घरक बरेड़ी शकुन्तला देवी

लघुकथा

– रूबी झा

मोहनबाबू मात्र पाँच वर्षक छलाह आ हुनक भाय चुनचुन बाबू तेरह वर्षक और शकुन्तला देवी (चुनचुन बाबूक कनियाँ) ग्यारह वर्षक । गाम में हैजाक प्रकोप एलैक आ कतेको घर सून-मसान भऽ गेलैक । कियैक तँ आइ जेकाँ एतेक मेडिकल सांइस ओहि दिन में तरक्की नहि कएने छल । चुनचुन बाबू सेहो हैजाक चपेट में आबि गेलाह आ बचैय के कोनो उम्मीद नहि रहलनि । जखन आखिरी समय आबि गेलैन्ह, अपनो बचैय के कोनो उम्मीद नहि बूझेलन्हि तँ झर-झर नोर बहैत अपना लंग बैसल अपन भाय (मोहन बाबू) के हाथ में अपन कनियाँक हाथ दय कहलखिन्ह एकर ध्यान राखिहैन आर चुनचुन बाबूक प्राण-पखेरू उड़ि गेलन्हि । परिवार में मात्र मोहनबाबू, हुनक भाउज (शकुन्तला देवी), जुगेश्वर बाबू (मोहनबाबू के पिताजी) रहथिन्ह । मोहनबाबूक माता जीक बहुत पहिनहिये देहान्त भऽ गेल रहनि । समय बीतल, तीनू गोटे धीरे-धीरे अपन जिन्दगी केँ सामान्य पटरी पर आनय लागल छलाह । मोहनबाबू केँ अंतिम समय में हुनक भाय कैह गेल रहथिन्ह तकर ओ ताउम्र निर्वाह केलाह । अपन भाउज के माय, बहिन, सखा, और अभिभावक सदा मानैत रहलाह । जखन पानदाय (मोहनबाबू के कनियाँ)
विवाह-दान करा सासूर एली तँ हुनको मोहनबाबू सब कहानी कहि सुनेलखिन्ह । पानदाय सेहो ताउम्र एहि बातक पालन केलीह । टोल-पड़ोस सँ अगर कियो किछु पैंच-उधार मांगय आबथिन्ह, तँ तिनको कहैय छलखिन्ह जे हम किछु नहि कहब, जे कहती से बहिनदाय (शकुंतला देवी) कहती, हुनके सँ पुछियौन । पानदाय केँ चारि टा बेटा आ तीन टा बेटी छलन्हि, सभक लालन-पालन शकुंतले देवी केलखिन्ह आर पानदाय केर पोता-पोती, दोभित्र-दोभित्री केँ सेहो शकुंतले देवी पोसलखिन । बच्चा सब माय सँ बेसी काकी-काकी करैत रहैत छलाह । कहियो शकुंतला देवी पानदाय केर बच्चा सब केँ जाऊत-जैधी नहि बुझलीह । कनिकबो अपन संतान सँ कम स्नेह केर छाया मे नहि रखलीह । दिन बितल मोहनबाबूक पिताजी हुनका सब केँ छोड़ि एहि इहलोक सँ परलोक विदाह भऽ गेलखिन्ह । एक बेर फेर हिनका सभक माथ पर दुःखक पहाड़ टूटि खसलैन । मुदा शकुंतला देवी ओहि दुःखक सामना केलीह, अपना केँ आ अपन घर-परिवार केँ थथमाइर क रखलीह । ओ अपना आप केँ मजबूत बना बखूबी ढंग सँ अपन परिवारक अंदर आ बाहर दुनू तरफ मजबूत बना कय रखलीह । आइ ओ तँ नहि छथि दुनिया में, लेकिन हुनकर जाऊत-जैधी आ गाम-समाज केर लोक हुनकर गुणगान करैत नहि थकैत छथि ।