१२ सितम्बर २०१९. मैथिली जिन्दाबाद!!
मांगैन खबास केर स्मृति गान राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली मे
आइ सँ करीब ५ वर्ष पूर्व प्रभात खबर केर सहरसा ब्युरो चीफ श्री कन्हैया जी मार्फत एहि अखबारक स्थानीय प्रतिनिधिक लिखल एकटा समाचार पढने रही जे मिथिलाक लोकविभूति ‘मांगैन खबास’ केर सम्बन्ध मे चर्चा कएने छल। मैथिली भाषा आ मिथिला सभ्यताक विभिन्न अभियान मे स्वयं संलग्न रहबाक कारण ओहि समाचारक सारतत्त्व सँ स्वयं केँ एतेक बेसी प्रभावित पेलहुँ जे ओत्तहि आ तखनहि एकटा संकल्प लेलहुँ जे अपना सँ जतेक भऽ सकत ततेक लोकविभूति लोकनिक परिचय संकलन करब।
के छलाह मांगैन खबास
उपरोक्त समाचार मे पढला सँ ज्ञात भेल गोटेक महत्वपूर्ण बात जे सीखय लेल भेटल से एना अछिः
१. समूचा भारत मे मिथिलाक्षेत्र २ गोट संगीत परम्परा काफी लोकप्रिय भेल – दरभंगाक अमता घराना आ दोसर सहरसाक पंचगछिया घराना।
२. पंचगछिया ड्योढीक जमीन्दार (राजा) लक्ष्मी नारायण सिंह संगीतक महान प्रेमी आ ज्ञाता छलाह, जे स्वयं एक दिग्गज पखवज वादक सेहो छलाह आर हिनका संगीत महीन-महीन तत्त्व-तथ्यक गूढ ज्ञान छलन्हि।
३. राजा लक्ष्मी नारायण सिंहक एक प्रिय सेवक रहथि मांगैन खबास। खबास शब्द सँ उच्च व्यक्तित्व आ कुल-मूलक लोक केर खास सेवक रहल व्यक्तिक परिचय होइत छैक।
४. मांगैन खबास लोकगीत एवं विद्यापतिक बहुतो रास लोकप्रिय गीत केँ अपन धुन आ पूर्ण भाव मे डूबिकय थारी पर थाप दैत गबैत रहथि से बात राजा केँ अन्चोके बुझय मे एलनि आर तकर बाद वैह अपना सोझाँ सेहो मांगैन सँ गीत गेबाक अनुरोध कयलनि आ काफी प्रभावित भेलाह।
५. संगीतक सूक्ष्मदर्शी राजा लक्ष्मी नारायण जखन सेवक मांगैन केर विलक्षण प्रतिभा सँ भिज्ञ भेलथि तकर बाद राज्यक तरफ सँ हुनका लेल विधिवत् संगीतक प्रशिक्षण दियेबाक व्यवस्था कयल गेलनि।
६. एहि तरहें मांगैन खबास ध्रुपद आ ठुमरीक प्रसिद्ध ज्ञाता बनि गेलाह। परम्परानुसार पंचगछिया राज्य दिश सँ आयोजित विशाल स्तरक सांगीतिक आयोजन मे राजा लक्ष्मीनारायणक आदेश पर आब मांगैन प्रस्तुत भेलाह आर हुनकर प्रस्तुतिक उच्च मूल्यांकन सौंसे देश-परदेश सँ पधारल संगीतज्ञ लोकनि द्वारा कयल गेल।
७. एकटा उच्च कुलक कुलभूषण राजा लक्ष्मी नारायण सिंह केर एहि तरहक कृपा सँ एक साधारण खबास आब राज्यक नवरत्न बनि गेलथि आर हुनकर नाम-यश-कीर्ति सौंसे राष्ट्र-परराष्ट्र धरि पसरि गेल।
