संस्मरण
– स्नेहा प्रकाश ठाकुर
दुर्गा पूजा के खिस्सा
ओही दिन वाणी दीदी केर संस्मरण पढ़िकय हमरा सेहो अपन बहुत रास खिस्सा मोन पड़य लागल। एहि मे सँ किछु मैथिली जिन्दाबाद पर साझा कय रहल छी।
हमरा ओतय दुर्गा पूजा बहुत पैघ उत्सव होइत अछि। दुनू सांझ पूजा, आरती, पंचमी, अष्टमी और नवमी दिन बलिप्रदान, अष्टमी केँ गोसाउन घर और पातइर संग कुमारि भोजन। पूरा दिन किछ ने किछ लगले रहैत अछि। अखनो हम बहुत याद करइ छी और भरि दुर्गा पूजा हमर मोन गामहि में लागल रहैत अछि।
बात करब हम बचपन के। हमरा मोन नहि पड़ैत अछि जे हम कहिया सऽ पूजा कय रहल छी। बहुत बच्चा रही त हमर छोटी मम्मी हमरा सब भाइ बहिन केँ एक संगे बैसाकय केराक पात पर पूजा करबैत छलीह। हम सब दुर्गा चालीसा और हनुमान चालीसाक पाठ करैत रहौँ, लेकिन हम सब बस सात और आठ साल के रहौँ, पूजा स बेसी हमर सबके ध्यान प्रसाद पर रहैत छल। एक दिन हमर भाइ हमरा स पहिले पूजा क लेलथि और जाय लगलथि। हम हनुमान चालीसा पढ़ि रहल छलहुँ, “छुटहि बन्दि महासुख होई” और चूंकि हमर पुरा ध्यान हमर भाइ पर रहय, हम पाठ केलहुँ, “छुटहि बन्धु महा दुःख होई”, ओही दिन और आइ के दिन सब हमरा से बात मोन पाड़िकय खौंझाबय के मौका नहि छोड़ैत छथि। आब त हम व्रत और पूजा सब पुरा तन्मयता स करैत छी, और अपन बच्चा सब केँ सेहो सिखाबय के कोशिश करैत छी।
और दोसर एक घटना जहन हम कनि पैघ रहौँ। हमरा भोर मे उठय मे बड़ा दिक्कत होइत छल जे एखनहुँ तक अछि… और हमर पापा बहुत भोरे उठि जाइत छथि। ओ भोरे उठिकय भजन बजा केँ हमरा सबकेँ उठाब लगैत छलाह। कलशस्थापनक दिन अहिना ओ उठेला। हम उठलौं और पानिक जग लय केँ अपना मोने पानि आँगन मे फेंकलो, लेकिन ओही दिन ओहिमे दुध रहे जे कियो दय गेल रहैक। आब त हमर प्राण सन्न भऽ गेल। लेकिन सब हँसय लागल जे तूँ त भगवती केर स्वागत मे दूधे सँ आँगन निप देलहीन और हम बचि गेलहुँ। एहन अनेको प्रकरण जे स्वयं संग घटित भेल छल और कतेको रास संस्मरण अछि जे अखनो हमरा हर दुर्गा पूजा मे याद अबैत रहैत अछि।