लिखनाइ आ लेखक भेनाइ दुइ अलग प्रक्रिया थिक, मैथिली लिखनिहार लेल किछु सुझाव

किछु सुझाव

– अजित आजाद

लिखनाइ आ लेखक भेनाइ, दुनू अलग-अलग प्रक्रिया थिक।

शुद्धि-अशुद्धिक चिंता कयने बिना अरबो लोक लिखि रहल छथि मुदा ओ लेखक नहि छथि। मोनक बात अथवा विचार लिखबा काल अहाँ जेना बजैत छी, तेना लिखू। गाम-घर मे अधिसंख्य लोक अपन परिचित केँ चिट्ठी-पुर्जी कोना लिखैत अछि, गौर करबै। एहि मे शुद्धिक विचार गौण रहैत अछि। मुदा लेखक होयबाक लेल शुद्धि-अशुद्धिक विचार आवश्यक अछि। अहाँ समूह केँ प्रभावित करबाक लेल लिखैत छी त’ समूहक अपेक्षा राखय पड़त। एतय इहो बात ध्यान राखी जे केवल शुद्ध-शुद्ध बात लिखले सँ अहाँ लेखक नहि मानल जायब। विषय, कथ्य, शिल्प, शैली, विचार, सम्प्रेषणीयता आदि सेहो अहाँक लेखन मे रहबाक चाही। नवता त’ चाहबे करी।

तखन मुदा…

नव लेखक लेल तत्काल ई कहब जे शुद्धि जरूरी अछि किन्तु ई अध्ययन आ अभ्यास सँ आओत आ एहि मे समय लागत। ताबत लिखनाइ बंद नहि करी। हाँ, पोस्ट करबा सँ पहिने कोनो विज्ञ सँ देखबा ली। पत्रिका सभ मे अहाँक ई काज प्रूफ रीडर अथवा संपादक क’ दैत छथि। तेँ विशेष चिन्ता करबाक आवश्यकता नहि अछि। अतः खूब लिखू, नीक-नीक बात लिखू आ चिंतामुक्त भ’ क’ लिखू।

विज्ञ अथवा संपादक लोकनि अहाँक लेखन मे जे शब्द सभ शुद्ध कयलनि, कोनो अन्य प्रकारक सुधार कयलनि, तकर अख़्यास करी, अभ्यास करी। कोनो प्रकारक शंका भेला पर शुद्ध मोन सँ हुनका लोकनि सँ जिज्ञासा करी। गेंग नहि जोती।

अहाँ अपना मे सुधार होइत देखब।

लेखक बनब एकटा नमहर प्रक्रिया थिक। केवल किताब छपा लेला मात्र सँ कियो लेखक भ’ जायत से जरूरी नहि अछि। बिना किताब केँ सेहो अहाँ लेखक भ’ सकैत छी। अहाँ की लिखैत छी, कोना लिखैत छी, कोन उद्देश्य सँ लिखैत छी, ई मायने रखैत अछि।

तेँ हतोत्साहित नहि। प्रयास करी। सभक सहयोग भेटत।

आइ लेखक लोकनि पर अनेक प्रकारक दायित्व छनि। भाषाक रक्षा, भाषाक विकास सेहो एकटा प्रमुख दायित्व थिक जकरा स्वीकार करहि पड़तनि। लेखक लोकनि भाषाक सेवक सेहो होइत छथि, ई सदैव ध्यान राखक चाही।