निष्कर्षतः ओ आलेख ईहो समझ बँटलक जे कालान्तर मे पंचगछिया घरानाक अवसान भेल। तकर संगहि मांगैन खबासक नाम सेहो विस्मृति मे चलि गेल। मांगैनक अन्तिम शिष्य रघु झा सेहो आब दुनिया मे नहि रहलाह। मांगैन खबासक सम्बन्ध मे नौवीं कक्षाक पाठ्यक्रम मे साहित्यक पुस्तक ‘वर्णिका’ मे कुल १० पृष्ठ मे वर्णित ‘बिहार की संगीत साधना’ मे मांगैन केर बारे मे इक पाँति ‘मांगैन खबास सहरसा के प्रसिद्ध संगीत ज्ञाता थे’ कहल गेल अछि। स्वयं मांगैन खबास केर नाम पर बनायल गेल ब्लाग-पेज “मांगैन खबास ब्लाग स्पाट डौट कौम” पर सेहो हिनकर नामक चर्चा मात्र भेटैत अछि। प्रो. डा. अशोक सिंह अपन पोथी ‘कोसी परिसर में साहित्य साधना’ तथा गिरिधर श्रीवास्तव पुटीश केर किताब मिथिलांचल का गौरव कोसी संगीत घराना में संगीतकार मांगैन खबास केर चर्चा कयल गेल अछि।
संगहि एकटा आरो गहींर निष्कर्ष आ सन्देश जे ओहि आलेख सँ भेटल रहय से छल विद्यापतिक नाम पर राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय आयोजन कयल जाइछ – मुदा सामान्य विभूति केँ हम सब ओहि तरहें स्मरण मे नहि अनैत छियनि। ओ आलेख विशेष रूप सँ हमरा सभ समान अभियानी जे अपन मातृभाषाक संग-संग एकटा अलौकिक आ सुसभ्य पहिचान जनक-जानकी सँ प्रचलित “मैथिल-मैथिली” केर आवाज बुलन्द करयवला लोक छी तेकरा लेल आरो विशेष संवाद संचरण केलक। ओ कहैत छल जे आइ मैथिली-मिथिला प्रति जे सामान्य जनमानस मे विकर्षण अथवा उदासीनताक प्रवृत्ति छैक तेकरा लेल जिम्मेवार हमहीं सब छी। यदि मैथिली-मिथिलाक भविष्य केँ सनातनजिवी रखबाक सदिच्छा अछि तँ विद्यापतिक संग-संग सामान्य लोकविभूति लोकनिक स्मृति-गान सेहो करय पड़त।
हालांकि सामान्य लोकविभूति केँ मिथिला मे लोकदेवता मानि विशेष पूजा-अर्चना तक देबाक एकटा अतिविशिष्ट परम्परा डेगे-डेगे भेटैत अछि, जाहि मे कतेको रास नाम विभिन्न क्षेत्र मे अभरैत अछि, सलहेशक गहबर हो आ कि दीना-भदरी केर, कारू खिरहर बाबाक स्थान हो आ कि विभिन्न गोसैयाँ आ देवी केर, जकर आजीवन योगदान एहि मिथिला समाज प्रति गम्भीर आ महत्वपूर्ण भेल अछि ओ सब स्मृति टा मे नहि अपितु पूजित सेहो छथि। लेकिन बिसरल वैह लोक जाइत अछि जेकर सम्पर्क आम जनमानस सँ अनेको कारण टूटि जाइत छैक। कला आ मनोरंजनक क्षेत्र केँ मिथिला मे आम बात मानल जाइछ, कारण घरे-घर मे गीतगाइन आ डेगे-डेगे पर नाच-गानाक कतेको चलायमान परम्परा सँ लोक अपन स्मृति निर्माण करैत अछि। आइ “डीजे केर धुन आ फूहड़-अश्लील गीत” केर समाजिकीकरण जाहि गति सँ भऽ रहल अछि ओ मिथिलाक लोकमानसक दरिद्रता केँ झलकबैत अछि। मुदा गीत-संगीत केर समझ रखनिहार लेल ई उच्च मूल्यक तथ्य आ व्यक्तिक महत्व सदैव बनल रहत। एकर पुष्टि उपरोक्त दुइ लेखक द्वारा अपन कीर्ति पुस्तक मे उल्लेख सँ भेटैत अछि जे मांगैन खबास सेहो किताबक पन्ना मे अमिट रूप सँ उल्लेखित छथि जे सदा-सनातन याद कयल जायत।
