहि, निजी स्वार्थ आ भत्ता भेटि गेल, बात खत्म। मैथिली वा मिथिला जाय भाँड़ मे, ओकरा कि लेना या कि देना!

 

नेपाल मे मैथिलीक मजगूत स्थिति

 

मैथिली भाषा नेपालक सर्वथा प्राचीन आ समृद्ध भाषा थिकैक। इतिहास छैक गहींर। एतय पृथ्वीनारायण शाह द्वारा नेपालक एकीकरण सँ पहिने सँ यैह भाषाक वर्चस्व राज्य संचालनहु मे रहलैक। परञ्च शाहकालीन राजसत्ता द्वारा बहुत बाद मे एकल भाषा नीति अवलम्बन करैत मैथिली भाषा सहित अन्य-अन्य मातृभाषा केँ जानि-बुझिकय जनताक मुंह सँ छीनि शासक आ शासित केर नीति अपनाओल गेलैक। आइ एहि नीतिक दुष्परिणाम प्रकट रूप मे नेपालक जनता केँ आपस मे विखन्डित कएने छैक। एकरे कारण हाल मे कय गोट जनआन्दोलन आ क्रान्ति सब भेलैक एतय। आखिरकार नेपाल सँ राजतंत्र केँ ऊखाड़ि फेंकल गेलैक आर नव संघीय लोकतांत्रिक गणतंत्रक रूप मे नेपाल क्रमिक रूप मे सुस्थापित होयबा दिश अग्रसर छैक।

 

नव संविधान मे राखल गेल प्रावधान सँ स्थिति मे सुधार होयबाक प्रबल संभावना

 

नेपाल मे जनगणनाक तथ्यांक मुताबिक मैथिली दोसर सर्वाधिक बाजल जायवला भाषा थिकैक। नेपालक नव संविधान अन्तर्गत हरेक मातृभाषा केँ राष्ट्रीय भाषाक दर्जा दैत प्रदेशक कामकाजी भाषा लेल जाहि भाषाक बहुल्यता छैक तेकरा अधिकारसम्पन्न बनेबाक नीति तय कय देल गेल छैक। एहि हिसाबे नेपालक एक प्रदेश “प्रदेश-२” केर कामकाजी भाषा मैथिली बनत से तय छैक, शिक्षा सँ लैत लोकसेवा आयोगक परीक्षा आदि मे वैकल्पिक भाषाक रूप मे मैथिली केँ सर्वोपरि स्थान भेटतैक। एतबा नहि, केन्द्र सरकार केर नीति मे सेहो जे संघीय लोकसेवा आयोग अथवा भाषा-संस्कृति आ पहिचानक विविधता केँ संरक्षण-संवर्धन लेल भाषिक पहिचानक आधार अनुरूप अधिकार विनियोजित करबाक नीति बनतैक ताहू मे ‘भाषा आयोग’ केर सिफारिश मे मैथिली सर्वग्राह्य आ सर्वोपरि राष्ट्रीय भाषाक रूप मे अपन अलग उत्कर्ष केँ प्राप्त करतैक।

 

कथित विरोधक कुतर्क आ आशंका अनावश्यक

 

छद्म चिन्तक-विचारक केँ एहि अधिकारसम्पन्नता सँ अज्ञानतावश ईर्ष्या होइत छैक। संविधान घोषणा उपरान्त तीनू निकायक चुनाव सफलतापूर्वक सम्पन्न भेलाक बाद प्रदेश मे सरकारक गठन उपरान्त एहि तरहक कुतर्क सब प्रकाश मे आबयल लगलैक। उपरोक्त कथित भत्ताभोगी आ कथित चिन्तक-विचारक सभक हिसाबे मैथिली भाषाक ‘मानक स्वरूप’ पर उच्च-जातिक एकाधिकार छैक, ताहि चलते ‘जनसामान्य’ केँ एकर लाभ नहि भेट पओतैक ओ सब अनावश्यक आशंका मे घेरा गेल अछि। ओकरा ई डर छैक जे मैथिली केँ मान्यता देबाक लाभ सिर्फ १-२% उच्च जातिक लोक टा केँ भेटतैक। जखन कि ई आशंका पूर्णरूप सँ कपोलकल्पित आ वाहियात छैक, कारण मैथिली जहिया सँ प्रदेशक शिक्षा आ कामकाज मे प्रवेश करतैक त एकर हर ओ स्वरूप (भाषिका) केँ स्वतः मान्यता भेटतैक आर पाठ्यक्रम सँ लैत परीक्षा सामग्री तक आम जनभाषा (मैथिलीक सब स्वरूप – बोली-भाषिका आदि केँ समेटैत) मैथिली मे विकसित करय पड़तैक। प्रदेश १ व प्रदेश ३ केर जनगणनाक तथ्यांक अनुरूप मैथिली भाषाभाषी केँ ओतहु लाभ भेटतैक। पाठ्यक्रम विकास मे मात्र परिमार्जनक काज छैक, कारण मैथिली पहिनहि सँ एक समृद्ध भाषा-साहित्यक रूप मे सर्वविदिते अछि।

 

पूर्व मे एकल भाषानीति सँ नोक्सान

 

ध्यातव्य ईहो छैक जे पहिने एकल भाषानीतिक कारण मैथिली केँ शिक्षा आ रोजगार सँ लैत राजकाजक भाषाक रूप मे ताहि तरहक मान्यता नहि भेट सकलैक। प्राथमिक शिक्षा मे कतहु-कतहु मातृभाषाक रूप मे पढाई त करायल गेलैक, मुदा तेकर लाभ सरकारी नौकरी मे केकरो नहि भेटि पेलैक एखन-धरि। तेँ एहेन असंभव आ अव्यवहारिक भय सँ आक्रान्त ओ विचारक कतेको तरहक कुतर्क करैत विवाद केँ तुल दय अपना केँ पूर्ववत् दोस्रो दर्जाको नागरिक राखय लेल बेहाल अछि। शंका ईहो छैक जे एहेन राजनीति करबाक नाम पर ओकरा सब केँ यथास्थितिवादी राजनीतिक शक्ति सँ भत्ता आ सुविधा भेटैत छैक। आर तेँ एकटा खास समूह, आंगुर पर गानय योग्य व्यक्ति द्वारा अक्सर ई आशंका सब सोशल मीडिया आ संचारक्षेत्र मे कुतर्क करैत समय-समय पर प्रकाशित कयल जाइत अछि।

 

नीति-निर्माणक कार्य लेल विज्ञ आ वैज्ञानिकता मात्र जरूरी

 

हालांकि ईहो सच छैक जे विद्वानक कार्य, भाषा-वैज्ञानिकक कार्य आ नीति निर्माणक कार्य विज्ञ लोक द्वारा होयत, अतः एहि तरहक कुत्सित मानसिकता सँ काज करयवला लोक केवल अपना केँ पोल्हेबाक आ निर्दोष आम जनताक मोन मे अन्तर्विभाजनक बिया बाग करबाक लेल अपस्याँत रहैत अछि। राज्य केँ एहि सब तरहक अवैज्ञानिक बहस केँ कथमपि सन्दर्भित नहि कय वैज्ञानिक आधार पर अपन कार्य केँ निरन्तरता देबाक चाही, जाहि सँ भविष्यक सार्वभौमिकता केँ कोनो दुर्घटना सँ खतरा नहि रहतैक।

 

हरिः हरः!!