सफल आ महान व्यक्ति सोहनक कथा
(नैतिक कथा – करियर निर्माण मे लागल छात्र-छात्रा लेल उपयोगी)
धियापुताक हाथ पर माँ-बाबू अथवा जेठ-श्रेष्ठ चारि-आना, आठ-आना देल करैत छल जाहि सँ पाँच पैसाक एकटा बैलून, दोसर पँच-पैसाही सँ पाँच गो लाय (मुरहीक लाय), तहिना अन्य १५ पैसाक कतेको रास धियापुताक मनोरंजन लायक चीज-वस्तु कीनिकय मेला घुमनाय भऽ जाइत छल। ताहि समय मे देखी जे धियापुताक मोन सदिखन लालच सँ भरल जेठ-श्रेष्ठक विवेक दिश टकध्यान लगौने रहैत छल… आइ फल्लाँ काका बाहर सँ एला, ओ किछु देता, काल्हि फल्लाँ भैया सेहो किछु देबाक संभावना अछि, एवम् प्रकारेण बीति जाइत छल २ दिन कृष्णाष्टमी त १० दिनक दुर्गा पूजा। रंग-बिरंगक खेलौना, बैलून, झिल्ली-कचड़ी, जिलेबी, मिठाई – यैह सब होइत छल धियापुताक खरीददारी।
सोहनक पिता गामहि मे रहैत छलाह आ साधारण व्यवसाय कयल करथि। हुनकर काज छलन्हि साप्ताहिक हाट पर किसान परिवारक लोकक अनाज बाजार भाव सँ किछु कम दाम पर नगद कीनि फेर ओकरा सोहनक माय द्वारा कुटि-छाँटि अलग-अलग दर्जाक अनाजक पैकिंग बनाकय बाजार मे बेचि देनाय। एहि तरहें किछु मुनाफा जे भेल ताहि सँ परिवार चलल करैत छल। सोहन केँ एना बुझाइत छलैक जे हमर पिता बहुत कर्मठ आ सक्षम व्यवसायी थिकाह। ओकरा कहियो कोनो वस्तुक कमी नहि भेलैक। सोहन सेहो आने-आने बच्चा जेकाँ कहियो माय सँ १० पैसा, चवन्नी या अठन्नी लैत छल त कहियो बाबू सँ, ओकर घर मे आर कियो नहि छलैक जे दिनहि पाछाँ ओकरा किछु दितैक। माय आ बाबू सँ ओ एक बेर किछु लय लियए त दोबारा फेर मंगबाक हिम्मत नहि होइक, मुदा आर ओकरा सँ सम्पन्न परिवारक बच्चा सब केँ देखय जे डेली मेला घुमय जाइत अछि त ओहो माय लग मुंह लटकाकय ठाढ भऽ जायल करय… माय बुझि जाथिन आ फेर कोनो न कोनो उपाय सँ किछु पाइ ओकरा हाथ पर मेला घूमय दय देल करथिन। ई छलय सोहनक बचपन!
सोहन आब पैघ भऽ गेल छल। गाम सँ शहर जेबाक लेल, कालेज मे पढाई करबाक लेल सेहो आने संगी-साथी जेकाँ ओहो आतुर रहय। ओकरा सेहो ई भान रहैक जे एकटा बिजनेसमैन के बेटा छी, कोनो कमी थोड़े न छैक… जे कालेज सब सँ टौप छैक ओहि मे ओहो पढत। मैट्रिक मे मार्क्स सेहो नीक अनने छल – मुदा पिता केँ कहियो चर्चा करैत नहि देखय जे ओ कतय पढत, कि पढत, केना पढत। ओ कतेको बेर पिताक मुंह निहारय, हुनका सुनाबय जे ओकर फल्लाँ संगी चलि गेल, ओकर एडमिशन फल्लाँ कालेज मे भेलैक… आदि। मुदा पिताक मुंह सँ सिर्फ ‘हँ-हुँ’ टा सुनय। पिता ई नहि बाजथि जे सोहन कतय एडमिशन लेत। सोहन केर दिमाग पर बड़ा विचित्र असर पड़लैक, ओ झल्लाकय बाजल जे “अहाँ खाली हँ-हुँ कय रहल छी बाबू, हमर कि होयत से कियैक नहि बजैत छी?” पिता सेहो ओकरा पर झपटैत कहलखिन, “अहाँ कोनो बड़का पाइवलाक बच्चा नहि छी। शहर मे पढय लेल महीना मे कम सँ कम पाँच सौ टका चाही। अहाँक पिता ओतेक सम्पन्न नहि छथि जे एतेक टका दय सकता। अहाँ गामहि मे रहब। एतहि सँ पढब।” सोहन केँ ई बुझय मे आबि गेलैक जे पिताक क्रोध नाजायज नहि अछि। यदि हुनका पास पैसा रहैत त मेला घूमय बेर मे सेहो प्रति दिन खुशी सँ ओ अपन बच्चाक खुशी लेल किछु न किछु जरूर दीतथि। पिताक मेहनति आ आमदनी सँ परिवार चलैत छल वैह बड पैघ बात छल। सोहन पिताक आगाँ सिर झुकाकय कहलकनि, “हँ, बाबू! हम गामहि मे पढब।”
कथा केँ एतय विराम दय रहल छी ई सूचना दैत जे सोहन आइ एकटा सफल आ महान व्यक्तित्व बनि गेल अछि। ओ अपन जीवनक सफलताक सारा श्रेय अपन पिताक उक्त पंक्ति केँ दैत अछि जे ओकरा आत्मनिर्णय करैत अपना आप केँ ठाढ करय मे मदति केलकैक। सोहनक सफलताक कथा लेल दोसर लेख बनैत अछि, से फेर कहियो जरूर लिखब। आजुक ई कथा एहेन लाखों धियापुता लेल लिखल जे अपन माता-पिताक स्थिति केँ बुझैत अपना आप केँ स्थापित करबाक दिशा मे प्रतिबद्ध बनय। सोहन जँ शुरुए सँ अपन माय-बाबूक सोझाँ आर बच्चा जेकाँ कनितय-बजितय त शायद ओ एतेक सफल आ महान व्यक्ति कदापि नहि बनि सकितय।
हरिः हरः!!