Search

गोपाल मोहन मिश्रक आधा दर्जन रचना

साहित्यः किछु कविता

– गोपाल मोहन मिश्र

१. जिंदगी एक रहस्य

जिबैत जिबैत जिंदगी नै पता कखनि जुआ भै गेल।
समझलहुं जेकरा आगि, एक फूंक में धुआँ भै गेल।
सभ किछु लगा दांव पर सभ किछु गेलहुं हम हारि।
मन रहल पाषाण सन, ठाढ़ बीच बाज़ारि।
गलत कौन सन बाज़ी, ग़लत कौन सन छल दांव।
कौन सबसs पुरान, सबसs गहींर, कौन सन छल घाव।
शायद किछु क़िस्मत छल खराब
वा प्रारब्ध में लिखल होअय हार।
पर भाग्य पर भरोसा कएने
केकर भेल उद्धार ।

जखनि तक जान अछि बाकी
जखनि तक आन अछि बाकी।
चलू एकटा बाज़ी आर खेली
चलू एकटा झोंका आर झेली।

२. प्रतिस्पर्धा

छोट पैघ गांव, कस्बा शहर में,
पाठशाला, विद्यालय आ महाविद्यालय में,
सरस्वती माँ के चरण में,
पवित्र ज्ञान केर गंगा में,
डुबकी लगाबs अबैत अनेकों प्रतिभागी,
थिरकैत शान सं, बजबैत ज्ञान केर बांसुरी,
हेरा जाइत छथि प्रतिस्पर्धा जगत में ।

मानलौं कखनो हँसबैत अछि ई जगत,
मानलौं कखनो कनबैत अछि ई जगत,
लेकिन जखन कखनो निराशा,
प्रतिभागी के हाथ लागल,
चट्टान सन थामैत अछि हाथ ई जगत ।

एतेक भीड़, एतेक भागदौड़,
किछु प्रतिभागी तs खसि जाइत,
किछु प्रतिभागी…

३. हम जानि गेलहुं

देर सं सही, ई सच हम जानि गेलहुं

हे जिनगी हम तोरा पहचानि गेलहुं ।

दs कs छीन लेनाइ तोहर पुरान आदत छौ

किछु मांगब नहि तोरा सं, सेहो आब ठानि लेलहुं

हे जिनगी हम तोरा पहचानि गेलहुं ।

कतहु धूप कतहु छाया, किछु क्लेश किछु दया …

४. हे माँ दुर्गा !

माँ मस्तक केर चंदन, माँ फूल के छथि बगिया।
माँ धरा सन विस्तारित, माँ छथि हम्मर दुनियाँ।
माँ चाँद सन शीतल, माँ मखमल सन छथि नरम।
माँ सृष्टि केर सरोकार, आ सभ सं पैघ धरम।
सीता सन सहनशील, माँ दुर्गा अवतरणी।
माता के श्रीचरण में, हम्मर अछि वैतरणी।

अहीं कर्म कराबी मैय्या, अहीं भाग्य बनाबी।

पूरा दुनियाँ अहींक महिमा, अहीं खेल रचाबी।

ब्रह्मा,विष्णु आर सदाशिव, सब में अहींक शक्ति माँ,

कखनो अहाँ गौरी, कखनो श्यामा, नित नव रूप बनाबी माँ।

५. पत्थर

आब जों भेंटत रस्ता में कतहुं,
तs पूछब ओकरा सं, किये तू कनै नहि छें ?
नै जानी कतेक चोट दैत छौ
दुनियाँ तोरा,
किये तू तैयो, हर चोट पर दर्द व्यक्त करै नहि छें ?
न अश्रु बहबैत छें तू, न खुशी में हंसै छें तू,
किये तू कोई एहसास, पर नैन भिंजबै नहि छें ?
हर कोई तोरा में अपन स्वार्थ तकैत छौ,
किये तू अप्पन स्वाभिमान, कखनो जगबै नहि छें ?
मानलहुं ई कि ई दुनियाँ बहुत पैघ छै,
मुदा अस्तित्व में तूहूँ, कोनो छोट नै छें ?
न तू शिकवा करैत छें, न शिकायत,
किये कोनो दर्द के, तों अपना हृदय सं लगबै नहि छें ?
या तs तू आइ तक कखनो जागल नहि छें,
या तs तू अप्पन खामोश हृदय लs कs, कखनो सूतल नहि छें ?

६. ज़िद

ज़िद अछि हमरा सफलता पबै के,
तोहर ज़िद छौ हमरा बेर-बेर हरबै के,
देखैत छी कोन सफल होइत अछि,
कोन अप्पन हौसला पहिने गवांबैत अछि ।

देखै छी जिंदगी कतेक बेर तू हरबैत छें,
कतेक बेर हमहूँ खसि कै सम्भलैत छी,
ओना धन्यवाद करैत छी तोरा,
जतेक बेर तू खसबैत छें,

किछु नया सिखबैत छें ।

सीख गेल छी हमहूँ एक सबक तोरा सं,
तोहर बेर-बेर हरौला सं,
जे किछु गवां कs तोरा पबैत अछि,
वैह जिद्दी मनुक्ख सफलता पबैत अछि ।

Related Articles