लघुकथा
– रूबी झा
राम नारायण बाबूक विवाह भेला पाँच वर्ष भय गेल छलैन्ह, लेकिन एखन धरि कोनो संतति नहि भेल छलैन्ह। गाम-समाज केर लोक दिन-राति हुनकर माय केँ कहैय छलखिन्ह जे अपन बेटाक दोसर विवाह करा दियौन, ई पुतोहु तँ अहाँक बाँझ छथि, हिनका सँ वंश केँ वारिस नहि होयत आर अहाँक वंश एतहि समाप्त भय जायत, अहाँक पुरुखाक नाम समाप्त भय जायत। एक दिन हुनक (राम नारायणक) माय सोचलीह जे लोक सब ठीके कहैया आर चट मंगनी पट ब्याह केर घोषणा कय देलीह। बस देरी कथी के! कन्यागत सब हुनकर दलान पर खूब रास आबय लगलथि। कियैक तँ दहेज जे नहि लगितन्हि, आर बहुत बाप-भाय केँ त बेटी एखनहुँ नाकक पोटा समान होइत छन्हि जे कखन झारि ओकरा बाहर फेकि देता। आर ई बात बहुत पहिनहियेक अछि, ओहि समय में दुइ-चारिटा विवाह केनाय त पैघ लोकक मिथिला में शान मानल जाएत छलैक। खैर…! एकटा कन्यागत संग अपन बेटाक भजा लेलीह हुनक माय, आखिर वंश वाली बात जे रहनि। लगन एलैक। विवाह खूब धूमधाम सँ भेलैन्ह। सावित्री (पहिल कनियाँ) सँ कहल गेलैन्ह अपन पेटी सँ निकालि गहना आ बनारसी साड़ी सब दियौन, सांठ जेतैक। ओ चुपचाप दय देलीह। नहि जे दीतथिन त घरहु में रहनाय आफदे न भय जैतैन्ह। आस-पड़ोसक पुरूष सब खूब खूश, आखिर नीक-निकुत खाय लेल जे बरियाती में भेटतैन्ह। मैथिल के तँ सारधार पेटे, आ फेर ओहि समय में खाय-पीबय के अभावो त रहैत छलैक गाम-घर में, नीक-निकुत खाय लेल सभक मोन लोहछल रहैत छलैक आर बरियातीक अवसर त बुझू चिर-प्रतिक्षीत अवसर रहैत छलैक सभक लेल। लोक सब केँ काजे-तिहारे नीक-निकुत भेटैय छल तहिया। खैर..! विवाहक दिन आयल सब लियौन-हकार वाली एलीह। कर-कुटुम्ब सब सेहो एलाह। नहा-धो राम नारायण बाबू तैयार भेलाह, सावित्री केँ कहल गेलैन्ह विवाह वला सिल्कक कुर्ता, घूनेस लागल पाग बक्सा में सँ निकालि दियौन। सावित्री सब ओरियान मुँह बंद कय केलीह, गीत-नाद भेल, वर-वरियाती विदा भय चलि गेलाह। ओकरा बाद सावित्री अपन घरक केवाड़ बंद कय खूब सिसैक-सिसैककय कनलीह, हाक पारिकय कनिताइथ तँ घर सँ बाहर धरि लोक कहितनि, “देखियौक मौगी केँ, शुभ काल में अशुभ कय रहल छैक”। लेकिन सावित्री लेल आय के दिन सब सँ बेसी अशुभ रहनि। आ जाहि घर में पाँच साल सँ रहैत रहैथि, दुरागमन कय क एलीह तहिये सँ ओहो घर में सँ हिनका दोसरा घर जे कोठिघारा रहैय ताहि में रहय के आदेश भेटि चुकल रहैन्ह। हम समस्त पाठक जन सँ पूछैत छी कि ई उचित जे काज राम नारायण बाबूक माय केलखिन्ह? अगर पुतोहु केर जगह हुनकर बेटा बाँझ रहितथिन्ह तँ कि ओ अपन पुतोहु केर विवाह करा दीतथिन्ह दोसर? या सावित्रीक माय-बाप अगर दोसर विवाहक बारे में सोचितथिन्ह तँ की ई पुरुषवादी समाज एहि बातक स्वीकृति दीतैक? ई सोच कियैक, दू रंगक व्यवहार कियैक? कहय लेल हम (नारी) देवी छी आर हमरा लेल समाज केर ई दोहरा रूप कियैक?