लघुकथा
– रूबी झा
किरण बेर-बेर अपन माता-पिता सँ कहि रहल छलखिन्ह, माँ-बाबूजी बौआ केँ लऽ जेबैइ तँ लँ जइयौ, लेकिन अहाँ सब राखि नहि पेबइ । असल मे किरण केर माँ-बाबूजी किरण ओतय गेल रहथिन्ह, गुड्डु (किरण केर बेटा)क गर्मी छुट्टी रहनि। आ गुड्डु अपन ईच्छा जतेलखिन्ह मात्रिक जाय केँ नाना-नानीक संग। गुड्डु सात वर्षक छलाथि। नाना-नानी बहुत प्रसन्न भऽ गेलथि अपना संग दौभीत्र (गुड्डु) केँ लऽ जाय लेल। ताबे में किरण कहैय लगली अपन माँ-बाबूजी सँ जे एकर आदति अलग ढंगक छैक, सब- किछु खाय नहि छैक, हरियर तरकारी तँ छुबितो नहि छैक, दूध बिना होरलिक्स के नहि पिबैत छैक, एको रत्ती छाल्ही मुँह में चलि जाय छैक तँ थू-थू करैत थुकरि दैत छैक। अपना हाथे तँ कखनो खायतो नहि छैक।बिना खिस्सा-पिहानी सुनने कहियो सुतबो नहि करैत छैक। गाम में गर्मी और मच्छर सेहो बहुत रहैत छैक। माँ-बाबूजी! अहाँ सब गुड्डु केँ नहि लऽ जइयौ, नहि सम्हारि पेबैक एकरा, दूए दिन में परेशान कय देत। किरण के बाबूजी अपन बेटीक सबटा बात एकटक लगाकय सुनलनि आ गम्भीर भऽ बजला जे कुनू बात नहि, जाय दहिन, तेहने हेतैक त हम दऽ जेबैक नहि मोन लगतैक त। मुदा अन्तो-अन्त धरि अनेकन बहन्ना बनबैत किरण गुड्डु केँ नाना-नानी संगे नहि जाय देलखिन्ह। दुनू प्राणी (किरण केर माता-पिता) बहुत दुःखी भऽ ओतय सँ विदाह भऽ गेलाह। कियैक तँ किरण हुनक ओ संतान छलखिन्ह जिनक जन्मक बाद दुनू प्राणी फैसला लेने रहैथि जे अपने सब आब दोसर संतान नहि होबय देबैक, हिनके पढा-लिखा एक सुंदर जीवन देबैन। और बहुत हद तक ओहि में ओ सब काबयाबो भेलथि। रास्ता भरि दुनू प्रणी बतियैत एलाह किरणक बचपनक बारे में। एक-दोसर सँ कहैय लगलाह, जतेक आदत गुड्डु में किरण गिनेलैथ ई सबटा आदत तँ हुनको में छलैन, कि अपने सब किरण केँ सम्हाइर नहि पबैत छलियैन्ह? तहिना बौआ (गुड्डु) केँ सेहो सम्हाइर लीतियैन्ह। दस-पाँच दिन रहि जइतथि तँ बुढ मोन फेर सँ अपना सभक बच्चा भऽ जइतय। जिनका पोइस-पाइल कय पढा लिखा, विवाह-दान करा, सुयोग्य आ शिक्षित बना, एकटा सुयोग्य आ शिक्षित व्यक्ति सँ संग लगा देलियैन्ह, जे आय ओ कुशल जीवन जीबि रहल छथि से आइ अपन सात सालक बेटा लेल कहलथि जे अहाँ सब नहि सम्हाइर पेबैक। किरणक माताजी हुनक पिता सँ कहैय छथिन, याद अय ओ दिन जहन किरण केर स्नातकक रिजल्ट आयल रहनि, बेर-बेर अहाँ सँ कहैत रहथि, बाबूजी अहाँ बताउ, हम आगाँ की करू। आ अहाँ हुनका कहय लगलियनि – बेटा अहाँ केँ जाहि क्षेत्र में मोन होइय अहाँ ताहि क्षेत्र में जाउ, हम अहाँक संग छी। ओहि पर किरण अहाँ केँ कतेक जिद्द केने रहैथि, बाबूजी कृपया बताउ ना हमरा तँ जैह अहाँ दुनू कहब हम तँ ओहे करब, और आइ…..। फेर अहीँक कहला पर तँ किरण वकालत केर पढाई केली, और आइ अपन काज सँ हुनक पहचान छन्हि शहर में। कियैक आइ-काल्हिक बच्चा सब अपन माय-बाप केँ बेवकूफ बूझैत छैक से नहि जानि।