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मिथिलाक इतिहासः डा. उपेन्द्र ठाकुर (धारावाहिक लेख)

मिथिलाः उत्पत्ति एवं नाम
 
– डा. उपेन्द्र ठाकुर (प्रसिद्ध इतिहासकार)
 
प्राचीन भारतक राजनीतिक तथा सांस्कृतिक जीवनमे मिथिलाक महत्त्वपूर्ण भूमिका रहलैक अछि। ई भूमि महान् राजतन्त्र तथा गणतन्त्र सभक उत्थान-पतन देखैत आबि रहल अछि। मानव-चिन्तनक इतिहासमे एकर विलक्षण स्थान छैक। ई भूमि जनक, याज्ञवल्क्य, न्यायसूत्रक प्रणेता गौतम, वैशेषिक दर्शनक जनक कणाद, मीमांसाक प्रस्तोता जैमिनि तथा सांख्य दर्शनक संस्थापक कपिलक जन्मभूमि रहल अछि। एकर सीमान्तर्गत वैशाली, जैन आ बौद्ध धर्म तथा दर्शनक प्रसिद्ध गढ़ रहि चुकल अछि। ईसाक षष्ठ शतक तथा तकर परवर्ती कालमे मिथिला महान् साहित्यिक तथा दार्शनिक क्रियाकलापक केन्द्र बनल रहल। उद्योतकर (अनुमानित ७०० ई. सन्), मंडन (अनुमानित ८०० ई. सन्), वाचस्पति (अनु. ८४० ई. सन्), उदयन (अनु. ९५० ई. सन्), गङ्गेश (अनु. ११०० ई. सन्), पक्षधर (अनु. १४५० ई. सन्) प्रभृति अनेकानेक विद्वान् अपन प्रखर प्रतिभा सँ एहि भूमिकेँ विभिन्न युगमे उद्भासित कयलनि। एहि तरहेँ मिथिला अनेक शतक धरि भारतीय संस्कृतिक केन्द्र बनल रहल।
 
एहि भूमिक हेतु प्रयुक्त ‘विदेह’ तथा ‘मिथिला’ नामक उत्पत्ति विशुद्धतः पौराणिक अछि। जूलियस एग्लिंगक अनुसार प्राचीनकालमे ई भू-भाग आर्यलोकनिक निवासस्थल अतिपूर्वमे छल। कहल जाइछ जे उक्त प्रदेश अपन नाम सरस्वती तीरसँ आगत राजा विदेघ माधव अथवा विदेह माधवसँ पओलक। शतपथ ब्राह्मणक अनुसार विदेघ माधव अपन पुरोहित गोतम राहुगणक संग सरस्वतीक तटसँ सदानीराक (गण्डकीक) तटपर आबि सर्वप्रथम अग्निकेँ प्रज्वलित क’ एहि भूमिकेँ पवित्र कयलनि। ई सत्य जे माधवक आगमनक पश्चात् अनेक ब्राह्मण एतय अयलाह। फलतः एहि भूमिपर कृषि प्रारम्भ भेल तथा यज्ञ द्वारा अग्निकेँ सन्तृप्त कयल गेल। महाकाव्य तथा पुराणसभक वंशावलीमे द्वितीय राजाक रूपमे परिगणित मिथि वैदेह माधव विदेघक परिलक्षक थिक। पौराणिक वंशावलीक अनुसार अयोध्यापति मनुक पुत्र निमि एहि यज्ञ-भूमिमे अयलाह। हुनकर पुत्र मिथि अपन नामपर मिथिला नामक राज्यक स्थापना कयलनि। नगर निर्माणक क्षमता रखबाक कारणेँ ओ ‘जनक’ नामसँ प्रख्यात भेलाह। ईहो कहल जाइछ जे मन्थनक बाद उत्पन्न होयबाक फलस्वरूप हुनक नाम मिथि राखल गेलनि। असामान्य जन्मक कारणेँ ओ जनक कहओलनि तथा पिताक अशरीरी रहबाक कारणेँ विदेह। एहि तरहेँ हुनक नामक आधारपर एहि प्रदेशक नाम मिथिला पड़ल।
 
क्रमशः… एहि भूमिक उद्भवक एकटा रोचक कथा विष्णुपुराण मे भेटैछ….
 
हरिः हरः!!

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