मिथिलाः उत्पत्ति एवं नाम
– डा. उपेन्द्र ठाकुर
(निरन्तरता मे… क्रमशः सँ आगू)
एहि भूमिक उद्भवक एकटा रोचक कथा विष्णुपुराण मे भेटैछ जकर अनुसरण श्रीमद्भागवत कयलक अछि। एहि विवरणक अनुसार इक्ष्वाकुक पुत्र निमि सहस्रवर्षव्यापी यज्ञ प्रारम्भ कयलनि तथा वसिष्ठकेँ आचार्य बनबा लेल कहलथिन। वसिष्ठ उत्तर देलथिन जे “अहाँ पाँच सय वर्ष धरि प्रतीक्षा करू, कारण इन्द्र पाँच सय वर्ष धरि चल’बला यज्ञ आरम्भ कयलनि अछि, जाहि मे ओ हमरहि आचार्य पदक भार देलनि अछि।” एहि पर निमि कोनो उत्तर नहि देलथिन आ वसिष्ठ ‘मौनं स्वीकृति लक्षणम्’ मानि ओहि ठामसँ चलि देलनि। एहि बीच निमि गौतम तथा अन्य ऋषि सबकेँ वरण क’ अपन यज्ञ आरम्भ कय देलनि। वसिष्ठ शीघ्र यज्ञ समाप्त कराकेँ जखन निमिक ओतय अयला तँ गौतम तथा अन्य व्यक्ति सबकेँ नियोजित देखि क्रोधसँ निमिकेँ शाप द’ देलथिन जे “अहाँ आब एहि भौतिक शरीरमे नहि रहब”। निमि सेहो बदलामे वसिष्ठकेँ शाप द’ देलथिन जकर फलस्वरूप दुनू गोटे अपन भौतिक शरीर त्यागि देलनि। वृहद् विष्णुपुराणक मिथिला माहात्म्य सँ ज्ञात होइत अछि जे गौतम, याज्ञवल्क्य, भृगु, वामदेव, उशित, कण्व, अगस्त्य, भारद्वाज, बाल्मीकि तथा अन्य ऋषि लोकनि मिथिलामे स्थित गंगासागरपर एकत्र भेलाह तथा ओकर पवित्र जलसँ मृत शरीरकेँ स्नान कराक’ मथलनि। ओहि शरीरसँ एकटा भास्वर बालक उत्पन्न कयल गेल जकर नाम “मिथि” राखल गेल।
किन्तु पाणिनी मिथिला शब्दक व्युत्पत्ति किछु भिन्न रूपक देलनि अछि। हुनक “मिथिलादयश्च” सूत्र तथा ओहि सूत्रक उदाहरणक रूपमे प्रस्तुत कयल गेल मिथिला शब्दक व्याख्याक अनुसार जतय शत्रु सभक उन्मूलन कयल जाय ओ देश थिक “मिथिला”। मिथिलाक ई व्युत्पत्ति विश्वसनीय बुझाइत अछि। एहि व्युत्पत्तिक विश्वसनीयताक अनेक प्रमाण अछि। प्रथमतः मैथिल लोकनिक वीर योद्धा होयबाक अनेक साक्ष्य अछि। रामायणक अनुसार शिरध्वज जनक सांकाश्यक राजाकेँ पराजित कयने छलाह तथा मैथिल लोकनि महाभारत युद्ध मे कौरवक दिशसँ भाग लेने छलाह। आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्रमे मैथिल लोकनिक उत्कर्ष सेहो एहि विशिष्ट नामकरणक आधार छल। द्वितीय, निमि अयोध्याक सौर राजवंशक संस्थापक राजा इक्ष्वाकुक पुत्र छलाह। निमिक एक भाइ विशाला में बसि वैशाली राज्यक स्थापना कयलनि तथा दोसर भाइ मिथिलाक स्थापना क’ अयोध्ये सन विशाल राजधानी बनओलनि। समस्त आर्यावर्तकेँ अपन नाम देनिहार महान् भारतजन जेकाँ मैथिल लोकनि सेहो