राष्ट्रीय स्तर पर स्मृतिगान मे “मांगैन खबास”
आगामी १४ सितम्बर भारतक राजधानी दिल्ली मे मैथिली भोजपुरी अकादमीक संग म्यूजिक मिथिला फाउन्डेशन दिल्ली द्वारा “तिरहुत संगीत महोत्सव २०१९” केर महत्वपूर्ण आयोजन होमय जा रहल अछि। ई आयोजन विशेष रूप सँ मांगैन खबास केर स्मृति-गान लेल कयल जा रहल अछि। उपरोक्त चर्चित आलेख मे जाहि अभियान केर लक्षित ५ वर्ष पूर्व कयल गेल, से साकार रूप मे प्रस्तुत होमय जा रहल अछि, सेहो राष्ट्रीय स्तर पर। एकर परिकल्पक किसलय कृष्ण संग आयोजक एवं विशेष भूमिका निर्वाह करनिहार संजीव कश्यप तथा संयोजक रामबाबू सिंह धन्यवादक पात्र छथि। निस्सन्देह धन्यवादक पात्र छथि मैथिली भोजपुरी अकादमीक उपाध्यक्ष श्री नीरज पाठक जे लगातार एक सँ बढिकय एक महत्वपूर्ण आयोजन सँ भाषा आ संस्कृतिक प्रसंग मे मैथिली-मिथिलाक झंडा भारतक राजधानी दिल्ली मे फहरौलनि अछि। जानकीभाव मे आकंठ रहल हमरा समान अभियानी हिनका लोकनि लेल सदैव विशेष प्रार्थना करैत रहल छी, आगुओ करब।
एहि आयोजन मे भारत आ नेपाल केर मिथिलाक्षेत्रक एक सँ बढिकय एक प्रसिद्ध गीत-संगीत केर माँजल कलाकार लोकनिक जमघट होमय जा रहल अछि। एहि अवसर पर “मांगैन स्मृति” शीर्षक मे एकटा स्मारिकाक प्रकाशन होयत। एहि समारोह मे स्वयं हमहुँ आमंत्रित छी, मुदा विराटनगरक स्थानीय आयोजन ओही दिन पड़ि जेबाक कारण उपस्थिति सँ वंचित रहब। तथापि एतेक पैघ महत्वक आयोजन मे हमरा आत्मीय उपस्थिति जरूर रहत आर संगहि एहि आलेखक माध्यम सँ एहि ऐतिहासिक काज मे अपन लुक्खी-योगदान समर्पित कय रहल छी। विशेष शुभे हो शुभे!! एकटा भ्रान्ति जे चारूकात जानि-बुझिकय किछु लोक पसारैत अछि जे मैथिली-मिथिला मात्र उच्चवर्गीय समुदायक आरक्षित भाषा-सभ्यताक विषय थिक, तेकरा लेल ई आयोजन एकटा जोरदार थापड़ सिद्ध होयत सेहो कहय मे हमरा कोनो हिचकिचाहट नहि भऽ रहल अछि। कला आ विद्याक साधना जे कियो करता ओ निश्चित अमरता हासिल करता। कहबी गलत नहि छैक – “त्याग सँ बनायल हरेक कीर्ति अमर होइछ।” ॐ तत्सत् – बस अपन त्याग सँ कीर्ति निर्माणक दिशा मे हम सब संलग्न रही। शेष जानकी स्वयं जनती!!
हरिः हरः!!