हे दैब – किरण प्रभाक मैथिली लघुकथा

मैथिली जिन्दाबाद पर नव-नव लेखिका केर रचनाक अम्बार - किरण प्रभा एहि मासक प्रवेशी लेखिका

लघुकथा

– किरण प्रभा

।।हे दैब।।

साँझक समय छल । फरीदा मौसी क हाथ म तरकारी बला छिट्टा । मोन उदास, बड़ उदास छलैन । ओना त हमरा जते याद अहि हुनका उदासे देखलों, मुदा आइ आँखि क कोण म पैनक किछ बूंदो देखलों त पाछु ध लेलौं । आंगन एली आ धम्म स बैस गेली, हमर माय पुछलनि – फरीदा ! की भेल? आई सब दिन सं बेसी उदास लागि रहल छी! फरीदा हमर माय क भरि पाँज पकड़ि क भोकरि क कानै लगलीह । हमर बा क विशेष जोर पर पैनक किछ बूँद कण्ठ तर जाय देलनि आ धीरे स बजली, “हमर मुन्सा आइ अपन फुफेरी बहिन स निकाह क लेलक” आर सिस्कै लगलीह। हमर माय खिसिया क जोर स बाजि उठ्लीह, “से किया? आहाँ किछ नै केलौं, इ विवाह रोकै लेल ?” फरीदा बजलीह, “हम असगर की करितोँ, नैहर मे आब के माय छल जे बेबी दाय अहाँ क नैहर में तरकारी बेचिते मरल, भाइ-बाप मदद करै स मना क देलक, कहलक जे दामाद छोड़तौ त हमे नै रखबौ ।” हमर माय विस्मित भ बजलीह जे किया फरीदा डॉक्टर स एक बेर चेकप करेनाय बेसी कठिन छल जे दोसर विवाह सं? फरीदा सिस्कैत अचानक मूर्छा गेलीह । जनानी क झुण्ड जुटि गेल । सौभाग्यवश रंजू दीदी जे रांची म गायनी डॉक्टर छलीह ओतय अपन नानी गाउँ आयल छलीह, तिनका बजायल गेल आ अपन स्तर सँ जाँच कय ओ कहलनि, “रिपोर्ट म त एक दु दिन लागत मुदा हमरा आभास भय रहल अछि जे फरीदा गर्भवती छथि” । इ सुनिते फरीदा होश म आबि गेलीह । हमर माय माथ पर हाथ राखि बजलैंन, “हे दैब! यैह घटना दू दिन पहिने घटा दितय त की होइत।”