वीर छलाह जे अपन कर्मभूमिकेँ अपन नाम देलथिन। मिथिला नामक अतिरिक्त एहि भूमिक विदेह, तीरभुक्ति, तपोभूमि, शाम्भवी, सुवर्ण कानन, मिन्तिति, बैजयन्ती (जनकपुर), आदि अनेक नाम छैक, किन्तु एहि समस्त नाममे मिथिला, विदेह आ तीरभूक्ति परम्परा तथा इतिहास एहि दुनू मे सुपरिचित अछि। विदेह नाम हमरा लोकनिकेँ सर्वप्रथम शतपथ ब्राह्मणमे उपलब्ध होइछ।
तीरभुक्ति वा तिरहुत बादक नाम थिक। मिथिला नाम तीरभुक्ति वा तिरहुत सँ प्राचीन अछि। बाल्मीकि-रामायण अथवा अन्य प्राचीन साहित्यमे तीरभुक्ति नाम नहि भेटैत अछि। सर्वप्रथम पुरुषोत्तम देवक “त्रिकाण्डशेष”मे उक्त नाम उपलब्ध होइत अछि। एकर वर्णन गंगा, गंडकी तथा कौशिकी एहि तीनू नदीक तटपर स्थित स्थानक रूपमे कयल गेल अछि। एहि तरहें प्रतीत होइत अछि जे तीरभुक्ति स्पष्टतः “तीर तथा भुक्ति” सँ व्युत्पन्न अछि। हरप्रसाद शास्त्रीक ई मान्यता समुचित छन्हि जे तीरभुक्ति गंगाक तटपर बसल प्रदेशक बोधक थिक तथा भुक्तिक प्रयोग एगारहम वा बारहम ई. सन् मे प्रान्तक हेतु कयल गेल छल। जेनरल अनिंघमक मतानुसार उक्त शब्द छोटकी गंडक तथा बागमती नदीक घाटीमे स्थित भूमिक निर्देशक थिक। मिथिलाक समस्त प्रमुख स्थान छोटकी गंडकक तटपर बसल पाओल जाइत अछि जे सप्तम ई. सन् मे महा-गंडकक स्रोत रहल होयत।
हरप्रसाद शास्त्रीक धारणा छन्हि जे “भुक्ति” शब्द बहुत प्राचीन नहि अछि। एकर प्रयोग सर्वप्रथम बारहम ई. सन् मे सेन अभिलेख सभमे प्रदेशक हेतु कयल गेल अछि। हुनकर मतानुसार एहि शब्दक प्रथम प्रयोग तखन भेल जखन बंगालक सेन राजा लोकनि एहि प्रदेशकेँ जीत एतय अनेक ब्राह्मण लोकनिकेँ बसओलनि। किन्तु, ई ज्ञातव्य अछि जे “भोगपति” नाम प्रान्तपालक हेतु पूर्ण प्रचलित अछि तथा प्रदेशक हेतु भुक्तिक प्र्योग बंगालक सेनशासक लोकनिक कालसँ प्राचीनतर अछि। वस्तुतः तीरभुक्ति नाम बहुत प्राचीन बुझाइत अछि, कारण १९०३-०४ ई. मे बसाढ़ (वैशाली) मे कयल गेल उत्खननमे प्रचुर संख्यामे ख्रीष्टाब्द चतुर्थ शतककेर (गुप्तकालक) मुद्रा पाओल गेल अछि जाहिपर तीरभुक्तिक प्रभारी पदाधिकारी सभकेँ सम्बोधित करबालेल कतिपय अक्षर अंकित अछि। एकर अतिरिक्त एकटा सामान्य “तीर” शब्द अछि जे संभवतः कोनो स्थान विशेष छल जकरासँ तीरभुक्ति अथवा तीरक प्रदेश ई नाम व्युत्पादित भेल अछि (तीरभुक्तो वैशाली तारा, तिरहुतमे वैशालीक तारा)। एहि साक्ष्य सभक आधारपर “तीरभुक्ति” शब्दकेँ निर्विवाद रूप सँ प्राचीन मानल जा सकैत अछि।
हरिः हरः!!