गौतम बाबूक शक्ति पूजा

कथा

– किरण प्रभा

गौतम बाबू क शक्ति पूजा

न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो, न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथा:॥ अहि प्रकारे गौतम बाबू पहिल दिन अपन शक्ति पूजा क विराम देलैन। पूजा समाप्तिक संगे कानियां केँ आवाज लगेलैथ, “कतय छी यै! मरि गेलौं की जिबैत छी! हमर पूजा समाप्त भेल फलहारि देब की माये स बतियैत रहब दिन भैर।” करुणा बेचारी बौआ क सुतेनाय छोड़ि दौड़ल अयली। पति केँ फलहार परसइत बजलीह, “यौ! हमर माय केर फोन आयल छल, ओ हमरा खोईंछ भरै लेल अष्टमी क नैहर बजेली आ कहली जे वैह नबका साड़ी कीनि लेने छथिन। हम बस सप्तमी क जा क आ दशमी क आबि जायब। आहाँ की कहैत छी?” बस फेर की, गौतम बाबू आगू क परसल थारी दूर फेकलैथ आ अपना प्रकृति अनुसारे चिचिया उठला “अहाँक एतेक हिम्मत कहिया सं भ गेल जे हमरा सं बिना पूछने निर्णय ल लेलौं। माँ! देखैत छिहिन न! तोरे जिद पर हम ई गंवार, बेकार, अभागिन, इन्टरपास मौगी सं विवाह कय केँ फँसि गेलहुँ। जँ बीए बाली सं विवाह करितहुँ त आइ ओ दू पैसा कमइयो क दीतय आ दू पाइ ज्ञानो होइतय। ई मुर्खाही क त नहिये ढंग क खेनाय बनबय अबैत छैक, नहिये घर सम्हारय अबैत छैक। भरल दुर्गा पूजा हम शक्ति क उपासना कय रहल छी आ ई नैहर जेती सखी – सहेली, माय – बाप करय लेल।” करुणा बेचारी छिरियाल फलक टुकरी बिछैत आँखि सँ नोरक बून्न आँचर सं दोसर हाथे पोछैत सोचय लगलीह, “हाँ! मिथिलांचल म त प्रायः एहिना शक्ति पूजा होइत अछि, एहि मे नया की अछि! हम सेहो शक्ति छी! सहनशीलता सेहो शक्तिये क रूप अछि।”